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पेरिस में कौन दिखाएगा दम, इन खिलाड़ियों से है पदक की आस

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ओलंपिक खेल अब बहुत दूर नहीं है। दुनिया में इसे खेलों का महाकुंभ कहा जाता है। इस बार 26 जुलाई से 11 अगस्त तक फ्रांस की राजधानी पेरिस में इसका आयोजन हो रहा है। इसमें हिस्सा लेने वाले सभी देश अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। ये खेल हर चार साल बाद जुलाई-अगस्त में होते हैं। इस नाते इसे ग्रीष्मकालीन ओलंपिक भी कहते हैं। 15 दिनों तक विश्व के खेल प्रेमियों की नजरें टीवी स्क्रीन पर होती हैं। किस देश को कितने पदक मिले, किस खिलाड़ी ने किसे पछाड़ा, कितने रिकॉर्ड टूटे, इन्हीं सबकी चर्चा आम रहती है। दरअसल, खेलों के इस महाकुंभ में इतना आकर्षण, रोमांच और चकाचौंध होता है कि खेलों में दिलचस्पी रखने वाला कोई भी शख्स इससे बच नहीं पाता। इस आयोजन को भव्य बनाने के लिए मेजबान देश को सालों पहले से तैयारी करनी पड़ती है। आतंकवाद को देखते हुए सुरक्षा एक अलग मुद्दा होता है। ओलंपिक शांति से और सही-सलामत निपट जाए तो मेजबान देश चौन की नींद सोता है। यह उसके लिए बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। 

ओलंपिक में खेलने के लिए कोटा हासिल करना होता है। कुछ भारतीय खिलाड़ी क्वॉलीफाई कर चुके हैं। कुछ के लिए क्वॉलिफिकेशन मैच होने बाकी हैं। एक वह भी दौर था, जब भारतीय खिलाड़ी खाली हाथ लौट आते थे लेकिन बीजिंग ओलंपिक 2008 से तस्वीर बदली है। अब हर ओलंपिक में हमें पदक मिल रहे हैं। पिछला ओलंपिक 2021 में जापान की राजधानी टोक्यो में हुआ था। वैसे तो शेड्यूल के हिसाब से इसे 2020 में होना था लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे आगे खिसकाना पड़ा। पूरे एक साल की देर हो गई। अब तीन साल बाद 2024 के ओलंपिक पेरिस में हो रहे हैं। आइए भारत के नजरिए से देखते हैं कि पेरिस में क्या संभावनाएं हैं। किस खेल में हमें पदक की उम्मीद करनी चाहिए। टोक्यो में भारत को कुल सात पदक हासिल हुए थे, जिसमें भाला फेंक यानी जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा का स्वर्ण पदक सबसे खास था। हरियाणा का युवक एकदम से स्टार बनकर उभर आया। पेरिस में पदकों की संख्या एक दर्जन तक होने की बात कही जा रही है। केन्द्र सरकार ने ‘खेलो इंडिया’ अभियान चलाकर इस दिशा में ठोस काम किया है। अब हमारे एथलीट विश्व स्तर पर शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं।

हॉकी में हमेशा रहती है पदक की उम्मीद 

भारत का ओलंपिक में रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है। आजादी के बाद हॉकी ही ऐसा खेल है, जिसमें हमारी बादशाहत रही है और इसमें पदक मिलना तय रहता था। वह हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद का दौर था, मगर बीच के कुछ वर्षों में भारतीय हॉकी रसातल में पहुंच गई। 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में भारत लुढ़क कर सातवें पायदान पर आ गया। इसके बाद मास्को ओलंपिक-1980 में भारत ने हॉकी में स्वर्ण पदक जीता, मगर यह जीत इसलिए फीकी रही क्योंकि यूरोप के कई प्रमुख देशों ने मास्को ओलंपिक का बहिष्कार कर दिया था। ऐसे में भारत के स्वर्ण पदक में वह चमक नहीं थी। 1980 के बाद हॉकी में पदकों का सूखा पड़ गया। हमारी टीम का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। आखिरकार 41 साल के बाद टोक्यो ओलंपिक में हमारी पुरुष हॉकी टीम ने कोई पदक जीता। हालांकि, यह कांस्य पदक था लेकिन संतोष इस बात का रहा कि इतने वर्षों के बाद हॉकी में कोई तो पदक मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद फोन करके टीम को बधाई दी। बीच में एक दौर (2008 का बीजिंग ओलंपिक) ऐसा भी आया कि हमारी हॉकी टीम क्वॉलीफाई ही नहीं कर सकी यानी हॉकी स्पर्धा में भारत की टीम नहीं जा सकी। पिछले कुछ वर्षों से

हॉकी टीम ने विश्व स्तर पर बढ़िया प्रदर्शन किया है।




विदेशी कोच की सेवाएं लेने से फर्क पड़ा है। टोक्यों में कांस्य पदक मिलना इसका सबूत है। यही वजह है कि हम पेरिस में भी पदक की उम्मीद लगाए हैं। अभी हाल ही में ओलंपिक की तैयारियों को परखने के लिए भारतीय हॉकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था। वहां पांच मैचों की सीरीज खेली गई, जिसमें भारत को हार मिली, पर हमारी टीम ने कड़ा मुकाबला किया। विश्व में ऑस्ट्रेलिया ही ऐसी टीम है, जिससे भारत जीत नहीं पाता है। पाकिस्तान, जर्मनी, नीदरलैंड, स्पेन आदि को हम हरा देते है, पर कंगारू टीम हमेशा भारी पड़ती है। अगर पेरिस में पदक जीतना है तो कंगारू किले को ध्वस्त करना ही होगा। चूंकि भारत ने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था इसलिए हमारी पुरुष हॉकी टीम को ओलंपिक में सीधा प्रवेश मिल गया है। पिछले कुछ सालों से भारत की महिला हॉकी टीम में काफी निखार आया है।

करीब 14 साल पहले ‘चक दे इंडिया‘ नामक फिल्म महिला हॉकी पर बनी थी। शाहरुख खान अभिनीत यह फिल्म सुपर हिट रही थी। इससे देश में महिला हॉकी के पक्ष में बढ़िया माहौल बना। हालांकि, पिछले टोक्यो ओलंपिक में हमारी टीम पदक जीतने से चूक गई थी। रानी रामपाल के नेतृत्व में भारतीय टीम चौथे स्थान पर रही। हांगझोउ एशियाई खेलों में महिला टीम ने कांस्य पदक जीता, मगर दुख की बात है कि यह टीम पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकी। नई कप्तान सविता पूनिया की अगुवाई में टीम अच्छा खेल दिखा रही है। कई विदेशी टीमों को पराजित भी किया है, पर दुर्भाग्य से कभी-कभार छोटी गलती भारी पड़ जाती है। जनवरी में रांची के बिरसा मुंडा स्टेडियम में क्वॉलिफिकेशन के मैच खेले गए थे। ब्रांज मेडल के मुकाबले में जापान ने भारत को 1-0 से हरा कर ओलंपिक में खेलने का सपना तोड़ दिया था।

नीरज चोपड़ा से फिर रहेगी पदक की उम्मीद

टोक्यो ओलंपिक के एकमात्र स्वर्ण पदक विजेता भारतीय एथलीट नीरज चोपड़ा से फिर देश को काफी उम्मीदें हैं। भाला फेंक में विश्व में नीरज से बड़ा कोई खिलाड़ी नहीं है। एशियाड में भी उन्होंने स्वर्ण जीता था इसलिए पेरिस में उनका दावा सबसे मजबूत है। उनके बाद किशोर जेना का नाम है, जिन्होंने एशियाई खेलों में रजत पदक जीता था। ये दोनों भारतीय कोई पदक अवश्य लाएंगे, ऐसा विश्वास हम सभी को है। हरियाणा के युवा नीरज पिछले ओलंपिक में सनसनी बन कर उभरे थे। ओडिशा के किशोर जेना उनसे थोड़ा ही पीछे हैं। इन दोनों को ओलंपिक में सीधा प्रवेश मिल गया है। उम्मीद है कि ये दोनों एथलीट देश को निराश नहीं करेंगे। भारतीय एथलीट और पुरुष हॉकी टीम को मिला कर अब तक 43 खिलाड़ियों ने पेरिस ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई कर लिया है। इसमें भार उठाने वाली मीराबाई चानू भी हैं। 

टेबल टेनिस में पुरुष और महिला दोनों टीमें ओलंपिक में उतरेंगी। अभी तक चार महिला मुक्केबाज निकहत जरीन, प्रीति पवार, परवीन हुडा और लवलीना बोरगोहेन ने ओलंपिक कोटा हासिल कर लिया है। बोरगोहेन पिछले ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता हैं। कोई पुरुष मुक्केबाज अभी कोटा हासिल नहीं कर पाया है। विश्व चौपिंयनशिप के एकमात्र रजत पदक विजेता अमित पंघाल सहित नौ भारतीय मुक्केबाजों के पास पेरिस ओलंपिक का टिकट पाने का आखिरी मौका है। पंघाल की बैंकॉक में 25 मई से 02 जून तक होने वाले आखिरी ओलंपिक क्वॉलिफाइंग टूर्नामेंट के लिए टीम में वापसी हुई इै। महिला कुश्ती में अंतिम पंघल का जाना तय है। पुरुष कुश्ती में बजरंग पुनिया क्वॉलिफाई नहीं कर सके।




विनेश फोगाट को लेकर विवाद चल रहा है। उनका आरोप है कि कुश्ती महासंघ उनके सहयोगी स्टाफ को मान्यता पत्र जारी नहीं करके उन्हें ओलंपिक में जाने से रोकना चाहता है। विनेश ने अपने खिलाफ डोपिंग की साजिश रचने की आशंका जताई है। ओलंपिक कोटा पाने के लिए वह प्रयासरत हैं। निशानेबाजी में मनु भाकर अपनी किस्मत आजमाएंगी। प्रियंका गोस्वामी, विकास सिंह, मुरली श्रीशंकर, अविनाश साबले, अर्शप्रीत सिंह, सर्विन सेबेस्टियन, परमजीत विष्ट, पारूल चौधरी और रामबाबू जैसे एथलीट पेरिस का टिकट पा चुके हैं। एथलीटों से हमें ज्यादा पदक की उम्मीद नहीं रहती लेकिन किस्मत ने साथ दिया तो इस बार टोक्यो से अधिक पदक अवश्य आएंगे। एशियाई खेलों में हमारे एथलीटों ने कमाल का प्रदर्शन किया था। 

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इसके आधार पर उनसे उम्मीद की जा सकती है। पेरिस में भारत की ओर से बैडमिंटन टीम का अंतिम रूप से चयन होना बाकी है। दरअसल, 01 मई 2023 से 30 अप्रैल 2024 तक की रैंकिंग के आधार पर बैडमिंटन खिलाड़ियों को वहां जाने का मौका मिलेगा इसलिए फाइनल सूची अप्रैल माह के अंत में आएगी। कुछ संभावित नाम हैं, जिनके ओलंपिक खेलने की पूरी उम्मीद है। भारत की स्टार शटलर पीवी सिंधू पूरी तरह आश्वस्त हैं कि वह पेरिस जाएंगी। सिंधू दो ओलंपिक की पदक विजेता हैं। रियो ओलंपिक 2016 में उन्हें रजत और टोक्यो 2021 में कांस्य पदक मिला था। मेंस सिंगल में एचएस प्रणय और लक्ष्य सेन की दावेदारी पक्की लग रही है। महिला सिंगल में सिंधू खुद उतरेंगी। हालांकि, अब उनका खेल ढलान पर है। इसके बावजूद उनसे हमें हमेशा पदक की आशा रहती है। मेंस डबल में सात्विक साईंराज और चिराग शेट्टी का नाम है। इस जोड़ी ने हांगझोउ एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता थी, इसलिए हम ओलंपिक में इनसे पदक की उम्मीद कर सकते हैं।    

आदर्श प्रकाश सिंह


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