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'आत्मनिर्भर भारत' का हिस्सा बनना चाहती है वायुसेना, अब भारत में बनेंगे एयरक्राफ्ट

 

नई दिल्ली: विश्व की चौथी सबसे बड़ी भारतीय वायुसेना के मौजूदा हवाई बेड़े में 95 प्रतिशत से अधिक विदेशी विमान और हथियार प्रणालियां हैं लेकिन 'टू फ्रंट वार' की तैयारी में जुटी वायुसेना इस समय 114 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की कमी से भी जूझ रही है। वायुसेना लड़ाकू विमानों की इस कमी को 'मेक इन इंडिया' के तहत पूरी करके 'आत्मनिर्भर भारत' का हिस्सा बनना चाहती है। अमेरिकी, रूसी, यूरोपियन, स्वीडिश कंपनियों ने किसी भारतीय कंपनी की साझेदारी में जेट विमान बनाने के ऑफर रखे हैं। इस करार के तहत भारतीय रणनीतिक साझेदार बनने के लिए टाटा समूह, अडानी समूह और महिंद्रा समूह ने दिलचस्पी दिखाई है। दरअसल 2007 में ही वायुसेना ने अपने बेड़े में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) की कमी होने की जानकारी देकर रक्षा मंत्रालय के सामने खरीद का प्रस्ताव रखा था। इस पर फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट एविएशन से 126 राफेल फाइटर जेट का सौदा किया जा रहा था। बाद में यह प्रक्रिया रद्द करके नए सिरे से सिर्फ 36 राफेल विमानों का सौदा किया गया। हालांकि इनमें से अभी 10 विमान ही भारत को मिले हैं, जिनमें 5 राफेल भारत आये हैं। सभी 36 विमान 2022 तक भारत को फ्रांस से मिल जायेंगे। इस तरह 126 के बजाय 36 विमानों का सौदा होने से वायुसेना के बेड़े में 90 विमानों की कमी बरकरार रही। वायु सेना को उम्मीद थी कि वह 36 राफेल के शुरुआती ऑर्डर का इस्तेमाल करके 90 और विमान हासिल कर लेगी लेकिन ऐसा न होते देख अब उसने 114 नए प्रकार के सिंगल इंजन वाले एमएमआरसीए खरीदने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है, जिसकी अभी तक सरकार से मंजूरी नहीं मिली है।

हालांकि भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने जल्द ही 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट के सौदे के लिए सरकार से मंजूरी मिलने की उम्मीद जताई है, जिसके बाद औपचारिक खरीद प्रक्रिया शुरू होगी। बहरहाल वायुसेना ने मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की इस कमी को पूरा करने के लिए कई विदेशी कंपनियों से इस बारे में जानकारी मांगी है। उम्मीद के मुताबिक अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन कॉरपोरेशन से एफ-21 के लिए और बोइंग कंपनी से एफ/ए-18 के लिए, स्वीडिश कंपनी साब एबीस से ग्रिपेन के लिए, रूसी कंपनी रशियन एयरक्राफ्ट कारपोरेशन से मिग-35 के लिए और यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन से सुखोई-35 के लिए, यूरोपियन कंपनी एयरबस डिफेन्स से यूरोफाइटर टाइफून के लिए और राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी दसॉल्ट एविएशन से ऑफर मिले हैं।

वायु सेना को 2020-21 के बजट में 86,558 करोड़ रु. का आवंटन हुआ था, जिसके करीब 45 फीसद या 39 करोड़ रुपये आधुनिकीकरण के मद में खर्च किये जाने हैं। इसके तहत सिर्फ लड़ाकू विमान ही नहीं बल्कि एस-400 जैसे लंबी दूरी तक मार करने वाले मिसाइल सिस्टम और फाल्कन जैसे हवाई चेतावनी और कंट्रोल सिस्टम (एडब्ल्यूएसीएस) भी खरीदे जाने हैं। इस बड़े पैमाने पर खरीद के लिए वायुसेना को और बजट की जरूरत है, इसीलिए वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने स्थापना दिवस के मौके पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में 'बजट तंगी' की चर्चा की थी। उनकी यह चिंता इसलिए भी बाजिब है कि आने वाले दिनों में वायुसेना के पास विमानों की आमद के मुकाबले अधिक तेजी से विमान काम के लायक नहीं रह जाएंगे। इस दशक के अंत तक आखिरी मिग-21 विमान भी रिटायर हो जाएगा जो एक वक्त भारत के लड़ाकू विमानों के बेड़े में सबसे प्रमुख हुआ करता था।

अब विदेशी कंपनियों की ओर से मिले जहाजों के ऑफर का चयन अपनी जरूरत और अपने बजट के हिसाब से वायुसेना को करना है। बोइंग कंपनी ने वायुसेना के सामने एफ-15ईएक्स की भी पेशकश की है। लॉकहीड मार्टिन कॉरपोरेशन ने एफ-21 में पांचवीं पीढ़ी की तकनीक देने का वादा किया है जैसे कि एईएसए रडार और एक आधुनिक कॉकपिट जो अब एफ-22 और एफ-35 जेट का हिस्सा हैं। वायुसेना के लिए 114 विमानों की खरीद में भारतीय रणनीतिक साझेदार बनने के लिए टाटा समूह, अडानी समूह और महिंद्रा समूह ने दिलचस्पी दिखाई है। यानी सरकार से मंजूरी मिलने के बाद अगले कदम के रूप में भारतीय रणनीतिक साझेदार और विदेशी प्रौद्योगिकी भागीदार दोनों का चयन किया जाना है।