रायपुर: कोंड़ागांव जिले के फरसगांव जनपद अंतर्गत ग्राम आलोर के झांटीबंद पारा की पहाड़ी में एक प्राकृतिक गुफा में विराजित लिंगई माता के दर्शन साल में एक बार होते हैं। हर साल की तरह ही इस बार भी हिंदू पंचाग के भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि बुधवार 07 सितंबर को तड़के पांच बजे गुफा के द्वार खोले गये। आलोर की गुफा में लिंग स्वरूप में विराजित संतानदात्री लिंगई माता का पूजा विधान संपन्न किया गया। उसके बाद श्रृद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। विगत वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण श्रद्धालु यहां नहीं पहुंच पाये थे, लेकिन इस वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर यहां पहुंचे हैं, इनमें सैकड़ों दंपत्ति संतान की अभिलाषा लिए लिंगई माता के दरबार पहुंचे हैं।
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आलोर गुफा में लिंगई माता के दरबार का द्वार खोलने और आकृतियों के अध्ययन के पश्चात सबसे पहले लिंगई माता को गाय के दूध से स्नान कराया, फिर जाकर परंपरानुसार पूजा विधान संपन्न किया गया। इसके बाद श्रृद्धालुओं को दर्शन के लिए गुफा में प्रवेश का सिलसिला शुरू हो गया। संतान की अभिलाषा लिए पहुंचे सैंकड़ों दम्पत्ति माता को खीरा अर्पण कर दर्शन करते रहे, वहीं जिन्हे यहां आने के बाद संतान प्राप्ति हुई वे अपनी संतान को लेकर दर्शन के लिए यहां पंहुचे थे। आज सुबह पांच बजे से शाम पांच बजे तक श्रद्धालुओं का जन समूह के द्वारा दर्शन का क्रम जारी रहा। सवा पांच बजे माता पुजारी, माटी पुजारी, बस्ती से सिरहा-गायता ओर ग्राम पटेल की उपस्थिति में गुफा का द्वार बंद करने की प्रकिया परंपरानुसार संपन्न की जायेगी।
रेत पर उभरती हैं आकृतियां –
स्थानीय निवासियों के अनुसार, प्रति वर्ष आलोर के लिंगई माता के दरबार गुफा बंद करने से पहले लिंगई माता के सामने बिखरी रेत को समतल कर दिया जाता है। अगले साल जब गुफा के द्वार से पत्थरों को हटाया जाता है, उस समय सबसे पहले यह देखा जाता है कि रेत में क्या आकृति उभरी है। साल भर बाद खुली गुफा की रेत पर जो आकृतियां नजर आती हैं। उसे देख कर शुभ-अशुभ निष्कर्ष निकाला जाता है और इसकी जानकारी जन सामान्य को दी जाती है। रेत में मिली कमल, हाथी और छोटे बच्चे के पांव की आकृति शुभ चिन्ह हैं। इन चिन्हों का मतलब अच्छी फसल, धन-धान्य में वृद्धि होना माना जाता है। बाघ के पैर का निशान पाए जाने पर जान माल की हानि और आदमी व घोड़े के पैर का निशान मिलने का अर्थ गांवों में लड़ाई- झगड़ा की आशंका माना जाता है। इन चिन्हों के आधार पर ही ग्रामीणों को सचेत रहने की सलाह दी जाती है। आलोर आए लोगों को भी सतर्क करने के लिए गुफा में देखे गए चिन्ह की जानकारी ब्लैक बोर्ड में लिख कर मेला स्थल में रखी जाती है।
आलोर निवासी सदाराम, भागवत, व फूलसिंह ठाकुर बताते हैं कि पहले लिंगई माता की गुफा में देखे गए चिन्हों की सूचना बस्तर महाराजा को दी जाती थी। वे दशहरा के मौके पर आयोजित मुरिया दरबार में चिन्हों के शुभ-अशुभ की जानकारी मांझियो को देकर प्रजा को सचेत रहने की अपील करते थे, अब यह परंपरा विलुप्त हो गई है।
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