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मां काली की आराधना से नकारात्मक शक्तियां रहती हैं दूर, जानें पूजा की विधि

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लखनऊः नवरात्र के सातवें दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। नवरात्र में सप्तमी तिथि का विशेष महत्व है। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि मां कालरात्रि ने असुरों का वध करने के लिए यह रूप लिया था। मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का डर नहीं सताता। साथ ही शत्रुओं का भी नाश हो जाता है।

मां कालरात्रि की पूजा विधि
मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें। मां का ध्यान करें, फिर मां कालरात्रि को अक्षत, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ का नैवेद्य श्रद्धापूर्वक अर्पित करें। मां को उनका प्रिय पुष्प रातरानी अर्पित करें। इसके बाद मां कालरात्रि के मंत्रों का जप करें और अंत में मां कालरात्रि की आरती करें। मां को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें, क्योंकि मां को गुड़ बहुत पसंद है। पूजा के बाद अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान दें। ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै, ऊं कालरात्रि दैव्ये नमः। यह कालरात्रि का सिद्ध मंत्र है।

मां ने किया था मधु-कैटभ राक्षसों का वध
मां दुर्गा का यह स्वरूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। मां कालरात्रि की नाक से आग की भयंकर लपटें निकलती हैं। शक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। मान्यता है कि मां कालरात्रि ही वह देवी हैं, जिन्होंने मधु-कैटभ जैसे असुर का वध किया था। माना जाता है कि महा सप्तमी के दिन पूरे विधि-विधान से मां कालरात्रि की पूजा करने पर मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

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आक्रामक और भयभीत करने वाला है मां का स्वरूप
मां को कालरात्रि इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका रंग काला है। इनके तीन नेत्र हैं। मां कालरात्रि की चार भुजाएं होती हैं। मां के हाथ में खड्ग और कांटा है। मां कालरात्रि की सवारी गर्धभ यानि गधा है। मां का स्वरूप आक्रामक और भयभीत करने वाला है। कहते हैं कि नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना करने से भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का भय जीवन में कभी नहीं सताता। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज का संहार करने के लिए ही यह रूप धारण किया था।

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