रघुनाथ कसौधन
Milkipur By-Election 2025: मंगलवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश की अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट पर होने वाले उपचुनाव की घोषणा भी चुनाव आयोग ने कर दी। 05 फरवरी को इस सीट पर मतदान होगा, जबकि 08 फरवरी को नतीजे घोषित किए जाएंगे। इस समय यह यूपी की सबसे हॉट सीट बन गई है क्योंकि सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़़ लिया है। ऐसे में अब एक महीने तक यह सीट सबसे अधिक चर्चाओं में रहने वाली है और यहां पर जो भी पार्टी अपनी विजय पताका फहराएगी, उसके लिए यह नए साल का सबसे बड़ा गिफ्ट होगा।
लोकसभा व विधानसभा चुनावों में लगातार हार व गठबंधन के खट्टे अनुभवों से सबक लेकर सपा मुखिया अखिलेश यादव काफी समय से पीडीए फॉर्मूले के जरिए अपनी सियासत को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। इस फॉर्मूले ने उन्हें सफलता भी दिलाई। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा मुखिया ने इसी पर अमल करते हुए कई सामान्य सीटों पर दलित चेहरों को उतारकर राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया था।
इसी में से एक थी अयोध्या लोकसभा की सामान्य सीट, जिस पर अखिलेश ने किसी सामान्य वर्ग के उम्मीदवार की जगह मिल्कीपुर आरक्षित सीट से विधायक अवधेश प्रसाद को लगातार जीत हासिल करने वाले बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह के सामने उतार दिया था। प्रयोग सफल रहा और बीजेपी की हिंदुत्व पॉलिटिक्स की धुरी अयोध्या में ही उसे हार का मुंह देखना पड़ा। अयोध्या में सपा के जीत की चर्चा पूरे देश में हुई और विपक्षी पार्टियों ने इसे भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति का अंत भी करार देना शुरू कर दिया। अखिलेश तो अब हमेशा अपने साथ अवधेश प्रसाद को लिए फिरते हैं, चाहे वह संसद में अपने बगल की सीट पर बिठाना हो या फिर पार्टी की कोई महत्वपूर्ण बैठक।
बीते साल महाराष्ट्र और झारखण्ड के साथ यूपी में खाली हुई 09 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा हुई और मिल्कीपुर को छोड़ दिया गया, तो इसे अखिलेश ने बीजेपी का षडयंत्र बता डाला। कहा कि हार के डर की वजह से बीजेपी यहां चुनाव नहीं कराना चाहती है। बहरहाल, कानूनी दांव-पेंच खत्म होने के बाद आखिरकार अब 05 फरवरी को इस सीट पर उपचुनाव होगा और मतदाता अपने विधायक का चुनाव करेंगे। अब आइए जानते हैं कि क्या है इस सीट का समीकरण और किस तरह यह सीट सत्ताधारी बीजेपी के साथ मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है।
Milkipur by-election: अखिलेश ने अवधेश को ही सौंपी मिल्कीपुर की कमान
बीजेपी के कद्दावर नेता लल्लू सिंह को मात देने के बाद अवधेश प्रसाद का सियासी कद काफी बढ़ गया है और अखिलेश यादव ने उन्हें अपने पीडीए फॉर्मूले का मुख्य मोहरा बना लिया है। पिछले साल नवंबर में भले ही यहां उपचुनाव नहीं हो पाया लेकिन अखिलेश ने इसे फतह करने की पूरी तैयारी कर ली है। सपा मुखिया ने अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद के साथ विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव को यहां का प्रभारी बनाया है। यह दलित बहुल सीट है और यहां पर सपा ने दलित-मुस्लिम और पिछड़ा समीकरण के जरिए फतह हासिल करने की फुलप्रूफ रणनीति तैयार की है। प्रभारियों को हर बूथ पर पांच सक्रिय यूथ को तैनात करने की जिम्मेदारी दी गई है। इन्हें जिम्मेदारी दी जाएगी कि वह आरक्षण और संविधान पर घर-घर जाकर लोगों को समझाएंगे व पार्टी के पक्ष में मतदान करने की अपील करेंगे।
प्रभारियों को इन युवाओं के सीधे संपर्क में रहने का निर्देश दिया गया है। इस सीट पर किसी भी पार्टी की जीत में जातीय समीकरण सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। इस सीट पर कुल 03 लाख 40 हजार 820 मतदाता हैं। इनमें से 60 हजार ब्राम्हण, 55 हजार यादव, 55 हजार पासी, 50 हजार दलित, 30 हजार मुस्लिम और 25 हजार राजपूत वोटर हैं। ऐसे में जो पार्टी सियासी समीकरण को साधने में सफल होगी, उसकी झोली में यह सीट गिरनी तय है।
2022 में इस सीट पर हुए चुनाव की बात करें तो उस समय सपा के अवधेश प्रसाद ने बीजेपी के ही बाबा गोरखनाथ को हराकर यह सीट जीती थी। उस समय अवधेश को 01 लाख 03 हजार 905 वोट यानी 49.99 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंदी बाबा गोरखनाथ को 90 हजार 567 वोट यानी 41.83 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इस बार सपा ने यहां से अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद पर दांव लगाया है लेकिन अभी तक बीजेपी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
सीएम योगी ने खुद के कंधों पर ली है जिम्मेदारी
बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में दूसरे नंबर पर रहने वाली बीजेपी को झटका तो करारा लगा था, लेकिन सबसे गहरा आघात उसे अयोध्या सीट पर मिली हार ने दिया था। इस हार ने न सिर्फ उसकी राष्ट्रीय स्तर पर फजीहत कराई थी, बल्कि उसकी चुनावी रणनीति पर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए थे। योगी आदित्यनाथ को भी इस बात का अब तक मलाल है कि 500 सालों के बाद राम मंदिर निर्माण और अयोध्या को विश्वस्तरीय नगरी बनाने का काम युद्धस्तर पर करने के बावजूद यहां के लोगों ने उनकी पार्टी को विजयश्री का तिलक नहीं लगाया।
बहरहाल, उपचुनाव में 09 में से 07 सीटों पर मिली जीत से हार का दर्द कम हो गया है लेकिन सीएम ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से भी जोड़ लिया है। लोस चुनाव के बाद अब तक योगी मिल्कीपुर का पांच बार दौरा कर चुके हैं। बीते 04 जनवरी को भी सीएम योगी मिल्कीपुर में ही थे और कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलने के साथ उन्हें जीत का मंत्र भी दिया था। उन्होंने कहा कि बीजेपी के कार्यकर्ता मतदाताओं के संपर्क में रहें और उन्हें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताते रहें। पिछले दिनों हुए उपचुनाव में 09 में से 07 सीटें जीतने वाली बीजेपी के हौसले बुलंद हैं और सीएम योगी की सक्रियता यह बता रही है कि भाजपा इस सीट को जीतने के लिए कोई कोर-कसर छोड़ने वाली नही है।
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मायावती के पैर पीछे खींचने से बढ़ी बीजेपी की मुश्किल
यूपी में बसपा का वोट बैंक भले ही सिमटता जा रहा हो, लेकिन अब भी कोई राजनीतिक दल उसे हल्के में लेने की भूल नही करता है। खिसकते जनाधार को देखते हुए अपनी रणनीति बदलते हुए बसपा मुखिया मायावती ने उपचुनावों में भी हाथ आजमाने की कोशिश की थी, लेकिन बीते साल नवंबर महीने में यूपी की 09 सीटों में से एक भी सीट पर जीत हासिल न कर पाने व कई प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने के बाद उसने उपचुनाव से तौबा कर ली है। उपचुनाव में हालत यह रही कि कुंदरकी में 1036, मीरापुर में 3248, करहल में 8409 और सीसामऊ में महज 1500 वोट ही प्रत्याशी हासिल कर पाए थे।
यही नहीं कई सीटों पर तो चंद्रशेखर रावण की अगुवाई वाली आजाद समाज पार्टी का प्रदर्शन बसपा प्रत्याशियों से बेहतर रहा था। पार्टी की दुर्गति को देखते हुए मायावती ने ईवीएम पर सवाल खड़े करते हुए धांधली जैसे कई आरोप लगाते हुए भविष्य में कोई भी उपचुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया। बसपा के उपचुनाव न लड़ने के ऐलान से मिल्कीपुर में बीजेपी की पेशानी पर बल आ गया है। चूंकि यह दलित बाहुल्य सीट है और अगर यहां से बीएसपी अपना प्रत्याशी उतारती, तो मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता। जिससे बीजेपी के लिए मिल्कीपुर के किले को भेदने में आसानी होती, लेकिन अब उसे और भी अधिक जोर लगाना होगा।
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