Jammu-Kashmir: रोशनी के त्योहार दीपावली के मौके पर घर मिट्टी के दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है। अमावस्या की अंधेरी रात में दीयों की जगमगाती रोशनी चारों ओर सब कुछ रोशन कर देती है। अंधेरे को चीरते खूबसूरत दीयों के बिना दीपावली का त्योहार अधूरा सा लगता है। पिछले कुछ सालों से कोरोना महामारी के चलते लोगों ने जहां चीनी चीजों का पूरी तरह से बहिष्कार कर दिया है, वहीं अब स्वदेशी संस्कृति को अपना रहे हैं।
Jammu-Kashmir: बाजारों में मिट्टी के दीये की बढ़ी मांग
जम्मू-कश्मीर के जम्मू संभाग में मिट्टी के दीये बनाने वालों का काम पूरी तरह से ठप पड़ा था, लेकिन कोरोना महामारी के बाद इंसान को अपनी सभ्यता और पारंपरिक चीजों को अपनाने और चीनी चीजों का बहिष्कार करने की सीख मिली। जम्मू में आज भी दीपावली का त्योहार पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। आज भी भारतीय परंपरा के अनुसार चीनी लाइटों की चकाचौंध के बीच दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों का विशेष महत्व है और इसके बिना दीपावली का त्योहार अधूरा रहता है।
यही वजह है कि दीपावली को लेकर शहरी क्षेत्र में मिट्टी के दीयों की खूब दुकानें सजने लगी हैं। दीपावली पर लोगों के घरों में मिट्टी की खुशबू और दीयों की टिमटिमाहट देखने को मिलेगी। शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के बाजारों में मिट्टी के दीये बड़ी संख्या में बिक रहे हैं। जम्मू संभाग में कुम्हार समुदाय के लोग इन मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम करते हैं, दीपावली के त्योहार से पहले कुम्हार समुदाय के लोग रंग-बिरंगे मिट्टी के दीये बनाने में व्यस्त हो जाते हैं।
चाइनीज सामान से तौबा कर रहे लोग
कठुआ के कुम्हार सोमराज, राजकुमार ने बताया कि पहले मिट्टी के दीयों का चलन पूरी तरह से खत्म हो गया था, दीपावली के त्योहार पर सभी लोग चाइनीज लाइटें, मोमबत्ती जलाकर इस त्योहार को मनाते थे और मां लक्ष्मी की पूजा करने के लिए एक या दो मिट्टी के दीये ही ले जाते थे, लेकिन अब लोग जागरूक हो गए हैं, अब उन्हें चाइनीज सामान से नफरत है। अब दीपावली पर एक बार फिर से मिट्टी के दीयों की परंपरा लौट आई है।
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महामारी ने किया लोगों को परेशान
कोरोना महामारी से पहले चाइनीज सामान ने पूरे बाजार पर कब्जा कर लिया था। दीपावली के त्योहार से पहले बाजार में हर जगह दुकानों पर चमचमाती चाइनीज लाइटें नजर आती थीं, जबकि मिट्टी के दीयों का चलन फीका पड़ रहा था। इसी बीच 2020 में कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी, जो चीन से आई थी।
जिसके बाद लोगों ने चीनी सामान का बहिष्कार किया और पारंपरिक दीये बनाने का चलन एक बार फिर वापस आया और कुम्हार समुदाय की किस्मत चमक गई, इसीलिए तो कहा जाता है कि भगवान के घर देर है पर अन्याय नहीं। वोकल फॉर लोकल के साथ लोग चीनी सामान का बहिष्कार कर रहे हैं और लोगों का रुझान पारंपरिक मिट्टी के दीयों की ओर भी है। इस बार कारीगर आकर्षक डिजाइन और रंग-बिरंगे रूप में दीये बना रहे हैं।
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