Monday, January 27, 2025
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeउत्तर प्रदेशपराली की समस्या से छुटकारा दिलाने को योगी सरकार ने उठाया कदम,...

पराली की समस्या से छुटकारा दिलाने को योगी सरकार ने उठाया कदम, लगाये जायेंगे बायो सीएनजी-सीबीजी

yogi

लखनऊः अगले माह से धान की कटाई शुरू होने वाली है। कृषि क्षेत्र में मशीनों के बढ़ते इस्तेमाल के कारण फसल अवशेष (पराली,ठूठ) और इसे जलाने की समस्या सामने आ रही है। इससे निपटने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार फसल अवशेष आधारित बायो सीएनजी, सीबीजी (कंप्रेस्ड बायो गैस) इकाइयों को प्रोत्साहन दे रही है। मुख्यमंत्री योगी पहले ही यह घोषणा कर चुके हैं कि सरकार हर जिले में ऐसी इकाइयां लगाएगी। ऐसा ही एक प्लांट करीब 160 करोड़ रुपये की लागत से इंडियन ऑयल गोरखपुर के दक्षिणांचल स्थित धुरियापार में लगा रहा है। उम्मीद है कि यह प्लांट मार्च 2023 तक चालू हो जाएगा। इसमें फसल गेंहू-धान की पराली के साथ, धान की भूसी, गन्ने की पत्तियां और गोबर का उपयोग होगा। हर चीज का एक तय रेट होगा। इस तरह फसलों के ठूठ के भी दाम मिलेंगे।

प्लांट में मिले रोजगार के अलावा प्लांट की जरूरत के लिए कच्चे माल के एकत्रीकरण, लोडिंग, अनलोडिंग एवं ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार मिलेगा। सीएनजी एवं सीबीजी के उत्पादन के बाद जो कंपोस्ट खाद उपलब्ध होगी वह किसानों को सस्ते दामों पर उपलब्ध कराई जाएगी। इस बीच पराली जलाने के दुष्प्रभावों के प्रति किसानों को जागरूक करने के कार्यक्रम भी कृषि विज्ञान केंद्रों, किसान कल्याण केंद्रों के जरिए चलते रहेंगे। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कटाई के बाद धान की पराली जलाने पर तीन तरह के नुकसान होते हैं। एक, हवा प्रदूषित होती है। दूसरा, जमीन की उर्वरा शक्ति भी कमजोर पड़ती है। इससे फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जल जाते हैं। तीसरा, भूसे के रूप में पशुओं का हक मारा जाता है।

ये भी पढ़ें..दबंगों का तांडव, किसान के घर पर बोला हमला, बुजुर्ग दंपति…

गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं। पशुधन विकास परिषद के पूर्व जोनल प्रबंधक डा. बीके सिंह के मुताबिक प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है। सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए माना जाए तो डंठल के रूप में 7200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है। बाद में यही चारा संकट का कारण बनता है। उन्होंने बताया कि फसल अवशेष से ढकी मिट्टी का तापमान नम होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं। अवशेष से ढकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है। इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है। साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है। डंठल जलाने के बजाय उसे गहरी जोताई कर खेत में पलट कर सिंचाई कर दें। शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किग्रा यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं। इसके लिए कल्चर भी उपलब्ध हैं।

अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक औरट्विटरपर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें…

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें