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मां ललिता की आराधना से होती है सुख-सौभाग्य की प्राप्ति, जानें पौराणिक कथा

नई दिल्लीः हिंदी पंचाग के अनुसार इस समय माघ मास चल रहा है और इस माह की पूर्णिमा तिथि को ललिता जयंती मनाई जाती है। इस बार 16 फरवरी यानी बुधवार को यह जयंती पड़ रही है। इस दिन विधि-विधान से मां ललिता की पूजन करने से व्रतधारी की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सनातन धर्म में माघ पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन पूजन करने से साधक पर मां ललिता की कृपा हमेशा बनी रहती है। मां की कृपा से व्रती को सुख, समृद्धि व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ललिता जयंती मनाने को लेकर श्रद्धालु अभी से तैयारियों में जुट गए हैं।

आइए जानते हैं इस जयंती की पौराणिक कथा और महात्म्य-

इस जयंती को मनाने के लिए कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, मां सती और भगवान भोले शंकर के विवाह से दक्ष प्रजापति प्रसन्न नही थे। विवाह के पश्चात राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें भगवान भोलेनाथ व अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नही किया। जब माता सती को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने आयोजन में जाने की इच्छा भगवान शंकर से जाहिर की। इस पर भोलेनाथ ने बिना आमंत्रण न जाने की बात कही और कहा कि बिना बुलाए जाने से अपमान सहन करना पड़ता है। माता सती ने जब हठ किया तो भोलेनाथ ने उन्हें अनुमति दे दी। आयोजन में पहुंचने पर जब माता सती ने अपने पति के खिलाफ अपमानजनक व कटु वचन सुने, तो वह बेहद क्रोधित हो गई। उस समय मां सती पिता द्वारा आयोजित यज्ञ कुंड में समा गईं।

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इसके बाद शिव जी क्रोधित हो उठे और माता सती को कंधे पर रख तांडव करने लगे। इससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। उसी समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 टुकड़ों में बांट दिया। ये सभी अंग धरती पर गिरे। ये सभी स्थल शक्तिपीठ कहलाए। इनमें एक स्थान मां ललिता आदि शक्ति का भी है। कालांतर में मां सती ललिता देवी के नाम से पुकारी जाने लगी। संगमनगरी प्रयागराज में मां ललिता देवी का मंदिर स्थित है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक पीठ है। इस पूरे शक्ति पीठ में 5 मंदिर हैं। सबसे आगे भोलेनाथ का मंदिर, हनुमान जी का मंदिर, राम जी का मंदिर और उसके बगल में मां ललिता की शक्तिपीठ मौजूद है। इस मंदिर के अंदर देवी के ललित रूप की एक मूर्ति मौजूद है।

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