Monday, January 6, 2025
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeअन्यकरियरसरकारी नौकरी में आरक्षण पर Supreme Court ने सुनाया अपना फैसला, दिया...

सरकारी नौकरी में आरक्षण पर Supreme Court ने सुनाया अपना फैसला, दिया ये आदेश

नई दिल्लीः सरकारी नौकरियों में आरक्षण (Reservation in Government Jobs) देने के लिए राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC & ST) को उप-वर्गीकरण (Sub-classified) करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की सात जजों की संविधान पीठ (Constitution Bench) ने गुरुवार को बहुमत से यह फैसला सुनाया।

6-1 के बहुमत से सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी के भीतर उप-वर्गीकरण को बरकरार रखा। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों को अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए।

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बाकी जजों से असहमति जताते हुए यह आदेश पारित किया। सीजेआई ने कहा कि ‘हमने ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है। उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि उप-वर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है।’

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने यह कहा

फैसला पढ़ते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘अनुसूचित जातियों को वर्गों से अलग करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मानदंड ही दर्शाते हैं कि वर्गों के भीतर विविधता है।’ उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकरण करने से रोकता हो। हालांकि, शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि उप-वर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शनीय आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, वह अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता।

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने असहमति जताते हुए अपने फैसले में कहा कि कार्यकारी या विधायी शक्ति के अभाव में राज्यों के पास जातियों को उप-वर्गीकरण करने और अनुसूचित जातियों के सभी लोगों के लिए आरक्षित लाभों को उप-वर्गीकरण करने की कोई क्षमता नहीं है। राज्यों द्वारा उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 341 (2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ करने के समान होगा।

क्रीमी लेयर की पहचान की जाए: गवई

न्यायालय के न्यायमूर्ति बीआर गवई ने एक अलग फैसले में कहा कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए। साथ ही, शीर्ष अदालत ने कहा कि कोटा के लिए एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मानकों और आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए।

बहुमत वाले फैसले में कहा गया कि राज्यों द्वारा उप-वर्गीकरण को मानकों और आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए। पीठ में न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे। पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें से मुख्य याचिका पंजाब सरकार द्वारा दायर की गई है, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी गई है। सीजेआई ने खुद और न्यायमूर्ति मिश्रा की ओर से फैसला लिखा।

फैसला सुरक्षित रखा गया था

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मित्तल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

2020 में पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया था। पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पाया कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, (2005) 1 एससीसी 394 में समन्वय पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है, जिसमें कहा गया था कि उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है।

यह भी पढ़ेंः-जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद की रोकथाम के लिए योगी सरकार का ऐतिहासिक निर्णय

आपको बता दें कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए राज्यों ने ईवी चिन्नैया मामले में फैसले की समीक्षा की मांग की है। 2004 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यों को आरक्षण प्रदान करने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकरण करने का अधिकार नहीं है।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें