Saturday, November 16, 2024
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Homeविशेषपुण्यतिथिः उस्ताद बिस्मिल्ला खान शहनाई को ही मानते थे अपनी बेगम

पुण्यतिथिः उस्ताद बिस्मिल्ला खान शहनाई को ही मानते थे अपनी बेगम

लखनऊः दुनिया में ऐसे कई फनकार हुए हैं, जो किसी एक देश की सरहदों तक सीमित नहीं रहे। उनमें से ही थे प्रसिद्ध शहनाई वादक भारत रत्न बिस्मिल्ला खान। भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति की फिजा में शहनाई के मधुर स्वर घोलने वाले बिस्मिल्ला खान की आज बसरी है। 21 अगस्त 2006 को भारत के मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खां का इंतकाल हो गया था। अपने प्रिय शहर बनारस में जब उन्हें सिपुर्द-ए-खाक किया गया तो उनके साथ उनकी एक शहनाई भी दफनाई गयी। इसके साथ ही बनारस में गंगा के घाटों पर उमड़ने वाला सुरों का सैलाब, बस यादों में बसकर रह गया।

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21 मार्च 1916 में हुआ जन्म

भारत रत्न सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित और प्रशंसकों के बीच बेइंतहा पसंद किये जाने वाले बिस्मिल्ला खां का जन्म बिहार के डुमरांव में 21 मार्च 1916 को हुआ था। हालांकि बनारस पूरी जिंदगी उनकी शख्सियत का अहम हिस्सा रहा। छह साल की उम्र में बिस्मिल्ला को बनारस ले जाया गया। यहां उनका संगीत प्रशिक्षण भी शुरू हुआ और गंगा के साथ उनका जुड़ाव भी। खान काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े अपने चाचा अली बख्श ‘विलायतु’ से शहनाई वादन सीखने लगे।

अमेरिका से आया था बुलावा

कहते हैं कि एकबार बिस्मिल्ला खां को अमेरिका से बुलावा आया कि वे वहीं आकर बस जाएं लेकिन उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने इस पेशकश को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि यहां गंगा, काशी और बालाजी का मंदिर है। यहां से जाने का मतलब इन सबसे बिछुड़ना होगा। एकबार तो उन्होंने यहां तक कहा था कि जब भी उन्हें कहीं शहनाई बजानी होती है, तो वे अपनी शहनाई को बाबा विश्वनाथ के मंदिर की दिशा में रखते हैं। उन्होंने लाल किले से लेकर ब्रिटेन की महारानी के दरबार में शहनाई बजाई लेकिन इंडिया गेट पर शहनाई बजाने की उनकी हसरत अधूरी रह गयी। वे अपनी शहनाई के जरिये देश के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि देना चाहते थे।

शहनाई को मानते थे अपनी बेगम

शास्त्रीय संगीत और संस्कृति की फिजा में शहनाई के मधुर स्वर घोलने बिस्मिल्ला खान शहनाई को ही अपनी बेगम कहते थे और संगीत उनके लिए उनका पूरा जीवन था। पत्नी के इंतकाल के बाद शहनाई उनकी बेगम और संगी-साथी दोनों थी। उनका पूरा जीवन ही संगीत रहा।

भारत रत्न बिस्मिल्ला खान बचपन से ही सांप्रदायिक सौहार्द के पोषक थे। उनके रियाज का ज्यादातर समय गंगा किनारे बाला जी मंदिर में ही गुजरता था और ताउम्र उन्होंने भारत की एकता अखंडता के लिए काम किया। बिस्मिल्ला खान ने देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अपनी शहनाई की गूंज से लोगों को मोहित किया। अपने जीवन काल में उन्होंने ईरान, इराक, अफगानिस्तान, जापान, अमेरिका, कनाडा और रूस जैसे अलग-अलग मुल्कों में अपनी शहनाई की जादुई धुनें बिखेरीं।

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