नई दिल्लीः अभूतपूर्व इतिहास का धनी पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन अब हाईटेक सुविधाओं से लैस होने जा रहा है। यहां एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं मिलेंगी। यहां लक्जरी स्लीपिंग पॉड यात्रियों के लिए लगाए जायेंगे। भारतीय रेलवे के अनुसार अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत पुरानी दिल्ली स्टेशन को उन सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को बेहतर बनाने की कोशिश की जायेगी जिससे आम आदमी को अब तक परेशानी का सामना करना पड़ता था। जिसमें मुख्य रूप से स्टेशन तक पहुंचने में सुधार, मुफ्त वाई-फाई की सुविधा, वेटिंग रूम और शौचालयों जैसे जगहों को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया जायेगा। यात्रियों के लिए बेहतर सूचना प्रणाली, एक्जीक्यूटिव लाउंज, स्टेशन के पास अवांछित संरचनाओं को हटाकर सड़कों को चौड़ा किया जायगा ताकि पैदल मार्ग और सुनियोजित पाकिर्ंग क्षेत्र की व्यवस्था की जायगी।
इसके साथ ही मल्टी लेवल पाकिर्ंग, अत्याधुनिक फूड कोर्ट, बच्चों के लिए गेमिंग जोन, वातानुकूलित वेटिंग हॉल और एक्सक्लेटर, सुरक्षा के लिए स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जायेंगे। भारतीय रेलवे खानपान और पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) द्वारा हाल ही में दी गई सूचना के अनुसार, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, जिसे दिल्ली जंक्शन रेलवे स्टेशन भी कहा जाता है, को जल्द ही एक लक्जरी स्लीपिंग पॉड सुविधा भी मिलने वाली है। इससे रेलवे स्टेशन पर इंतजार कर रहे यात्रियों को काफी सुविधा मिलेगी।
स्लीपिंग पॉड सुविधा का टेंडर 16 फरवरी को जारी कर दिया गया। इस प्रक्रिया के पूरी होने के बाद पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर इसका विकास किया जाएगा। इस स्लीपिंग पॉड्स पीने का पानी, मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए एक चाजिर्ंग सॉकेट, एक लॉकर रूम, इंटरनेट और एक डीलक्स बाथरूम भी होगा। वहीं रेलवे की ओर यात्रियों को इस स्टेशन पर एक और सुविधा दी जायेगी। आने वाले तीन महीनों में ही दिल्ली के दो सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन-नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली-एक दूसरे से आंतरिक रूप से एक मार्ग से जुड़ जाएंगे। इसके बाद यात्री 15 मिनट में एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पहुंच सकेंगे।
बता दें कि 1854 में ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी के जनक रोनाल्ड मैक डोनाल्ड स्टीफंस ने दिल्ली में एक रेलवे स्टेशन की परिकल्पना की और 1864 में एक छोटे से भवन से इस पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की शुरूआत हुई। हालांकि आम जनता के लिए इसे लगभग एक दशक बाद ही खोला गया। शुरूआत में यमुना पर लोहा पुल के बनने के बाद एक जनवरी, साल 1867 को पुरानी दिल्ली स्टेशन पर पहली ट्रेन पहुंची थी।
दिल्ली का ऐतिहासिक लोहे का पुल, उस जमाने की बानगी करता है, जब स्टीम इंजन वाली ट्रेन चला करती थीं। हालांकि भाप इंजन वाली ट्रेन 1994 से बंद हो चुकी है लेकिन पुरानी दिल्ली स्टेशन समय के साथ और भव्य होता चला गया। एक छोटे से भवन से ही 40 वर्ष तक रेल संचालन का काम किया गया था। धीरे-धीरे जब इसके विस्तार की जरूरत महसूस होने लगी तब जाकर वर्ष 1893 में स्टेशन की नई इमारत बनाने का काम शुरू हुआ जिसे बनने में लगभग दस वर्ष लगे।
इसके बाद ही अभूतपूर्व इतिहास की धनी पुरानी दिल्ली स्टेशन को साल 1903 में महज दो प्लेटफार्म के साथ आम यात्रियों के लिए खोला गया। ग्रीक रोमन, कौथिक, भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला के अनुपम उदाहरण वाली इस इमारत को मुगलकाल के प्राचीन वास्तुशिल्प के आधार पर बनाया गया था। इसे देकर इसकी बनावट में मस्जिद और किले जैसी कुछ झलक भी महसूस होती है। पहले लाल और अब कुछ साल से गेरुए रंग से बदले इस इमारत में स्काटिश तत्वों की झलक भी की सुंदरता है। साल 2016 में स्टेशन का नवीनीकरण हुआ तो भव्यता वैसी ही रही सिर्फ इमारत पर सुर्ख लाला की जगह गेरुआ रंग चढ़ा दिया गया।
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के वास्तु पर वास्तुकार आशीष गंजू कहते हैं कि स्टेशन का डिजाइन आखों को सुकून देता है, इसकी बनावट में स्काटिश तत्व दिखते हैं। मसलन, स्काटिश इमारतों में जिस तरह के टैरेस, मीनार होते हैं, कुछ वैसे ही पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन में भी हैं। इसकी एक और खासियत है कि ईंटों के ऊपर प्लास्टर नहीं है। यूरोप में इस तरह का प्रचलन है। वहां ईंटों पर प्लास्टर नहीं चढ़ाते, जबकि भारत में पत्थर या रंगरोगन का प्रचलन है। इतनी भव्य इमारत बनने के पीछे, उस समय से जुड़ी कई बड़ी दिलचस्प और संघर्ष भरी कहानियां है। एक किस्सा ये है कि पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन लाल किले के पास शाहजहांनाबाद में ही क्यों बनवाया गया।
1857 में स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के विफल होने के बाद अंग्रेजों ने एक रणनीति के तहत दिल्ली में रेलवे स्टेशन के लिए इस स्थान का चुनाव किया था। शाहजहांनाबाद में क्रांतिकारी भावनाओं का जोर ज्यादा था। वैसे भी अंग्रेजों की जिद थी कि रेलवे लाइन लाल किले से होकर ही गुजरेगी और इसके लिए उस समय लाल किले का एक कोना तक भी तोड़ दिया गया था। दरअसल अंग्रेजी सेना को शाहजहांनाबाद में स्थानांतरित कर दिया गया था। और भविष्य में हिंसक आंदोलन होने पर उसे आसानी से काबू किया जा सके इसे ध्यान में रखकर रेलवे स्टेशन को शहर के बाहर ले जाने के बजाय उन्होंने घनी आबादी वाले स्थान पर बनाने का फैसला किया।
ब्रिटिश ठेकेदार बैंजामिन फ्लैचर द्वारा बनाई गई रेलवे स्टेशन की इस इमारत का वर्ष 1931 में दिल्ली के राजधानी बनने के बाद महत्व और बढ़ गया था, इसलिए वर्ष 1934-35 में रेलवे स्टेशन परिसर को और विस्तार दिया गया। प्लेटफार्म की संख्या बढ़ाई गई और बिजली के सिग्नल लगाए गए। रेलवे ट्रैक बिछाने और स्टेशन भवन के निर्माण की सुविधा के लिए शाहजहांनाबाद की उत्तरी दीवार के एक महत्वपूर्ण हिस्से को गिरा दिया गया था। स्टेशन पर जोरावर मार्ग की तरफ कभी स्टीम लोको शेड भी होता था। लेकिन 15 मई 1994 को जब उत्तर रेलवे में भाप इंजन बंद हुए तो इसी के साथ लोको शेड भी इतिहास के पन्नों में सिमट गया। ये लोको शेड उसी जगह पर था जहां आज स्टेशन का दूसरा प्रवेश द्वार है।
आज इसकी क्षमता देखते ही देखते लाखों यात्रियों की हो गई है। लगभग एक हजार यात्रियों के लिए बनाए गए इस स्टेशन पर कोरोना काल के पहले तीन लाख के करीब यात्री पहुंच रहे थे। और 19 प्लेटफार्म के विस्तार के साथ तकरीबन 250 ट्रेनों का यहां से रोजाना संचालन होता है। इतना ही नहीं आधुनिकता के साथ भी स्टेशन पूरी कदमताल करता नजर आता है। इस पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की भव्य इमारत में जो लंबी लंबी मीनार शमिल हैं, एक जामने में उसका पानी की टंकी की तरह इनका प्रयोग किया जाता था।
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