नोएडाः एक तरफ जहां सरकार है आम जनता को सहूलियत देने की बात करती है। वही लगातार आम आदमी का बजट बिगड़ता जा रहा है। चाहे सब्जियां (Vegetable) हो या फिर अनाज, खेत से किचन तक पहुंचने की प्रक्रिया में इनके दाम जमीन से आसमान तक पहुंच जाते हैं। खेत से लेकर मंडी, मंडी से लेकर थोक व्यापारी और थोक व्यापारी से रेहड़ी पटरी तक पहुंचने में सब्जियों और अनाज के दाम कई गुना बढ़ जाते हैं। किसान खेत से निकालकर अपनी सब्जियों को मंडी तक लेकर आता है, लेकिन इस प्रक्रिया में वह खेत में लगी लागत मंडी तक लाने का ट्रांसपोर्टेशन चार्ज जोड़कर उसे मंडी में लाकर आढ़ती तक पहुंचाता है।
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ऐसे बढ़ जाते हैं सब्जियों के दाम
उत्तर प्रदेश की अगर बात करें तो यहां पर मंडी समितियों में किसान के सामान पर 2.5 परसेंट लिया जाता था और अड़ाती भी अपना 2.5 परसेंट लेता है। यानी समान का कुल दाम का 5 प्रतिशत दाम अपने आप बढ़ जाता है। किसानों को सहूलियत देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने मंडी समिति के 2.5 प्रतिशत को कम करके 1.5 प्रतिशत कर दिया है। यानी कि किसानों को अब कुल दाम का 5 प्रतिशत की जगह 4 प्रतिशत ही देना होता है। बावजूद इसके खेत से निकलने वाला सामान जब आम जनता के किचन तक पहुंचता है तो उसका दाम आसमान तक पहुंच जाता है। मंडी समितियों में किसान के अनाज को बड़े और थोक विक्रेता व्यापारियों को बेचा जाता है और उनके साथ साथ फुटकर व्यापारी भी सामान लेकर जाते हैं जो अपने ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा और साथ-साथ सामान को बेचने की पैकेजिंग के साथ सामान का दाम वसूल करते हैं।
ऐसे पहुंचे सब्जियों के दाम आसमान पर
खेत से लेकर किचन तक इन लम्बी कड़ियों के चलते जिन सामान के दाम उदाहरण के तौर पर 10 रुपए हैं वह बढ़ते बढ़ते 25 से 30 रुपए पहुंच जाते हैं। साथ ही साथ कई बार खराब मौसम ट्रांसपोर्टर्स की हड़ताल पेट्रोल डीजल के बढ़े दाम यह सभी बरे बड़े कारण होते हैं। जिनके चलते सामान के दाम बढ़ जाते हैं। कुछ दिनों पहले ही दिल्ली एनसीआर में 3 दिनों तक लगातार बारिश होती रही, इस दौरान भी कई ऐसी सब्जियां थी जो खेत में पड़े पड़े ही सड़ गई और वह मंडी तक नहीं पहुंच पाए जिसकी वजह से कई सब्जियों के दाम आसमान पर पहुंच गए। अगर बात करें तो आम जनता को ही परेशानी झेलनी पड़ती है। खेत से किचन तक का सफर काफी महंगा होता जा रहा है और आम आदमी का बजट लगातार बिगड़ रहा है।
गाजियाबाद मंडी के आढ़ती एसपी यादव अपने बताया की किसान जब अपने सामान को लेकर मंडी पहुंचता है तो वह उसमें खेत में लगने वाले दाम, लेबर का पैसा और मंडी तक लाने का शुल्क सभी जोड़कर यहां पहुंचाता है। यहां पर किसानों से आढ़ती ढाई परसेंट लेते हैं और मंडी समिति डेढ़ परसेंट लेती है। जिसके बाद सामान (Vegetable) के दाम बढ़ने लगते हैं।
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