दुनिया भर में टूरिज्म इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग तरह के पर्यटन की संभावना को तलाशा जा रहा है। उनमें से एक डार्क टूरिज्म (Dark Tourism) भी है। डार्क टूरिज्म का मतलब होता है, ऐसी जगह पर जाना जहां त्रासदी के निशान प्रमाणों के साक्षी के साथ मौजूद हों। ऐसी जगह, जो अब वीरान और खंडहर में तब्दील हो गई हों। जहां कब्रगाह बनी हों। किसी भी बड़ी आपदाओं के अवशेष वहां मौजूद हों। इन हालातों से निपटने के लिए वहां क्या कुछ किया जा सकता है। टूरिस्ट लोग इसे समझने में काफी रुचि ले रहे हैं। ऐसी जगह पर जाना, उन जगहों की तस्वीर लेना और वहां समय बिताना घूमने के लिए लोगों की पहली पसंद बन रहा है, यही है ‘डार्क टूरिज्म’। इसे कई नाम से पुकारा जाता है जैसे- ‘ब्लैक टूरिज्म’, ‘थाना टूरिज्म’, ‘मार्वल टूरिज्म’ और ग्रीफ टूरिज्म।
खर्च की भी परवाह नहीं करते लोग
यह उन जगहों पर होता है जहां कई तरह की आपदाएं, त्रासदी व दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। डार्क टूरिज्म सुनने में भले ही आपको नया लग रहा हो, लेकिन देश से लेकर विदेश तक में भी इसका चलन बहुत बढ़ चुका है। इसके लिए लोग काफी पैसा भी खर्च करते हैं। पहले लोग समुद्र, पहाड़, हरियाली की जगह उन इलाकों को देखने जाते थे, जहां प्रकृति सौंदर्य हो लेकिन आज अब लोगों की सोच में बदलाव आया है। अब लोग वहां जाना चाहते हैं, जहां कोई हादसा, प्राकृतिक आपदा या कोई मानव निर्मित दुर्घटना हुई हो या फिर बहुत बड़ा नरसंहार या भारी संख्या में मौतें हुई हों, उसे ही डार्क टूरिज्म कहा जाता है। डार्क टूरिज्म पर जाने वाले लोगों का मानना है कि वह उन जगहों पर जाकर हादसों में खुद को शामिल कर अनुभव करने की कोशिश करते हैं, इसके लिए वह उस पर आने वाले खर्च की परवाह बिल्कुल भी नहीं करते।
भारत में भी बढ़ रहा चलन
इन दिनों डार्क टूरिज्म का बाजार बहुत तेजी से बहुत बढ़ रहा है। एक अनुमान के अनुसार, डार्क टूरिज्म का बाजार अगले 10 वर्षों में बढ़कर 41 बिलीयन डॉलर यानी 3,04,000 करोड़ रुपए से भी अधिक चल जाएगा। साल 2022 में इंटरनेशनल हॉस्पिटैलिटी व्यू में छपी एक रिपोर्ट द्वारा लोग अब ऐसी जगह खोजते हैं, जहां खुद वे उस दर्द को खुद महसूस कर सके। ज्यादातर टूरिस्ट के लिए यह सिर्फ एक थ्रिल है, जैसे वह खतरनाक काम करने पहुंचे हैं। इन दोनों हमारे देश में भी डार्क टूरिज्म का चलन देखा जा रहा है। रोचक बात यह है कि इस दुनिया में ही नहीं भारत में भी ऐसी कई जगहें हैं, जहां ‘डार्क टूरिज्म’ के लिए लोग जाते हैं। अंडमान निकोबार का सेलुलर जेल द्वीप समूह पर स्थित सेलुलर जेल, अमृतसर का जलियांवाला बाग, उत्तराखण्ड की रूप कुंड झील और जैसलमेर का कुलधरा गांव, जो रातों-रात उजड़ गया था।
शैक्षिक पर्यटन से सीधा जुड़ाव
पिछले कुछ सालों से ‘डार्क टूरिज्म’ की स्टडी का हालांकि विरोध भी होने लगा है। लोगों का कहना है कि पर्यटकों के इस तरह से ऐसी जगह पहुंचने पर स्थानीय लोग पीड़ित होते हैं या यूं कहें टूरिस्ट उन्हें आहत करते हैं। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा झेल चुके इन इलाकों को काफी संवेदनशील होने के कारण उनको फिर से इस तरह की आपदा या दुर्घटना का डर सताता रहता है। डार्क टूरिज्म का युवाओं में बहुत आकर्षण है क्योंकि इसका शैक्षिक पर्यटन से इसका सीधा जुड़ाव है।
डॉर्क टूरिज्म बनता जा रहा आकर्षण का केंद्र
डार्क टूरिज्म के कई प्रकार हैं, जैसे- डार्क फन फैक्ट्रियां, डार्क प्रदर्शनियां, अंधेरी काल कोठरी, अंधेरे विश्रामगृह, अंधेरे मंदिर, अंधकार में संघर्ष स्थल, शिविर, अंधकार में आपदाएं। आपदा पर्यटन स्थल की एक विस्तृत श्रृंखला है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। डार्क प्रदर्शनियां पर्यटकों के लिए किसी भी स्थान के डर के इतिहास या घटनाओं के सम्मानजनक तरीके से सजाने का एक अच्छा अवसर देती हैं। दुनिया भर में कई ऐसे तीर्थ स्थल हैं, जो पर्यटकों के लिए अति लोकप्रिय और आकर्षण का केंद्र है। इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण यरुशलम में रूम व आदर्श डोम ऑफ द रॉक है, जो एशियाई देशों में विशेष लोकप्रिय है।
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विश्व में नरसंहार के भी कई क्षेत्र हैं, जो पर्यटकों के बीच में अत्यधिक लोकप्रिय हैं। हालांकि, यह स्पष्ट रूप से दुखद इतिहास का प्रमाण है लेकिन कई लोग इतिहास के बारे में जानने के लिए कारागंदा कजाकिस्तान जैसी जगहों पर जाना ज्यादा पसंद करते हैं। हिरोशिमा दुनिया के पहले परमाणु हमले का साक्षी है। हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरने से एक ही पल में हजारों लोग मारे गए थे, जितने कि इतिहास में किसी और आपदा में नहीं मारे गए थे। इसी प्रकार 9/11 जो दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी हमले में से एक था। डार्क टूरिज्म आकर्षण में से एक बन गया है। इसको देखने वालों की संख्या इन दिनों बढ़ती जा रही है।
ज्योतिप्रकाश खरे
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