विशेष Featured

दम तोड़ गई योगी सरकार की खाद्य सुरक्षा भत्ता योजना

लखनऊः उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों के सभी बच्चों को लॉकडाउन और गर्मी की छुट्टी में खाद्य सुरक्षा भत्ता के रूप में मिड डे मील की परिवर्तन लागत और खाद्यान्न उपलब्ध कराने का दावा किया गया था, लेकिन हजारों परिवारों निराशा ही हाथ लगी। आज भी इस योजना को पंख नहीं लग सके हैं। प्रदेश के सभी जिलों को खाद्यान्न और परिवर्तन लागत की धनराशि मुहैया कराने के दो महीने बाद भी सिर्फ 54 प्रतिशत छात्रों या उनके अभिभावकों के खातों में रकम भेजी जा सकी है। 73 प्रतिशत बच्चों को अनाज दिया गया, बाकी इससे वंचित रह गए। अब विभाग इस बात को लेकर हैरान है कि आखिर यह गलती कैसे हो गई। पहले कहा गया था कि राशन बराबर भेजा जा रहा है, लेेकिन उच्चाधिकारियों की समीक्षा बैठक में यह खुलासा हुआ कि इसमें तमाम गलतियां की जा रही हैं।

सरकार ने लाॅकडाउन के दौरान मातहतों को कहा था कि अब स्कूलों में दोपहर का भोजन नहीं बनेगा। उसकी लागत को बच्चों के घर भेजा जाएगा। तर्क यह है कि बच्चों को वह लाभ नहीं मिल पाता है, जिसकी अपेक्षा की जा रही है। पैसों का बंदरबाट बंद हो जाएगा और शिक्षक अपना समय पढ़ाई में देंगे। साथ ही खाना बनाने का खर्च बचेगा। केंद्र सरकार के निर्देश पर परिषदीय स्कूलों के बच्चों को खाद्य सुरक्षा भत्ता के तहत 24 मार्च से 30 जून तक रविवार और सरकारी छुट्टियों को छोड़कर 76 दिनों के लिए मिड डे मील के परिवर्तन लागत की धनराशि और अनाज दिया जाना था। परिवर्तन लागत की दरों के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं के प्रत्येक बच्चे को इस अवधि के लिए 374.29 रुपये और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के छात्र-छात्राओं को 561.02 रुपये का भुगतान किया जाना था। साथ ही, इस अवधि में मिड डे मील में इस्तेमाल किये जाने वाले खाद्यान्न का वितरण संबंधित इलाके के कोटेदार के माध्यम से किए जाने का निर्णय लिया जाना था। यह दिक्कत लगातार बनी हुई है। कारण है कि लाॅकडाउन जरूर खत्म हो गया, पर कोरोना के चलते मध्य सितंबर तक स्कूल खोले ही नहीं जा सके हैं। इससे जुलाई और अगस्त के राशन की भी प्रतीक्षा मई और जून तक ही करनी होगी।

उधर मध्याह्न भोजन प्राधिकरण की ओर से खाद्य सुरक्षा के भुगतान के लिए जिलों को पूरी धनराशि भेजी जा चुकी है। सितंबर में ही हुई समीक्षा में पाया गया कि अभी तक पांच जिलों में तो 20 प्रतिशत बच्चों के खातों में परिवर्तन लागत की राशि नहीं भेजी जा सकी है। वहीं तीन जिलों में 50 फीसद या उससे कम बच्चों को ही अनाज बांटा जा सका है। कुछ जिलों ने तो खाद्य सुरक्षा भत्ता बांटने के लिए धनराशि जारी करना भूल गए। मिड डे मील के लिए गेहूं और चावल मिलता था। वहीं कन्वर्जन कॉस्ट दाल, सब्जी, मसाला, तेल, खाना पकाने के ईंधन आदि में खर्च होती थी। मेन्यू में चार दिन चावल और दो दिन गेहूं से बने व्यंजन दिए जाते थे।

कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को 100 ग्राम अनाज प्रतिदिन जिसकी लागत 4.97 रुपये थी। कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को 150 ग्राम अनाज प्रतिदिन जिसकी लागत 7.45 रुपये थी।

यह भी पढ़ेंः-अतिक्रमण से कराह रहे रेलवे ट्रैक

बीते शैक्षिक सत्र में कन्वर्जन कॉस्ट प्राइमरी स्कूल के बच्चों के लिए 4.48 व जूनियर के बच्चों के लिए में 6.71 रुपये थी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि 31 दिसंबर 2019 तक 11.60 करोड़ से अधिक बच्चे योजना के लाभार्थी थे। वर्ष 2020-21 के लिए योजना का बजट 9,266.67 करोड़ रुपये हैं। मार्च के मध्य में सुप्रीम कोर्ट ने कोरोनो वायरस के कारण छात्रों को शटडाउन के दौरान मध्याह्न भोजन मामले का संज्ञान लिया और सभी राज्यों को नोटिस भेजकर उनकी योजनाओं के बारे में पूछताछ की थी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का तर्क रहा कि जब तक स्कूल बंद रहेंगे और कोरोना का डर रहेगा, देश के सभी स्कूल के बच्चों को राशन मुहैया कराया जाएगा।