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किसी भी शुभ कार्य से पूर्व क्यों लगाया जाता है तिलक, जानें इसके कारण और लाभ

नई दिल्लीः हिंदू धर्म में किसी भी पूजा या अनुष्ठान के समय तिलक का बेहद खास महत्व होता है। माथे पर तिलक लगाने की परंपरा हिंदू धर्म में काफी प्राचीन समय से है। प्राचीन काल में जब व्यक्ति किसी शुभ कार्य के लिए घर से बाहर निकलता था तब उसे तिलक जरूर किया जाता था। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक किसी भी शुभ कार्य के शुरू करने से पूर्व पूजा के बाद माथे पर तिलक अवश्य लगाना चाहिए। यह कार्य में शुभता का प्रतीक माना जाता है। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि माथे पर तिलक लगाने से चेतना और भी ज्यादा ऊर्जावान हो जाती है। साथ ही तिलक लगाने से मन भी शांत रहता है। माथे पर तिलक लगाने से आत्मविश्वास और आत्मबल में भी इजाफा होता है।

माथे पर तिलक लगाने का कारण तिलक हमेशा माथे के केंद्र पर लगाया जाता है। कहा जाता है कि हमारे शरीर में सात छोटे ऊर्जा केंद्र होते हैं। तिलक हमेशा माथे के बीच में लगाया जाता है। मस्तिष्क के बीच के भाग को आज्ञाचक्र कहा जाता है। इसके गुरूचक्र भी कहते हैं। यह जगह मनुष्य के शरीर के चेतना का केंद्र होता है। गुरूचक्र को भगवान बृहस्पति का केंद्र भी कहते है। भगवान बृहस्पति देवताओं के गुरू है। इसकी कारण से इसे गुरूचक्र भी कहा जाता है। इस स्थान का एकाग्रता और ज्ञान से परिपूर्ण होना आवश्यक है। इसलिए माथे पर चंदन या कुमकुम का तिलक लगाया जाता है।

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हमेशा इस उंगली से ही करना चाहिए तिलक जिस तरह पूजा या अनुष्ठान में तिलक का महत्व है। इसी तरह से इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि तिलक किस उंगली से लगायी जा रही है। माथे पर तिलक हमेशा अनामिका उंगली से ही लगानी चाहिए। अनामिका उंगली सूर्य का प्रतीक मानी जाती है। इसलिए अनामिका उंगली से तिलक लगाने से तेज और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। इसके साथ ही अंगूठे से तिलक लगाने से मान-सम्मान में वृद्धि होती है। सफेद चंदन का तिलक लगाने से मन शीतल और शांत रहता है। वहीं लाल कुमकुम का तिलक लगाने से ऊर्जा में वृद्धि होती है और प्रसन्नचित्त रहने के लिए पीला चंदन का तिलक लगाया जाता है। हल्दी का तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है। हल्दी में एंटी बैक्टीरियल तत्व पाये जाते हैं। जो संक्रामक रोगों को दूर रखता है।