संपादकीय

जीवन में रामत्व

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श्रीराम को सनातन धर्म में विष्णु का अवतार माना गया है । लोग उनको भगवान और आराध्य मान कर पूजार्चन करते हैं । लेकीन जब हम राम के सम्पूर्ण जीवन का अवलोकन करते हैं तो पाते हैं कि राम केवल पूजा के विषय नहीं हैं वह अनुकरणीय हैं हर स्थिति काल में जीवन को दिशा प्रदान करने वाले प्रेरणा पुंज हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि राम ने स्वयं को एक राजा और भगवान के अवतार के रूप में नहीं अपितु जननायक के रूप में स्थापित किया। हम उनके संपूर्ण जीवन में देखते हैं कि कैसे उन्होने कठिन  स्थितियों में भी मर्यादा के नूतन आयाम स्थापित किए । राजकुल में जन्म लेने के बाद भी राम ने अपना जीवन राजसी वैभव में नहीं बिताया । उनका बाल्यकाल आश्रम में व्यतीत हुआ, गुरुकुल में वह राजकुमारों की भांति नहीं अपितु समान्य बालकों की भांति अपने और आश्रम के सारे कार्य करते थे । जब वह युवा हुए और राज्याभिषेक का समय आया तो उन्हे पिता के वचन के लिए वनगमन करना पड़ा । राम का जीवन मानवीय संबंधों के मार्गदर्शन में प्रेरणा देता आया है जिसके कारण वह लोक चेतना और परम्परा में सदैव जीवंत रहते हैं ।

जो लोक में व्याप्त है वह कालजयी है,वही सर्वमान्य है ,वही अनुकरणीय है, वही वंदनीय है। लोक परंपरा में भी हम पाते हैं कि जन्मोत्सव, विवाह, हवन, कीर्तन, मांगलिक अयोजन आदि में महिलाएं जो मंगल गीत गाती हैं उसमें भी राम का नाम और उनका संबंध मूल्य ही समाहित है । ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम जो लोक के मन में हैं जो जन जन के हृदय में बसते हैं । देखें तो राम ही त्यौहार हैं, उल्लास हैं उत्सव हैं, भक्ती हैं, शक्ति हैं, पूजा हैं, ज्ञान हैं, प्रेरणा हैं और जीवन के प्रकाश स्तम्भ हैं । राम केवल जन जन की भावना नहीं या सनातन धर्म को मानने वालों की आस्था का केंद्र नहीं बल्कि भगवान राम तो जीवन जीने का तरीका है । फिर चाहे वह संबंध मूल्यों को निभाना हो धर्म के मार्ग पर चलना हो या फिर अपने दिए हुए वचन को पूर्ण करने के साथ कर्त्तव्य निर्वहन हो । राम सिर्फ कहने में ही मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं है बल्कि हर मायने में वह एक उत्तम और आदर्श पुरुष हैं वह जीवन के मार्ग को प्रशस्त करने वाले प्रकाश हैं ।

राम के जीवन आदर्शों को अनुकूल स्थिति में अपने आचरण में लाना जीवन को सरल और सहज बनाता है। राम का जीवन आदर्श, नैतिकता और व्यवहार का उच्चतम मापदंड है जो हर स्थिती में प्रासंगिक हैं । गुरु -शिष्य, राजा -प्रजा, स्वामी -सेवक, पिता -पुत्र, पति -पत्नी, भाई-भाई, मित्र-मित्र के आदर्शों के साथ धर्म नीति, राजनीतिक, अर्थनीति के साथ सत्य, त्याग, सेवा, प्रेम, क्षमा, शौर्य, परोपकार, दान आदि मूल्यों का सुंदर, समन्वित आदर्श रूप राम के संपूर्ण जीवन में समय समय पर देखने को मिलता है। राम के जीवन के पुरुषोत्तम होने की विशेषताओं का संदर्भ रामायण में अनेक स्थानों पर देखने को मिलता है जिसका जीवन में अनुकरण करने पर समरसता पूर्ण समन्वित और खुशहाल व्यक्तित्व का निर्माण होता है । राम का जीवन इतना अदभुत और विशाल है कि उनके जीवन के प्रसंगों को बार-बार देखने और सुनने से भी मन नहीं भरता ।

आज ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी ने कितनी भी प्रगति करली हो लेकिन जब व्यक्ति भावनात्मक रूप से खुद को कमजोर पाता है तब वह श्रीराम के जीवन आदर्शों में ही समाधान ढूंढने का प्रयास करता है। राम तो प्रभु का अवतार थे लेकिन जब उन्होंने भी मानव शरीर में धरती पर जन्म लिया तब उन्हे भी सामाजिक, पारिवारिक, सांसारिक बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन राम ने हर स्थिति में स्थित प्रज्ञ होकर कभी मर्यादा का उलंघन नहीं किया उनके जीवन में यह विशेष और अनुकरणीय है । राम का जीवन हर मानव के हृदय में मन मस्तिष्क में इसलिए बसा हुआ है क्योंकि उनकी कथाएं लोक में व्याप्त हैं । हजारों वर्षों से राम कथा का जतन एवं संवर्धन कलाओं के माध्यम से, गीतों के माध्यम से, मंचन के माध्यम से आम जनमानस के बीच होता रहा है । देखा जाए तो लोक संस्कृति के विभिन्न प्रकारों में रामायण प्रदर्शित होता है जिसमें अपनी भिन्न भिन्न परंपराएं, अपनी विशिष्ठ वेशभूषा, भाषा के साथ जन जीवन के कई आयाम देखने को मिलते हैं । जिससे जनमानस अपने आप को समृद्ध करता आया है । लोकमंगल की भावना में भी राम के जीवन की अनंत कहानियों द्वारा बच्चों में मूल्यों को रोपित करने की परम्परा चली आरही हैं। राम के नाम के सहारे अनंत गीतों, कहानियों, मनोभावो की जनमानस भावाभिव्यक्ति करता आया है। राम केवल लोगों की भावनाओं में समाए हुए देव नहीं है जिनके प्रति सिर्फ आस्था रखकर पूजा किया जाय बल्कि राम सही मायने में उत्तम पुरुष हैं जो हमें जीवन जीना सिखाते हैं। 

राम का चरित्र, आदर्श, धर्म पालन, नैतिकता और मानवीय संबंधों के मार्गदर्शन हमें सदैव प्रेरणा प्रदान करता आया है, इसीलिए जनजीवन हर आयाम में हर कलाओं में राम के जीवन को उनके आदर्शों को प्रकट करता रहा है। हम देखे तो राम का जीवन ही ऐसा है जो जनमानस से रिश्ता जोड़कर रखता है। श्रीराम के लिए समाज के सभी वर्ग समान थे, उनके लिए कोई छोटा या बड़ा नहीं था जैसा हम उनके जीवन में पाते हैं कि निषाद राज, केवट, शबरी माता, जटायु वानर सेना इसके उदाहरण हैं । उनके राज्य में सभी वर्गों में समानता और समान अवसर प्राप्त थे सभी को अपने विचार अभिव्यक्त की स्वतंत्रता प्राप्त थी। राम ने समाज के प्रत्येक वर्ग को आपस में जोड़कर रखने का संदेश दिया उन्होंने प्रेम, भाईचारे का संदेश दिया । राम का व्यक्तित्व ऐसा था जहां प्रेम और विश्वास में भिलनी माता शबरी अपने राम के लिए चख कर मीठे बेर एकत्र करती थीं इस आस में की भक्ति और प्रेम के भूखे उनके राजा राम एक दिन उनकी कुटिया में अवश्य आयेंगे। राम प्रेम के जूठे बेर ग्रहण कर ऐसे नैतिकता के सुकृत संदेश प्रेषित करते हैं जो लोक चेतना में आज भी जीवंत होकर व्यक्ति को नर से नारायण बनने की प्रेरणा देते हैं । श्रीराम का जीवन सामाजिक चेतना, समृद्धि, सद्गुण और सहानुभुति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा स्रोत है।

 राम को पिता के वचन के लिए वैभवशाली जीवन त्याग करने में एक क्षण नहीं लगा । आज के युग में अपने छोटे से अधिकार को लोग त्यागना नहीं चाहते लेकिन राम ने समाज, परिवार में पुत्र और भाई के रूप में एक आदर्श प्रस्तुत किया। राज्य छोटे भाई को सौंप कर राम ने भरत से न ही कभी ईर्ष्या की ओर न ही द्वेष बल्कि हमेशा भरत के प्रति प्रेम रखा और उन्हें राज संभालने के लिए प्रेरणा देते रहे। राम का व्यक्तित्व इतना विराट था कि उनमें संपूर्ण प्राणियों के लिए स्नेह और सम्मान का भाव था । राम मनुष्य से ही नहीं पशु, पक्षियों और प्राकृति के प्रति भी स्नेह और लगाव रखते थे । कुछ प्रसंगो द्वारा हमें यह ज्ञात होता है कि माता सीता का हरण होने के बाद राम पशु पक्षियों और प्रकृति से भी संवाद कर रहे हैं और माता सीता के बारे में पूछ रहे हैं, राम सेतु निर्माण में गिलहरी से संबंधित एक अत्यंत रोचक प्रसंग है, ऐसे अनगिनत प्रसंग हमे राम के जीवन से जुड़े हुए दिखाई और सुनाई पड़ते हैं जो समरसता, स्नेह और प्रेम के पर्याय हैं।

राम लोकनायक थे बानरो की छोटी सी सेना पर अटूट प्रेम, श्रद्धा और विश्वास  के बल पर ही राम ने लंका पर विजय प्राप्त की जो असत्य पर सत्य की जीत का राम के जीवन से मानव जाति को सबसे बड़ा संदेश है । राम को अपनी जन्मभूमि से बहुत प्रेम था लंका विजय के बाद राम ने कहा

 

अपि स्वर्णमयी लंका न में लक्ष्मण रोचते ।

 

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।

 

अर्थात लंका स्वर्ण से निर्मित है ,फिर भी मुझे इसमें कोई रुचि नहीं है, जननी और जन्मभूमि तो स्वर्ग से भी बढ़कर है ।



 

राज कुल में पैदा होने के बाद भी राम ने कभी राजसी वैभव का सुख भोग नहीं किया, वनवास की समय अवधि में अनेकों कष्ट का सामना किया । वह चाहते तो चक्रवर्ती राजा की तरह स्वतंत्र निर्णय ले सकते थे परंतु उन्होंने लोकनायक के रूप में आदर्श स्थापित किया। उनके राज्य में सबको अपनी बात कहने का अधिकार था । जब प्रजा के एक व्यक्ती ने माता सीता पर प्रश्न चिन्ह लगाया और माता सीता एक बार पुनः वनवास के लिए प्रस्थान कर गईं तब राम ने भी राजसी जीवन त्याग दिया और वनवासी की भांति जीवन व्यतीत करने लगे । एक राजा के रूप में भी राम ने स्वयं को लोकनायक ही सिद्ध किया और उसी रूप में प्रजा की देखभाल कि और उनके मनोभाव अनुसार कार्य किया। वर्तमान में युवा और बच्चों को राम के जीवन से सीख लेनी चाहिए कि हमें स्वयं के जीवन, दूसरों के जीवन एवं समाज के लिए अच्छा करने के लिए नियम, धैर्य और अनुशासन के सदमार्ग का चयन करना चहिए है। आज युवाओं और बच्चों में धैर्य की कमी है, क्षणिक परिवर्तन से वह चिंता में आ जाते हैं, मनवांछित कार्य न होने पर कुंठा और तनाव का शिकार होजाते हैं यदि हम राम के जीवन से सीखें तो पाएंगे कि राम का राज्याभिषेक होने वाला था और जब पिता के वचन के लिए उन्हें वनवास जाना पड़ा उस स्थिति में भी वह स्थिति प्रज्ञ रहे। 

इससे आजकी पीढ़ी को सीख लेना चाहिए कि कैसे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना धैर्य के साथ करें। आज बहुत सारी सामाजिक, नैतिक, मानसिक समस्याओं से युवा और बच्चे भी ग्रसित हैं ऐसे में आवश्यकता है कि वह राम के जीवन आदर्शों को अपने जीवन में उतारें । आज जहां कई देश अपना क्षेत्रीय विस्तार करना चाहते है, पिता -पुत्र, भाई-भाई में संपत्ति को लेकर बंटवारे हो रहे हैं, आपसी तनाव बढ़ रहे हैं वहीं जब मर्यादा पुरूषोत्तम राम के आदर्शों को देखते हैं जहां राम लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद रावण के भाई विभीषण को राजा बना कर राज लौटा देते हैं हम ऐसी भारत भूमि के हिस्सा हैं । 

राम का जीवन आम जनमानस के समक्ष ऐसे आदर्श के छाप, संदेश और उदाहरण से भरा हुआ है जिससे ज्ञात होता है कि राम सिर्फ पूजनीय नहीं होने चाहिए, जीवन में हमें रामत्व को धारण करते हुए धर्म के पथ का अनुगामी होना चाहीए । धर्म वही है जो सत्य के मार्ग का अनुसरण करते हुए उचित अनुचित का ध्यान रखकर अपने कर्तव्यों का मर्यादा के साथ निर्वहन करें जिसका राम ने अपने संपूर्ण जीवन में निर्वाह किया । आज जब 500 वर्षों बाद रामलला भव्य, दिव्य, नव्य मंदिर में विराजमान हुए हैं ऐसे में हर व्यक्ति जो राम में आस्था रखता है और राम उसके प्रेरणा के प्रतीक हैं उसे अपने जीवन में रामराज की परिकल्पना और मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवनआदर्शों का पालन करना चहिए । 

रामराज की स्थापना से आशय किसी धर्म, जाति या फिर विशेष समुदाय के राज करने से नहीं है बल्कि इसका आशय सबको एक सूत्र में पिरोकर ऐसे राज की स्थापना करना है जहां हर और प्रेम, शांति, सुख,भाईचारा स्थापित हो। श्री राम को भगवान के रूप में पूजते हुए यदि हम उनके आदर्शों को जीवन में उतार लें तो सही मायने में यही राम की भक्ति और पूजा होगी। राम जहां संबंध मूल्य, समरसता और आदर्श के पर्याय थे वहीं वह वचन निभाने धर्म पालन करने से लेकर शत्रु से भी सीखने का भाव रखने वाले, जात-पात से ऊपर उठकर समाज को सीख देने वाले उत्तम पुरुष थे। बच्चों को राम के जीवन से राम के आदर्शों से प्रेरणा दें जिससे वो भारतीय होने पर गर्व कर सकें और विश्व बंधुत्व का भाव रखकर अपने जीवन में रामत्व के मानवीय गुणों को धारण करे। रामत्व की प्राणप्रतिष्ठा अपने मन रूपी मंदिर और जीवन में करें साथ ही राम के जीवन मूल्यों को स्वयं के जीवन में जीकर प्रमाणित करें, यही श्री राम की सच्ची पूजा और यही जीवन में रामत्व के भाव की प्रमाणिकता होगी ।

ऋचा सिंह