लखनऊः यदि आप खेती करना जानते हैं तो खरबूजे की उन्नत किस्मों का बीज जल्द ही खरीद लें और खेत खाली होने पर इनकी बुवाई कर दें। आने वाले कई महीनों तक खरबूजे की खूब बिक्री होगी। केन्द्र और राज्य सरकारें चाहती हैं कि किसानों की आय बढ़े, इसके लिए किसान खुद वही फसल बोएं जो कम समय में ज्यादा बिके और फायदा भी खूब कराएं। इसके लिए खरबूजा की खेती काफी बेहतर मानी जाती है।
किसानों को कृषि कार्यों के लिए सरकारें पिछले कई महीनों से सब्सिडी उपलब्ध करा रही हैं। इससे किसानों को खेती करने में काफी मदद मिलती है। पिछले दो सालों में प्रदेश का युवक घर में रहकर कमाने और बाहर जाकर कमाने में काफी फर्क समझ चुका है, इसीलिए अधिकतर ग्रामीण इन दिनों नौकरी छोड़ कर खेती पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। जिनके पास चार से पांच बीघा जमीन है, वह अच्छी खेती कर भी रहे हैं। फरवरी का महीना समाप्त होने जा रहा है। ऐसे में किसान रबी सीजन की फसलें तैयार कर रहे हैं। रबी सीजन की फसलों के बाद किसानों के खेत खाली हो जाते हैं।
इन खाली खेतों में खरबूजा की खेती की जा सकती है। किसान वैज्ञानिकों का मानना है कि इस साल भी खरबूजा की पैदावार अच्छी रहेगी। खरबूजा ऐसी फसल है, जो काफी दिन नहीं टिकती है लेकिन यदि 15 दिन के अंतराल में दो बार बोनी कर दी जाए तो यह ज्यादा दिनों तक लाभ देती है। गर्मी के दिनों में खरबूज खूब बिकता है। हर साल यह 40 रूपए किलो से आगे तक पहुंच जाता है, इसके बाद भी किसान कम मात्रा में इसकी बोनी करते हैं। जो किसान इसे बो भी देते हैं, वह इसके बोनी के अंतराल का ध्यान नहीं रखते हैं, इसलिए जल्द ही यह खेतों और बाजारों से नदारद हो जाता है। खरबूजा ऐसा फल माना जाता है, जो कि एक हेक्टेयर खेत में करीब 250 क्विंटल तक उपज देता है।
ये भी पढ़ें..पटना के जेठूली में स्थिति अनकंट्रोल, गोलीकांड में घायल एक और ने तोड़ा दम
किसान जिस खरबूजा की फसल से दूरी बनाए रहते हैं, उसमें प्रति हेक्टेयर चार लाख रूपए तक की कमाई हो सकती है। यह ऐसी फसल है, जिसके बीज पर सरकार 35 फीसदी अनुदान देती है। यह नगदी फसल है। इसके बीज मिठाइयों में इस्तेमाल किए जाते हैं। खरबूजा में कई उन्नतशील किस्में हैं। इनमें पूसा मधुरस, पूसा शरबती, हरा मधु, पंजाब सुनहरी, दुर्गापुरा मधु एवं नरेंद्र आदि हैं। यूपी के किसान बीज भंडार में यह इस साल मिल रहे हैं। खरबूजे की खेती के लिए लखनऊ, बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई, उन्नाव एवं रायबरेली की मिट्टी काफी अनुकूल मानी जाती है। यहां हल्की रेतीली बलुई दोमट मिट्टी अलग-अलग क्षेत्रों में है। माना जाता है कि खरबूजा के लिए उचित पानी का प्रबंधन होना चाहिए, लेकिन जलभराव न हो। अंकुरित होने के लिए आरम्भ में 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। बाद में गर्मी बढ़ने लगती है, लेकिन इसमें कोई नुकसान नहीं होता है। कोई भी फसल खाद की गुणवत्ता पर लाभ देती है। जुताई के बाद खेत की मिट्टी भुरभुरी कर दी जाती है। इसके बाद खेत में बीज रोपाई की जाती है। इसमें जैविक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है। पुरानी गोबर की खाद को खेत में बिखेरना होता है। इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद में फास्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन दिया जाता है।
टपक खेती भी होती है फायदेमंद –
खरबूजे की बोनी के बाद बीजों में रोगों का डर रहता है। फसल को बचाने के लिए बाजार में तमाम प्रचलित दवाएं हैं। इनकों समय पर ही डाल दिया जाता है। खरबूजा की फसल को टपक विधि से भी सींचा जा सकता है। इससे काफी पानी बच जाता है। पहली सिंचाई बीजों के अंकुरण के तुरंत बाद की जाती है। यह 90 से 95 दिन में फल देने लगता है। इसकी बिक्री भी काफी आसान है।
– शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)