Year Ender 2024: उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए साल 2024 सबसे बड़ा उठापटक वाला साल रहा। लोकसभा के साथ विधानसभा उपचुनावों ने राजनीतिक पार्टियों की कड़ी परीक्षा ली। कई दिग्गजों को मुंह की खानी पड़ी तो कई दिग्गजों के लिए फिर से यूपी की सियासी भूमि उर्वरा साबित हुई। आइए नजर डालते हैं साल भर में यूपी में हुई सियासी दंगल पर।
Year Ender 2024: अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में रचा इतिहास
लगातार चुनावों में मिल रही हार व गठबंधन से निराश अखिलेश यादव के लिए इस साल का लोकसभा चुनाव संजीवनी साबित हुआ। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव की अगुवाई वाली सपा ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर चुनाव लड़ा था। 2017 में साथ आने वाले दो लड़के 2024 में फिर साथ आए और राहुल-अखिलेश ने मिलकर कई सभाएं की। मोदी सरकार की 10 साल की एंटी इनकंबेंसी और योगी सरकार के खिलाफ बह रही बयार को भुनाने में दोनों नेता कामयाब रहे और बीजेपी को तगड़ा झटका दे दिया।
अखिलेश यादव की रैलियों में लगातार उमड़ने वाली भीड़ इस लोस चुनाव में वोटों में तब्दील हो गई और सपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए राज्य की 37 सीटों पर फतह हासिल कर ली। समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जो कि ऐतिहासिक रहा। इससे पहले सपा ने कभी भी यूपी में 37 सीटों के आंकड़े को नहीं छुआ था। लोकसभा चुनाव में इस बार दिवंगत मुलायम सिंह के परिवार से पांच सदस्य एक साथ संसद पहुंचने में कामयाब रहे। चुनाव जीतने वालों में कन्नौज से अखिलेश यादव, मैनपुरी से डिंपल यादव, बदायूं से आदित्य यादव, आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव शामिल रहे।
अखिलेश के साथ हाथ मिलाकर लड़ने वाली कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव काफी लाभदायक रहा और उसने 06 सीटों पर अपना झंडा गाड़ दिया। राहुल गांधी ने रायबरेली से बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह को बड़े अंतर से मात दी, तो अमेठी से कांग्रेस के सिपहसालार किशोरी लाल शर्मा ने बीजेपी की दिग्गज नेत्री स्मृति ईरानी को करारी मात दे दी। हालांकि, लोकसभा चुनाव में भाजपा को चित करने वाले अखिलेश यादव को उपचुनाव में करारा झटका लगा और वह 09 सीटों में से सिर्फ 02 सीटें ही जीत सके।
लोकसभा में बीजेपी को लगा झटका, उपचुनाव ने लगाया मरहम
लोकसभा चुनाव में भाजपा की उम्मीदों को गहरा झटका लगा था। पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार भाजपा की ताकत घटकर लगभग आधी रह गई थी और भाजपा के खाते में सिर्फ 33 सीटें ही आईं। प्रदेश में भाजपा-नीत एनडीए में शामिल दल भी गठबंधन के समीकरणों को दुरुस्त करने में नाकाम रहे। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार भाजपा की सीटें ही कम नहीं हुई हैं, बल्कि वोट प्रतिशत भी गिरा है। वर्ष 2019 में 62 सीटें जीतने वाली भाजपा को 49.97 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन इस बार यह आंकड़ा 41.37 के करीब पहुंच गया है। प्रदेश में एनडीए में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), राष्ट्रीय लोकदल (रालोद), अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी भाजपा को खास फायदा नहीं पहुंचा पाए।
भाजपा ने प्रदेश के चुनाव में पिछड़े वोट बैंक को साधने के लिए एनडीए का विस्तार करते हुए सुभासपा और रालोद जैसे दलों को शामिल किया था, पर दोनों दल कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए। यही हाल एनडीए के दो पुराने अन्य सहयोगी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी का भी रहा। चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन मैदान में उतरा। सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए के फार्मूले के साथ मैदान में उतरे, वहीं बेरोजगारी, अग्निवीर योजना और संविधान बदलने के मुद्दे को लगातार इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने जमकर हवा दी। इस बार विपक्ष ने भाजपा के हिंदुत्व के मुकाबले पीडीए का फॉर्मूला तैयार किया। पीडीए अर्थात् पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक। पीडीए का फॉर्मूला भाजपा के हिंदुत्व और दूसरों मुद्दों पर भारी पड़ गया।
कहीं-कहीं यह पीडीए पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक था तो कहीं-कहीं अखिलेश यादव ने इसे पीड़ित, दलित और अगड़ा बता दिया। राहुल गांधी और अखिलेश यादव को लोग राजनीति में बच्चा समझते रहे लेकिन दो लड़कों की जोड़ी ने बिखरे पड़े विपक्षी कुनबे में जान फूंक दी। अबकी बार 400 पार का नारा भाजपा के लिए शायद उल्टा साबित हुआ, वहीं विपक्ष ने इस नारे को इस तरह पेश किया कि भाजपा 400 सीटें लेकर संविधान बदल देगी। विपक्ष अपनी बात ज्यादा असरदार तरीके से जनता तक पहुंचाने में सफल रहा। इस चुनाव में विपक्ष के हमलों का पीएम और बड़े नेताओं ने भले ही काउंटर किया हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर भाजपा विपक्ष के आरोपों और हमलों के जवाब आम आदमी तक पहुंचाने में असफल रही।
विश्लेषकों ने भाजपा की इस बड़ी हार के पीछे पार्टी कार्यकर्तांओं की उपेक्षा, बाहरी पर भरोसा, संगठन और सरकार में तालमेल का अभाव, टिकट बंटवारे में मनमानी, सिर्फ कागजों पर रही पन्ना प्रमुखों और बूथ कमेटियों की सक्रियता, अधिकारियों के आगे मंत्रियों तक का बेअसर होने को गिनाया। हालांकि, लोकसभा चुनाव में लगे झटके के बाद सीएम योगी ने आगामी उपचुनावों की कमान खुद अपने हाथों में लेकर तुरंत तैयारियों में जुट गए। उनकी लगातार मेहनत और सक्रियता का नतीजा रहा कि 23 नवंबर को 09 विधानसभा सीटों के परिणाम बीजेपी के पक्ष में रहे। बीजेपी ने 09 सीटों में से 07 सीटों पर कब्जा जमा लिया। इस जीत ने भाजपा की लोस चुनाव में हुई करारी हार पर मरहम लगाने का काम किया।
बसपा को फिर मिली निराशा, चंद्रशेखर ने चौंकाया
इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। 2019 में सपा के साथ गठबंधन में बसपा को 10 सीटें मिली थीं लेकिन 2024 में पार्टी एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी। जानकारों ने कहा कि अकेले चुनाव लड़ने की बसपा की रणनीति का उल्टा असर रहा। उनके इस निर्णय से पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। बसपा का परंपरागत वोट जाटव समाज भी इस चुनाव में उनसे दूर हो गया। 79 सीटों पर इनके ज्यादातर उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे। मायावती की उदासीनता के कारण उनके समाज के शिक्षित और युवा सदस्य उनसे नाराज दिखे।
बसपा को मिली निराशा के बीच आजाद समाज पार्टी का गठन करने वाले चंद्रशेखर रावण ने सभी को चैंका दिया। नगीना लोकसभा सीट पर लड़ते हुए चंद्रशेखर ने दमखम दिखाया और यहां से जीतकर संसद पहुंच गए। इस सीट पर भाजपा के ओम कुमार का सीधा मुकाबला आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के उम्मीदवार चंद्रशेखर ’रावण’ से था। इसके अलावा यह सीट इंडी अलायंस के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई थी और सपा ने इस पर अपनी पार्टी से मनोज कुमार को उम्मीदवार बनाया था। इस सीट पर बसपा ने भी सुरेंद्र पाल सिंह को रावण से मुकाबले के लिए उतारा था। इसी सीट पर जोगेंद्र और संजीव कुमार दो स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थे।
यहां इन दोनों स्वतंत्र उम्मीदवार को नोटा से भी कम वोट हासिल हुए जबकि मायावती की पार्टी बसपा का उम्मीदवार चौथे और समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहा। चंद्रशेखर रावण ने भाजपा के ओम कुमार को कड़ी टक्कर देते हुए इस सीट पर 1,51,473 से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज कर ली।
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सात केन्द्रीय मंत्री नहीं बचा सके अपनी सीट
इस साल संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में यूपी की अलग-अलग सीटों से मैदान में उतरे सात केंद्रीय मंत्रियों को भी करारी हार का सामना करना पड़ा था। दूसरे की सीटों पर प्रभाव छोड़ने की बात तो दूर, वह अपनी सीट भी नहीं बचा सके थे। सबसे ज्यादा चर्चा के केन्द्र में अमेठी सीट रही। अमेठी की हॉट सीट पर केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को डेढ़ लाख से अधिक मतों से कांग्रेस उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा ने शिकस्त दी।
इसी तरह जालौन सीट से भानु प्रताप सिंह वर्मा, चंदौली से डॉ. महेन्द्र नाथ पांडेय, मोहनलालगंज से कौशल किशोर, मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान, फतेहपुर सीट से साध्वी निरंजन ज्योति, लखीमपुर खीरी सीट से अजय मिश्र टेनी को हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि, लखनऊ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, महाराजगंज से पंकज चौधरी जीते, आगरा से एसपी सिंह बघेल को जीत मिली। मीरजापुर से एनडीए गठबंधन की प्रत्याशी और केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल भी अपनी सीट जीतने में सफल रहीं।
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