उत्तर प्रदेश राजनीति

मायावती का बड़ा दांव: BSP के बड़े ब्राह्मण चेहरे सतीश मिश्रा की पत्नी को सियासी मैदान में उतारा, जानिए क्या है प्लान ?

लखनऊः उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल अपने समीकरणों को दुरूस्त करने में जुट गए हैं। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने भी भाजपा की तर्ज पर हिन्दुत्व की राह पर चलती दिखाई दे रही है। इस तर्ज पर बसपा सुप्रीमों व यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी बड़ा दांव खेला है। मायावती ने पार्टी में खुद के बाद एक महिला के तौर पर BSP के बड़े ब्राह्मण चेहरे महासचिव सतीश चंद मिश्रा की पत्नी कल्पना को राजनीति में उतार दिया है।

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हालांकि, इसका अभी कोई अधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है लेकिन सार्वजनिक तौर पर मंगलवार को लखनऊ में कल्पना मिश्रा बसपा के महिला प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन को लीड करती नजर आई। इसके बाद सियासी गलियारे में कल्पना मिश्रा की सियासी एंट्री की चर्चा तेज हो गई है। कहा जा रहा है कि सतीश मिश्रा की पत्नी भी उनके साथ बसपा में शामिल हो चुकी हैं।

प्रबुद्ध सम्मेलन कर ब्राह्मणों को साधने में जुटी बसपा

यूपी में ब्राह्मणों को साधने के लिए बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा लगातार 'प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन' कर रहे हैं। वे यूपी सरकार में ब्राह्मणों के उत्पीड़न का मुद्दा उठा रहे हैं। कानपुर के बिकरु कांड में आरोपी खुशी दुबे की रिहाई का भी मुद्दा उठाया था। कल्पना मिश्रा ने भी लखनऊ में उन्हीं मुद्दों को उठाया जिसे अपने प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में सतीश मिश्र उठा रहें हैं।

दरअसल यूपी में कांग्रेस प्रियंका गांधी के नाम पर ही चुनाव लड़ रही है। जबकि भाजपा में भी केंद्र से लेकर योगी सरकार और संगठन में तमाम महिला चेहरे हैं लेकिन बसपा में मायावती के अलावा कोई दूसरा बड़ा महिला चेहरा नहीं है जो सीधे महिलाओं से कनेक्ट हो सके। ऐसे कल्पना मिश्रा महिला होने के नाते महिला के इंसाफ की बात करें तो महिलाओं से बसपा ज्यादा आसानी से जुड़ सकती है। आइए जानते हैं बसपा को कल्पना मिश्रा की जरुरत क्यों पड़ी?…

मायावती के बाद दूसरा बड़ा चेहरा

कल्पना मिश्रा की बसपा में सियासत की शुरुआत को सार्वजनिक उनके पति सतीश मिश्रा ने सोशल मीडिया पर किया है। जाहिर है अगर यह कल्पना मिश्र की राजनीति एंट्री है तो फिर कल्पना बसपा में मायावती के बाद दूसरा बड़ा चेहरा होंगी। इसके पीछे वजह भी है। बसपा में सतीश मिश्रा को मायावती के बाद दूसरे नंबर का नेता माना जाता है। पार्टी के पास कोई बड़ा असरदार महिला चेहरा भी नहीं है।

कल्पना से फायदा होगा या नुकसान

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कल्पना मिश्रा महिला भी हैं और ब्राह्मण भी। सतीश मिश्रा अपने प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में खुशी दुबे को इंसाफ दिलाने की बात करते हैं लेकिन यही बात जब कल्पना मिश्रा करेंगी तब शायद ज्यादा असरदार होगी। एक महिला होने के नाते महिला के इंसाफ की बात करें तो महिलाओं से बसपा ज्यादा आसानी से जुड़ सकती है। बसपा की विचारधारा में यकीन रखने वाली महिलाओं तक वो आसानी से पहुंच सकती हैं। मायावती के लिए हर जगह पहुंचना मुमकिन नहीं है, लेकिन कल्पना मिश्रा यह काम आसानी से कर सकती हैं। जानकार कहते हैं कि शहरों में महिलाओं के बीच पार्टी की पैठ ज्यादा नहीं है। माना जा रहा है कि कल्पना मिश्रा यह कमी पूरी कर सकती हैं।

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बसपा को आखिर क्यों पड़ी कल्पना की जरूरत ?

देश की सियासत में नए प्रयोग हो रहें है। महिलाएं एक बड़ा वोट बैंक बनती जा रही हैं। बंगाल और बिहार के चुनाव इस बात का गवाह है कि महिला वोटरों ने कैसे चुनाव के नतीजे बदल डाले। वैसे भी यूपी में सभी सियासी दलों में महिलाओं की अलग-अलग भूमिका है। समाजवादी पार्टी में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव के अलावा भी महिला विंग में तमाम महिला चेहरे हैं।

दरअसल कांग्रेस तो अपनी नेता प्रियंका गांधी के नाम पर ही चुनाव लड़ रही है। वहीं भाजपा में भी केंद्र से लेकर योगी सरकार और संगठन में तमाम महिला चेहरे हैं लेकिन बसपा में मायावती के अलावा कोई दूसरा बड़ा महिला चेहरा नहीं है जो सीधे महिलाओं से कनेक्ट हो सके। बसपा में कल्पना मिश्रा शायद यही कमी पूरी कर पाएं। सियासी जानकार मानते हैं कि बसपा में महिलाओं के मुद्दों को कल्पना मिश्र बेहतर तरीके से उठा सकती हैं।

यूपी में महिला वोटर्स

उत्तर प्रदेश में 14.40 करोड़ मतदाता हैं। इसमें 7.79 करोड़ पुरुष और 6.61 करोड़ महिला वोटर हैं। बसपा 2012 के बाद से लागातर सत्ता से बाहर है। ऐसे में बसपा सत्ता में हर कीमत पर वापसी चाहती है। पार्टी इस बार इसके लिए तमाम नए प्रयोग भी कर रही है। पहली बार पार्टी में मायावती के अलावा कोई नेता बड़ी रैली या सम्मेलन कर रहा है। कहा जा रहा है कि कल्पना की बसपा में एंट्री भी मायावती का ही कोई एक्सपेरिमेंट हो सकता है।

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