पूरा देश इस समय अमृत महोत्सव मना रहा है। इस ऐतिहासिक समय पर महिलाओं के लिए सरकार की तरफ से नारी शक्ति वंदन विधेयक (Women Reservation Bill) पारित होने के बाद यह नए संसद भवन का पहला विधेयक बन गया। सदन के कामकाज की इससे बेहतर शुरूआत और क्या हो सकती है। संसद के दोनों सदनों में भारी बहुमत से बिल के पारित होने के बाद यह लोकतंत्र को मजबूत करने वाला कदम है। भले ही इसे पूरी तरह से लागू करने में अभी समय हो, लेकिन देश की आधी आबादी के लिए यह कदम संबल देने वाला कहा जाएगा। यह बात तो पूरी तरह से तय हो चुकी है कि देश की आजादी के अमृत काल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस ऐतिहासिक फैसले से पूरे देश की महिलाओं में आत्म सम्मान और आत्म विश्वास का भाव पैदा होगा।
महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी या एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है। विधेयक में 33 फीसदी कोटा के भीतर एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण का भी प्रस्ताव है। विधेयक में प्रस्तावित है कि प्रत्येक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती हैं। इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा। 1930 में पहली बार संसद में महिला आरक्षण की बात को उठाऐ जाने के बाद आजादी की लड़ाई के समय ही महिलाओं पर पारंपरिक संस्कृति की जिम्मेदारी का बोझ डाल कर उपनिवेशवादियों के प्रभाव से बाहर एक पवित्र स्थान दिया गया। इसके जरिए सार्वजनिक (पुरुषात्मक) और निजी (स्त्रीलिंग) विभाजन को और मजबूत किया गया।
इसके बाद नब्बे के दशक में महिलाओं के आरक्षण को लेकर खूब सवाल उठते रहे। तब गठबन्धन सरकारों के अन्तर्विरोध के चलते कई बार यह बिल लटकता रहा है। यह कानून पहली बार एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा 12 सितंबर, 1996 को 81वें संशोधन विधेयक के रूप में लोकसभा में पेश किया गया था। उस समय राष्ट्रीय मोर्चा वाली देवगौड़ा की सरकार थी तब यह बिल सबसे पहले संसद में आया था, लेकिन तब तक देवगौड़ा की सरकार गिर गई। इसके बाद भाजपा के नेतृत्व वाली खिचड़ी सरकार आई। अटल विहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दिन 13 महीने की सरकार में भी यह बिल ऐसे ही लटका रहा। इसके बाद लगातार जब तीसरी बार एनडीए की सरकार का गठन हुआ, तब भी कई मौकों पर महिला आरक्षण बिल की बात तो हुई पर यह बिल संसद में पारित नहीं हो सका। अंतिम बार कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में भी 2010 में राज्यसभा में यह विधेयक पारित तो हुआ था, लेकिन लोकसभा में इसे समर्थन नहीं मिला था। महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108वां विधेयक 2008 में मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में 2008 में पेश हुआ था, जो कि 09 मार्च को विधेयक 2010 में राज्यसभा में पारित हुआ मगर लोकसभा में पारित नहीं हो पाया। उसके बाद 2014 में लोकसभा भंग हो गई, लेकिन कांग्रेस का दावा है कि 09 मार्च 2010 को राज्यसभा में कांग्रेस नेतृत्व के प्रयासों के कारण ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पारित किया गया था, लेकिन लोकसभा में इसे समर्थन नहीं मिला।
हालांकि, विधेयक सदन द्वारा पारित होने में विफल रहा। दो साल बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 1998 में 12वीं लोकसभा में विधेयक को आगे बढ़ाया। बाद में इसे 1999, 2002 और 2003 में वाजपेयी सरकार के तहत फिर इसके लगभग पांच साल बाद, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान इस विधेयक ने फिर से कुछ जोर पकड़ा। इस बिल को 06 मई 2008 को राज्यसभा में पेश किया गया। इसके बाद बिल को 09 मई को स्टैंडिग कमेटी के पास भेज दिया गया। स्टैंडिग कमेटी ने 17 दिसंबर 2009 को इस पर अपनी रिपोर्ट पेश की। मार्च 2010 को महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में पास कर दिया गया, लेकिन लोकसभा में पास न होने के कारण यह बिल आगे नहीं बढ़ पाया।
राज्यसभा में शत-प्रतिशत समर्थन
इस बार मोदी सरकार के दौरान राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में सभी मौजूद 214 सदस्यों ने मतदान किया, जबकि इसके विरोध में एक भी मत नहीं पड़ा। लोकसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यसभा में भी यह पारित हो गया। लोकसभा में महिला आरक्षण बिल के समर्थन में 454 और केवल दो वोट विरोध में पड़े। यह दो वोट एआईएमआईएम पार्टी के असदुद्दीन ओवैसी और इम्तियाज जलील द्वारा डाले गए। इस पार्टी के लोकसभा में दो ही सदस्य हैं। नारी शक्ति वंदन अधिनियम लोकसभा के बाद राज्यसभा में सम्पूर्ण सदन के समर्थन से पारित हो गया। विधेयक के अनुसार, परिसीमन प्रक्रिया शुरू होने के बाद आरक्षण लागू होगा और 15 वर्षों तक जारी रहेगा। नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधेयक को सरकार की तरफ से पारित कराने के बाद नए संसद भवन में पेश होने वाला पहला विधेयक बन गया। नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी को अधिक सक्षम करने वाला यह कानून पार्टियों के बीच आम सहमति के अभाव के चलते 27 वर्षों से लंबित था। लोकसभा में इस बिल पर चर्चा हुई और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने बिल का समर्थन किया।
इसके साथ ही मांग की कि ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जाना चाहिए और कोटा तुरंत लागू किया जाना चाहिए। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर की सांसदों ने विधेयक का समर्थन किया, लेकिन विपक्षी सांसदों ने इसे तत्काल लागू किए जाने की मांग की। इस महिला आरक्षण बिल की जांच करने वाली रिपोर्ट में सिफारिश की गई कि ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति देने के लिए संविधान में संशोधन होने के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण दिया जाना चाहिए। साथ ही यह भी सिफारिश की है कि आरक्षण को राज्यसभा और विधान परिषदों तक बढ़ाया जाए। बता दें कि, इनमें से किसी भी सिफारिश को विधेयक में शामिल नहीं किया गया है। महिला आरक्षण पर लोगों की अलग-अलग राय है। बिल के समर्थन मे कहा जाता है कि इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार आएगा। पंचायतों पर हाल के कुछ अध्ययनों ने महिला सशक्तिकरण और संसाधनों के आवंटन पर आरक्षण का पॉजिटिव इफैक्ट दिखाया है। आजादी के 75 सालों बाद आज भी सदनों में महिलाओं की संख्या बेहद कम दिखाई देती है।
हर चुनावों के पहले उनके अधिकारों और उनकी भागीदारी को लेकर राजनीतिक दलों की तरफ से खूब दावे किए जाते हैं, लेकिन जब टिकट देने का मौका आता है तो सभी राजनीतिक दल इससे पीछे हटते नजर आते हैं। देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद से आज तक भारतीय राजनीति में महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी नहीं रही। 1952 में बनी पहली लोकसभा में 499 सांसदों में से महिला सांसदों की संख्या महज 24 थी। इसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में यह संख्या घटती-बढ़ती रही, लेकिन कभी भी यह संख्या 14 प्रतिशत से अधिक नहीं पाई गई। बीते 2019 लोकसभा चुनाव में जीतने वाली महिलाओं की संख्या अब तक की सबसे अधिक संख्या 78 रही, जो कि कुल सांसदों का मात्र 14.58 प्रतिशत है। इसकी तुलना में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव 11.23 प्रतिशत महिलाएं जीती थीं। 2014 में 8,251 प्रत्याशियों में से 668 महिलाएं थीं, जिनमें से 62 चुनाव जीतीं थीं। जबकि 2019 के चुनावों में 8,049 प्रत्याशियों में से 716 महिलाएं थीं। इस चुनाव में 222 महिलाएं निर्दलीय भी चुनाव लड़ीं। इनके अलावा 04 किन्नरों ने भी चुनाव में भाग्य आजमाया था, जिनमें एक प्रत्याशी आम आदमी पार्टी का भी था।
हालांकि, उनमें से कोई भी चुनाव नहीं जीत सका। गत् लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा ने कुल 53 महिला प्रत्याशी मैदान में उतारी थीं, जिनमें से 34 महिलाएं जीत दर्ज कर लोकसभा में पहुंची हैं। ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने 41 प्रतिशत और बीजू जनता दल ने 33 प्रतिशत महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा था। इस समय लोकसभा में कुल 82 महिला सांसद हैं। महिला आरक्षण बिल के मुताबिक, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी रिजर्वेशन लागू किया जाएगा। लोकसभा की 543 सीटों में से 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। ये रिजर्वेशन 15 साल तक रहेगा। इसके बाद संसद चाहे तो इसकी अवधि बढ़ा सकती है। यह आरक्षण सीधे तौर पर चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए लागू होगा यानी यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा। वहीं, विपक्षी दलों की तरफ से पूर्ण रूप से मिले समर्थन के बाद भी कांग्रेस समेत अन्य बड़े दलों का मानना है कि इस बिल में जानबूझकर कई पेंच फंसाए गए हैं।
आगामी लोकसभा चुनावों से लागू नहीं होगा आरक्षण
महिला आरक्षण 2029 के लोकसभा चुनाव से संभव हो सकता है। आरक्षण को अमली जामा पहनाने के लिए लंबी संवैधानिक प्रक्रिया है। इस बिल को 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की जरुरत नहीं है यानी संसद से पास होने और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन गया है, लेकिन सरकार सबसे पहले नागरिकता संशोधन कानून के रूल्स नोटिफाई करेगी। इसके बाद जनगणना का काम शुरू होगा। उसके बाद परिसीमन आयोग लोकसभा और विधानसभा परिसीमन का काम पूरा करेगा। महिला आरक्षण कानून जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही लागू होगा। इसमें काफी समय लग जाएगा। विपक्ष ने सरकार की मंशा पर कई तरह के सवाल उठाने का काम किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण बिल को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने को ऐतिहासिक क्षण बताया और कहा कि हमारे देश की लोकतांत्रिक यात्रा का एक ऐतिहासिक क्षण! 140 करोड़ भारतवासियों को बहुत-बहुत बधाई! नारी शक्ति वंदन अधिनियम से जुड़े बिल को वोट देने के लिए राज्यसभा के सभी सांसदों का हृदय से आभार।
सर्वसम्मति से इसका पास होना बहुत उत्साहित करने वाला है। इस बिल के पारित होने से जहां नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व और मजबूत होगा, वहीं इनके सशक्तिकरण के एक नए युग की शुरुआत होगी। यह सिर्फ एक कानून नहीं है, बल्कि इसके जरिए राष्ट्र निर्माण में अमूल्य भागीदारी निभाने वाली देश की माताओं, बहनों और बेटियों को उनका अधिकार मिला है। इस ऐतिहासिक कदम से जहां करोड़ों महिलाओं की आवाज और बुलंद होगी, वहीं उनकी शक्ति, साहस और सामर्थ्य को एक नई पहचान मिलेगी। वहीं, आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए और बिल को लागू कराने को लेकर आपसी टकराव भी देखने को मिल रहे हैं। जहां कांग्रेस इसे अपना बिल मान रही है, वहीं सत्ता पक्ष ने विपक्ष को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सोनिया गांधी ने कहा कि यह तो कांग्रेस की तरफ से कई साल पहले लाया गया बिल है, जिसे अब लागू किया जा सका है। वहीं कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता अलका लाम्बा ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा महिला आरक्षण और उस पर लाए गए विधेयक की पैरवी की, लेकिन बीजेपी का यह विधेयक तो महिलाओं के साथ छलावा और ओबीसी की महिलाओं के साथ अन्याय है। लाम्बा ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति खाने की थाली पर बैठा हुआ है, उसकी थाली में खाना परोस दिया गया, लेकिन उसे कहा जा रहा है कि इसे दस साल बाद खाना है।
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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने संसद में महिला आरक्षण बिल का समर्थन पूरे दिल से किया था। पवार ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री ने यह बयान दिया कि कांग्रेस और घमंडिया सहयोगियों ने बिल का समर्थन अनिच्छा से किया, लेकिन यह बात कतई सच नहीं है। सत्ताधारी भाजपा की सहयोगी और अपना दल (सोनेलाल) की लोकसभा सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने महिला आरक्षण बिल में ओबीसी आरक्षण की वकालत की है। इसके अलावा अनुप्रिया पटेल ने जाति जनगणना को अपनी पार्टी के प्रमुख एजेंडों में से एक बताया है।
श्रीधर अग्निहोत्री
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