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पौष्टिकता से भरपूर है सिंघाड़ा, कई बीमारियों के लिए फायदेमंद

बेगूसरायः पानी फल कहे जाने वाले सिंघाड़ा बहुत फायदे मंद होता है। यह कई बीमारियों में भी फायदेमंद साबित होता है। पानी में पैदा होने वाला तिकोने आकार का फल है सिंघाड़ा। इसके सिर पर सींग की तरह दो कांटे होते हैं, जो छिलके के साथ होते हैं। तालाबों तथा रुके हुए पानी में पैदा होने वाले सिंघाड़े के फूल अगस्त में आ जाते हैं, जो सितम्बर-अक्तूबर में फल का रूप ले लेते हैं। छिलका हटाकर जो बीज पाते हैं, वही कहलाता है सिंघाड़ा।

जोखिम की खेती है सिंघाड़ा-

पानी भरने तक सिंघाड़े की बेल ऊपरी सतह पर फैल जाती है। बेल पर निपजे सिंघाड़ों को तोड़ने के लिए छोटी नाव पर बैठकर जाना पड़ता है। वह भी नाव में एक ही व्यक्ति सवार होता है। तोड़ते समय काफी सतर्कता बरतनी पड़ती है, क्योंकि नदी में करीब 20 फीट पानी भरा रहता है। जिसके कारण इसे तोड़कर पानी से निकालना जोखिम भरा काम है।

माना जाता है फलाहार, सुखाकर बनाया जाता है आटा-

पानी में पैदा होने वाला तिकोने आकार के फल सिंघाड़ा के दो हिस्से में सींग की तरह दो कांटे छिलके के साथ होते हैं। तालाबों तथा रुके हुए पानी में पैदा होने वाले सिंघाड़े के फूल अगस्त में आकर सितम्बर-अक्तूबर में फल का रूप ले लेता है। सिंघाड़ा अपने पोषक तत्वों, कुरकुरेपन और अनूठे स्वाद की वजह से खूब पसंद किया जाता है। व्रत-उपवास में सिंघाड़े को फलाहार में शामिल किया जाता है। इसके बीज को सुखाकर और पीसकर बनाए गए आटे का सेवन किया जाता है। असल में एक फल होने के कारण इसे अनाज नहीं मान कर फलाहार का दर्जा दिया गया है।

पौष्टिकता से भरपूर एवं कई बीमारियों में भी फायदेमंद-

सिंघाड़ा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-बी एवं सी, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस जैसे मिनरल्स, रायबोफ्लेबिन जैसे तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। आयुर्वेद में कहा गया है कि सिंघाड़ा में भैंस के दूध की तुलना में 22 प्रतिशत अधिक खनिज लवण और क्षार तत्व पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे अमृत तुल्य बताते हुए पौष्टिक तत्वों का खजाना बताया है। इस फल में कई औषधीय गुण हैं, जिनसे शुगर, अल्सर, हृदय रोग, गठिया जैसे रोगों से बचाव करता है। इसके अलावा थायरॉयड और घेंघा रोग, गले की खरास, टॉन्सिल, बाल झड़ने की समस्या, फटी एड़ियों, बुखार और घबराहट में फायदेमंद होने के साथ वजन बढ़ाने का भी रामवाण उपाय है।

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गर्भवती महिलाओं के लिए वरदान-

गर्भाशय की दुर्बलता व पित्त की अधिकता से गर्भावस्था पूरी होने से पहले ही जिन स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है, उन्हें सिंघाड़ा खाने से लाभ होता है। इसके सेवन से भ्रूण को पोषण मिलता है और वह स्थिर रहता है। सात महीने की गर्भवती महिला को दूध के साथ या सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से लाभ मिलता है। सिंघाड़े के नियमित और उपयुक्त मात्र में सेवन से गर्भस्थ शिशु स्वस्थ और सुंदर होता है।