नई दिल्लीः भगवान कृष्ण बगैर राधा के बिना अधूरे हैं। भगवान कृष्ण नाम भी राधा के बिना पूरा नहीं होता है। ऐसे में चार सितंबर को राधा अष्टमी के दिन राधा और कृष्ण की पूजा करने से सभी पाप दूर हो जाते हैं और मन में अपार शांति का वास हो जाता है। साथ ही सुख-सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाअष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन राधा रानी का जन्म हुआ था। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी मनायी जाती है। उत्तर भारत में राधा अष्टमी बड़े ही धूमधाम से मनायी जाती है। राधा अष्टमी के दिन पूजा के दौरान राधा चालीसा का पाठ करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
राधा अष्टमी का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि 3 सितंबर शनिवार को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट से शुरू हो जाएगा और 4 सितंबर रविवार को सुबह 10 बजकर 40 मिनट को समाप्त हो जाएगा। उदया तिथि के अनुसार राधा अष्टमी का पर्व 04 सितंबर (रविवार) को मनाया जाएगा।
श्रीराधा चालीसा
॥ दोहा ॥
श्री राधे वुषभानुजा,
भक्तनि प्राणाधार।
वृन्दाविपिन विहारिणी,
प्रानावौ बारम्बार॥
जैसो तैसो रावरौ,
कृष्ण प्रिय सुखधाम।
चरण शरण निज दीजिये,
सुन्दर सुखद ललाम ॥
॥ चौपाई ॥
जय वृषभान कुँवरि श्री श्यामा।
कीरति नंदिनि शोभा धामा॥
नित्य बिहारिनि श्याम अधारा।
अमित मोद मंगल दातारा॥
रास विलासिनि रस विस्तारिनी।
सहचरि सुभग यूथ मन भावनि॥
नित्य किशोरी राधा गोरी।
श्याम प्राणधन अति जिय भोरी॥
करुणा सागर हिय उमंगिनि।
ललितादिक सखियन की संगिनी॥
दिन कर कन्या कूल बिहारिनि।
कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि॥
नित्य श्याम तुमरौ गुण गावें।
राधा राधा कहि हरसावें॥
मुरली में नित नाम उचारे।
तुव कारण प्रिया वृषभानु दुलारी॥
नवल किशोरी अति छवि धामा।
द्युति लघु लगै कोटि रति कामा॥
गौरांगी शशि निंदक बढ़ना।
सुभग चपल अनियारे नयना॥
जावक युग युग पंकज चरना।
नूपुर धुनि प्रीतम मन हरना॥
संतत सहचरि सेवा करहीं।
महा मोद मंगल मन भरहीं॥
रसिकन जीवन प्राण अधारा।
राधा नाम सकल सुख सारा॥
अगम अगोचर नित्य स्वरूपा।
ध्यान धरत निशदिन ब्रज भूपा॥
उपजेउ जासु अंश गुण खानी।
कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी॥
नित्यधाम गोलोक विहारिनी।
जन रक्षक दुख दोष नसावनि॥
शिव अज मुनि सनकादिक नारद।
पार न पायें शेष अरु शारद॥
राधा शुभ गुण रूप उजारी।
निरखि प्रसन्न होत बनवारी॥
ब्रज जीवन धन राधा रानी।
महिमा अमित न जाय बखानी॥
प्रीतम संग देई गलबाँही।
बिहरत नित्य वृन्दाबन माँही॥
राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा।
एक रूप दोउ प्रीति अगाधा॥
श्री राधा मोहन मन हरनी।
जन सुख दायक प्रफुलित बदनी॥
कोटिक रूप धरें नंद नन्दा।
दर्श करन हित गोकुल चन्दा॥
रास केलि करि तुम्हें रिझावें।
मान करौ जब अति दुख पावें॥
प्रफुलित होत दर्श जब पावें।
विविध भाँति नित विनय सुनावें॥
वृन्दारण्य बिहारिनि श्यामा।
नाम लेत पूरण सब कामा॥
कोटिन यज्ञ तपस्या करहू।
विविध नेम व्रत हिय में धरहू॥
तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें।
जब लगि राधा नाम न गावे॥
वृन्दाविपिन स्वामिनी राधा।
लीला बपु तब अमित अगाधा॥
स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा।
और तुम्हैं को जानन हारा॥
श्री राधा रस प्रीति अभेदा।
सारद गान करत नित वेदा॥
राधा त्यागि कृष्ण को भेजिहैं।
ते सपनेहु जग जलधि न तरिहैं ॥
कीरति कुँवरि लाड़िली राधा।
सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा॥
नाम अमंगल मूल नसावन।
त्रिविध ताप हर हरि मन भावन॥
राधा नाम लेइ जो कोई।
सहजहि दामोदर बस होई॥
राधा नाम परम सुखदाई।
भजतहिं कृपा करहिं यदुराई॥
यशुमति नन्दन पीछे फिरिहैं।
जो कोउ गधा नाम सुमिरिहैं॥
राम विहारिन श्यामा प्यारी।
करहु कृपा बरसाने वारी॥
वृन्दावन है शरण तिहारौ।
जय जय जय वृषभानु दुलारी॥
॥ दोहा ॥
श्री राधा सर्वेश्वरी,
रसिकेश्वर धनश्याम ।
करहूँ निरंतर बास मै,
श्री वृन्दावन धाम ॥
॥ इति श्री राधा चालीसा ॥
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