कोलंबोः पड़ोसी देशों के साथ भारत की वैक्सीन कूटनीति की सार्थक पहल के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। इस कड़ी में श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट के वेस्टर्नन कंटेनर टर्मिनल के विकास का काम भारत को मिल गया है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन के कर्ज में फंसे श्रीलंका ने दबाव के बावजूद भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। इस टर्मिनल का विकास भारत और जापान के संयुक्त उद्यम वाली कंपनी द्वारा किया जाएगा।
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण श्रीलंका के कोलंबो की परियोजना 35 साल के पट्टे पर भारत को देगा। अधिकृत बयान के अनुसार श्रीलंका मंत्रिमंडल ने सोमवार को कोलंबो साऊथ पोर्ट के वेस्ट कंटेनर टर्मिनल के विकास को मंजूरी दी है।
बयान के अनुसार बिल्ट, ऑपरेट, ट्रांसफर (बीओटी) के आधार पर प्रस्तावित परियोजना को समिति से मंजूरी मिलने के बाद उसे भारतीय उच्चायोग और जापानी दूतावास को भेजा गया था। इस संबंध में अडाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड के प्रस्ताव को भारतीय उच्चायोग ने मंजूरी दे दी। कुछ लोगों ने भारतीय उच्चायोग द्वारा मंजूर किए जाने के उल्लेख पर आश्चर्य जताया।
उनका कहना था कि श्रीलंका में निवेश का फैसला यहां की सरकार करती है न कि भारतीय उच्चायोग। इससे पहले श्रीलंका पोर्ट्स अथारिटी ने पिछली सिरिसेन सरकार के समय मई 2019 में भारत और जापान के साथ इस बंदरगाह पर पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) के निर्माण का एक करार किया था। ट्रेड यूनियनों के विरोध के कारण उस समझौते को प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पिछले महीने रद्द कर दिया। इसको लेकर भारत और जापान ने नाराजगी भी जाहिर की थी।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में समर्थन की उम्मीद
श्रीलंका ने मंगलवार को उम्मीद जताई कि जब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) इस महीने उससे संबंधित अपना नया जवाबदेही और सुलह प्रस्ताव रखेगा तो भारत उसके साथ खड़ा होगा। इससे कुछ ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में लिट्टे के साथ सशस्त्र संघर्ष के अंतिम चरण के दौरान मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कठोर कदमों का आह्वान किया था।
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सरकारी प्रवक्ता एवं मंत्री केहलिया रामबुकवेला ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्रों में देश के खिलाफ लाए जाने वाले प्रस्ताव पर श्रीलंका सरकार को भारत सरकार से समर्थन की उम्मीद है।