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प्रार्थना केंद्र या शाला पहले खुले किसका ताला

कोरोना महामारी के कारण देश भर में की गई तालाबंदी में सबसे पहले शालाओं (स्कूलो), महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा अन्य शैत्रणिक संस्थाओं में ताले लगे, ये ताले अभी तक खोले नहीं गए हैं। राज्य की शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड ने हालांकि यह कहा है कि राज्य के सभी शैक्षणिक संस्थाओं को खोला जाए या नहीं, इसके बारे में अभी फैसला नहीं किया गया है। शैक्षणिक केंद्रों की तरह आस्था केंद्रों पर भी ताले लगे हुए हैं।

ज्ञानप्रदायी केंद्रों को खोलने के लिए कोई खास दिलचस्पी न तो सरकार की ओर से दिखायी जा रही है और न ही शैक्षणिक संस्थाओं की ओर से, लेकिन राज्य के प्रार्थना स्थल खोलने के लिए राज्य के विरोध पक्ष भाजपा की ओर से राज्यव्यापी आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए भाजपा की ओर मंदिरों के सामने भजन- कीर्तन किया गया। वंचित बहुजन आघाड़ी की ओर से भी राज्य के प्रार्थना स्थल खोलने की मांग सबसे पहले की गई थी, लेकिन मार्च से बंद ज्ञान केंद्रों को खोलने के लिए न तो विपक्ष की ओर से कोई आंदोलन किया गया और न ही किसी सामाजिक संगठन की ओर से इसकी पहल की गई।

हालांकि जुलाई माह में सरकार ने स्कूल खोलने की कोशिश की लेकिन सरकार के इस फैसले का विरोध गया, जिसके परिणामस्वरूप स्कूलों में फिर से ताले लगा दिए गए। बच्चों तथा वरिष्ठ नागरिकों को कोरोना ज्यादा प्रभावित करता है, इसलिए राज्य सरकार ने स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य का हवाला देते हुए दीपावली तक स्कूलों को ताले ही लगे रहना बेहतर समझा है। कहा जा रहा है कि दीपावली के बाद चरणबद्ध तरीके से स्कूल-कॉलेज खोले जाएंगे, लेकिन अभी यह तय नहीं है कि शैक्षणिक संस्थानों के खुलने का दिन कौन सा होगा।  कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों को अब इस बात की चिंता सताने लगी है कि कहीं उनका यह वर्ष बेकार न चला जाए। हालांकि राज्य सरकार ने छमाही परीक्षा में सभी को बगैर परीक्षा लिए पास करने के आदेश दिए हैं और इस सरकारी फरमान को स्वीकार करते हुए सभी को पास कर भी दिया जाएया। सामान्य तौर पर दीपावली से पहले छमाही परीक्षा होती है और दीपावली के बाद परीक्षाफल भी सामने आ जाता है।

मार्च माह में बारहवीं तथा दसवीं बोर्ड की परीक्षाएं साधारण तौर पर होती हैं, लेकिन इस बार यह तय माना जा रहा है कि 12 वीं तथा 10 वीं बोर्ड की परीक्षाएं मार्च माह में नहीं होंगी। दीपावली के बाद अगर स्कूल- कॉलेज खुले तो भी पाठ्यक्रम तीन माह में पूरा होना संभव नहीं है, इसलिए मार्च माह में बोर्ड की परीक्षाएं हो पाना असंभव ही लग रहा है। बढ़ती महगाई के कारण पिछले दो वर्षों में सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने वाले बच्चों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई है। राज्य में सन् 2018 में सरकारी स्कूलों में शिक्षा लेने वालों की संख्या 53.2 थी, जो 2020 में बढ़कर 63.8 प्रतिशत हो गई। प्रतिशत देखने पर इस बात का अंदाजा हो जाता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या पिछले दो वर्षो में बहुत ज्यादा बढ़ी है, लेकिन यहां यह सवाल भी उठता है सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में इतनी वृद्धि क्यों हुई, क्या सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा की पद्धति में इतना परिवर्तन हो गया है कि माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सच तो यह है कि प्राइवेट स्कूलों में ली जाने वाली फीस इतनी ज्यादा होती है कि सामान्य व्यक्ति वह भरने में सफल नहीं हो पाता।

सरकार ने कोरोना की तालाबंदी के मद्देनज़र ऑनलाइन शिक्षा पद्धति तो लायी पर इस पद्धति का लाभ ज्यादा विद्यार्थी नहीं उठा सके हैं, एक तो नेटवर्क की समस्या और दूसरे सभी विद्यार्थियों के पास स्मार्टफोन का न होना, इस कारण ऑनलाइन शिक्षा केवल 10-15 प्रतिशत लोगों तक ही पहुंच पायी है। ऑनलाइन पढ़ाई गांव के बच्चों के लिए दूर का ढोल सुझाना जैसी ही साबित हुई है। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के पास ऑनलाइन सुविधा न होने की वजह से लॉकडाउन में दी गई शिक्षा अधिकांश विद्यार्थियों के लिए केवल टाइम पास ही साबित हुई है। जिन लोगों ने राज्य के प्रार्थना स्थल खोलने के लिए आंदोलन किया, क्या वे राज्य के ज्ञान मंदिर खोलने का स्वर बुलंद नहीं कर सकते थे। मंदिर खोलने के लिए विपक्ष के नेता राज्य के विभिन्न स्थलों पर आंदोलन करने के लिए गए, लेकिन उनमें से एक ने भी स्कूल खोलने की पैरवी नहीं की। छोटे बच्चों पर कोरोना का प्रभाव ज्यादा प्रभाव होता है, इसलिए उनकी कक्षाएं बंद रखकर अन्य कक्षाएं तो शुरु की ही जा सकती है।

मंदिर खुलवाने के लिए भाजपा को राज्य भर में आंदोलन छेड़ना पड़ा, लेकिन मदिरालय खोलने के लिए सरकार को किसी से पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी। सरकार ने मदिरालय खोले तो कोहराम मच गया। शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार के इस फैसले का खुला विरोध हुआ, जब सरकार को इस बात का आभास हो गया कि उसके इस फैसले से जनता प्रसन्न नहीं है, लॉकडाऊन के बीच जब शराब की दुकानें खुली तो शराब के शौकीनों ने इतनी बड़ी भीड़ लगायी कि उसे नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठियां तक चलनी पड़ीं।

सरकार ने अपनी खाली तिजोरी भरने के लिए रास्ता तो निकाला, लेकिन न वह रास्ता ठीक नहीं था, अब सरकार ने जिम, होटल भी खोल दिए हैं, ऐसे में ज्ञान तथा आस्था केंद्रों को कब खोला जाएगा, ऐसा सवाल लोगों के बीच से उठाया जा रहा है। सच तो यह है कि जिन लोगों ने आस्था केंद्रों, प्रार्थना स्थलों को खोलने के लिए राज्य भर में आंदोलन किया, अगर वे ज्ञान के मंदिर को खुलवाने के लिए आगे आए होते तो शायद उनकी ज्यादा सराहना हुई होती।

वास्तव में आस्था और ज्ञान दोनों एक ही तराजू के दो पलड़े हैं। कुछ लोग आस्था के पलड़े को मजबूत मानते हैं तो कुछ लोग ज्ञान के पलड़े को, इसलिए आस्था तथा ज्ञान रूपी पलड़े कभी एक स्थिति में नहीं आते। ज्ञान न हो तो आस्था को भी नहीं समझा जा सकता, इस लिहाज से ज्ञान का पलड़ा आस्था से भारी कहा जाएगा। ज्ञान के मंदिर में भावी पीढ़ी, देश का भविष्य की पौध तैयार होती है, जबकि आस्था के मंदिर में सुख- शांति तथा विश्वास का वास होता है, इनको मंदिर में न जाकर भी पाया जा सकता है, लेकिन जहां तक ज्ञान का सवाल है तो उसके लिए गुरु का होना जरूरी है, इसलिए ज्ञान का मंदिर पहले खुलना चाहिए और आस्था का बाद में खुलना चाहिए।

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बहरहाल अभी राज्य में ज्ञान और आस्था दोनों ही स्थलों पर ताले लगे हुए हैं, अब देखना यह है कि जिन आस्था केंद्रों को खुलवाने के लिए आंदोलन किया गया, वे पहले खुलते हैं या फिर राज्य की शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड देश के भविष्य को तैयार करने वाले ज्ञान के मंदिरों को पहले खोलने का फरमान जारी करती हैं।

सुधीर जोशी