ग्वालियरः सनातन परंपरा में भगवान भैरव की पूजा का विशेष धार्मिक महत्व है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव की जन्मतिथि के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 16 नवंबर को मनाया जाएगा।काल भैरव देवता भगवान शिव के रौद्र अवतार हैं। लेकिन वह अपने भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखते हैं और श्रद्धाभाव से आराधना करने पर अपनी असीम कृपा बरसाते हैं।
अष्टमी तिथि पर हुई काल भैरव की उत्पत्ति
भैरव जयंती को काल भैरव अष्टमी, कालाष्टमी जैसे नामों से भी जाना जाता है। अष्टमी तिथि पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। शिव से उत्पत्ति होने के कारण इनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ। इसलिए इन्हें अजन्मा कहा जाता है। काल भैरव की पूजा से व्यक्ति को भय नहीं सताता है। इनकी पूजा से जातकों के सभी तरह के पाप नष्ट होते हैं। पापी ग्रह यानी शनि और केतु, राहु के दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए काल भैरव की आराधना होती है।
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मंगोड़ी के भोग के साथ फल, नारियल चढ़ाएं
जिन जातकों की जन्मपत्रिका में शनि, मंगल, राहु तथा केतु आदि पाप ग्रह अशुभता के कारण हो तथा नीच गत अवस्था में शनि की साढ़ेसाती या ढैया से पीडित हैं। उन्हें इमरती, मंगौड़ी के भोग के साथ फल, नारियल आदि भैरव जी को चढ़ाना चाहिए। वही भैरव अष्टमी के दिन शमी वृक्ष के नीचे लोहे के दीपक में सरसों का तेल भरकर दीप प्रज्वलित करना चाहिए।
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