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UP Elections: सीएम योगी की बुलडोजर नीति से माफिया और बाहुबलियों ने बदला चुनावी पैंतरा

वाराणसीः इस बार प्रदेश विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल की राजनीतिक फिजां बदली-बदली सी नजर आ रही है। पूर्वांचल के कुछ जिलों में पूरे बाहुबल और ठसक के साथ चुनावी जंग में उतरने वाले चर्चित चेहरे सियासी मैदान में इस बार प्रत्यक्ष तौर पर नहीं है, लेकिन अपने रसूख और सियासी तिलिस्म को बचाने के लिए अब अपने ‘वारिसों’ और पत्नियों को आगे कर रहे हैं। इसके पीछे योगी सरकार की बुलडोजर नीति को लोग मान रहे हैं । पिछले पांच साल में योगी सरकार ने जिस तरह अपराध और अपराधियों के प्रति जीरो टालरेंस की नीति अपनाई और माफिया और उनके शरणदाताओं,साथियों के आर्थिक साम्राज्य को ध्वस्त कराने के लिए बुलडोजर चलवाया। इसका काफी असर समाज पर भी पड़ा है। बदले हालात को भांपते हुए इन चर्चित चेहरों ने भी भाजपा दोबारा सत्ता में न आने पाए,इसके लिए खेमेबंदी के साथ चुनावी पैंतरा भी बदल दिया है।

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मुख्तार अंसारी ने बेटे को उतारा मैदान में

इसी क्रम में मऊ सदर के माफिया विधायक मुख्तार अंसारी ने इस बार खुद चुनाव न लड़कर अपने बड़े पुत्र अब्बास अंसारी को यहां से सियासी जंग में उतारा है। जंग को आसान बनाने के लिए सुभासपा और समाजवादी पार्टी गठबंधन पुरजोर कोशिश कर रही है। इस सीट से पांच बार लगातार जीतने वाले मुख्तार अंसारी इसे अपना सियासी ‘गढ़’ मानते रहे हैं। अब्बास को जिताने के लिए मुख्तार अंसारी जेल से ही रणनीति पैंतरे बना रहे हैं। बताते चलें कि अब्बास निशानेबाज खिलाड़ी रहे हैं। पिता की तरह असलहों के शौकीन भी हैं । चुनाव में नामांकन के दौरान खुद अब्बास ने अपने शपथ पत्र में ये जानकारी दी है। शपथ पत्र के अनुसार अब्बास के पास 4 गन, एक रिवॉल्वर, एक पिस्टल, एक राइफल और एक स्पोर्ट्स राइफल है। शपथ पत्र में अब्बास अंसारी ने बताया है कि उनके खिलाफ कुल 5 मुकदमे दर्ज हैं। इसमें दो मुकदमे लखनऊ,तीसरा गाजीपुर के थाना कोतवाली में दर्ज है।

चौथा प्रवर्तन निदेशालय ईडी इलाहाबाद क्षेत्र, पांचवा आचार संहिता के उल्लंघन में मऊ में दर्ज है। विधायक मुख्तार अंसारी के परिवार में बड़े भाई शिवगतुल्लाह अंसारी मुहम्मदाबाद विधानसभा सीट (गाजीपुर) से सपा प्रत्याशी का नामांकन निरस्त हो जाने से चुनाव में परिवार के सियासी रसूख पर भी काफी असर पड़ा है। उधर, पूर्वांचल में अंसारी परिवार के धुर विरोधी चर्चित एमएलसी बृजेश सिंह ने भी अपने सियासी रसूख को बचाने के लिए वाराणसी स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन (एमएलसी)से अपने और पत्नी पूर्व एमएलसी अन्नपूर्णा सिंह के नाम से नामांकन पत्र लिया था। चुनाव टल जाने से उन्हें और तैयारी का मौका भी मिल गया है।

बृजेश सिंह के बेटे और भतीजे ने संभाली कमान

बृजेश सिंह इसके पहले 2012 में जनपद चंदौली के सैयदराजा विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं । तब उन्हें सपा के मनोज सिंह डब्ल्यू ने पटखनी दे दी थी। तब मनोज सिंह को 51 हजार 499 कुल 29 फीसदी मत मिला था। बृजेश सिंह को 49 हजार 483 कुल 28 फीसदी मत मिला था। बृजेश के हार का बदला उनके भतीजे सुशील सिंह ने मनोज सिंह डब्ल्यू को 2017 के चुनाव में हरा कर लिया था। बृजेश के भतीजे सुशील सिंह अब अपना खुद का मजबूत सियासी वजूद बना चुके हैं। बृजेश सिंह के पुत्र भी कई वाहनों के काफिले में चल पिता के सियासी जमीन को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं।

उनके समर्थक बताते हैं कि निकट भविष्य में ‘कपसेठी हाउस’ बृजेश के पुत्र को भी चुनाव मैदान में उतार सकता है। जौनपुर के बाहुबली और पूर्व सांसद धनंजय सिंह कभी खुद तो कभी पत्नी श्रीकला रेड्डी के जरिये अपने सियासी जमीन को बचाने की जुगत लगाते हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर जौनपुर के मल्हनी सीट धनंजय सिंह चुनावी जंग में है। धनजंय पर 10 मुकदमें विचाराधीन हैं। इसमें 8 मुकदमे जौनपुर की अदालतों में हैं। एक अन्य मुकदमा पटियाला हाउस कोर्ट नई दिल्ली में विचाराधीन है। पिछले साल जनवरी 2021 में अजीत सिंह हत्याकांड में भी उन पर धारा 212 और 176 आईपीसी में विवेचना चल रही है। धनंजय जुर्म की दुनिया के पहले लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र राजनीति में चर्चित चेहरे रहे। वाराणसी में बाहुबली कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय राय पिंडरा विधानसभा से फिर दावेदारी कर रहे है।

कैन बचाएगा अजय राय ने सियासी रसूख

हालांकि पूर्व विधायक अजय राय ने अपने सियासी रसूख को बचाने के लिए अभी तक अपने परिवार के किसी सदस्य को आगे नहीं किया है। खुद ही अपने रसूख को बचाने के लिए जूझते रहते हैं । 1996 में तब भाजपा के टिकट पर अजय राय ने कोलअसला विधानसभा अब पिंडरा से सीपीआई के ऊदल को हरा सियासत में अपनी मजबूत पहचान बनाई थी। तब कामरेड स्व.ऊदल ने यहां से 9 बार विधायक रहने का रिकॉर्ड बनाया था।

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