बलियाः सरयू नदी से आच्छादित बेल्थरारोड विधानसभा क्षेत्र से जिस पार्टी को जीत मिलती है, प्रदेश में सरकार भी उसी की बनती है। शायद यही वजह है कि पार्टियां काफी सोच-समझकर उम्मीदवार का चयन करती हैं। जिले की देवरिया और मऊ से लगती सीमा पर स्थित बेल्थरारोड की जिला मुख्यालय से दूरी करीब 65 किलोमीटर है। इसी कस्बे के नाम से बेल्थरारोड विधानसभा है। यह सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इस विधानसभा क्षेत्र के कई गांव सरयू नदी के तट पर बसे हैं। बेल्थरारोड विधानसभा सीट साल 2008 के परिसीमन के बाद आरक्षित हो गई। पहले यह विधानसभा सीट सामान्य सीट हुआ करती थी।
सपा के कद्दावर नेता शारदानंद अंचल इस विधानसभा सीट से कई बार विधायक रहे। बात करें चुनावी इतिहास की तो 1962 में कांग्रेस के मांधाता सिंह, 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के शिवपाल यादव, 1969 और 1980 में निर्दलीय बब्बन सिंह, 1974 और 1977 में कांग्रेस के रफीउल्लाह विधायक रहे। 1985 में लोक दल और 1989 में जनता दल, 1993 और 2002 में सपा के टिकट पर शारदानंद अंचल विधानसभा पहुंचे। 1991 और 1996 में भारतीय जनता पार्टी के हरिनारायण राजभर जीते। 2007 में बहुजन समाज पार्टी के केदार वर्मा विधानसभा पहुंचे थे। 2008 के परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। बेल्थरारोड सुरक्षित विधानसभा सीट के लिए साल 2012 में हुए पहले चुनाव में सपा के गोरख पासवान विधायक बने। गोरख पासवान ने बसपा के छट्ठू राम को हराया था। 2017 में सपा के टिकट पर तब के निवर्तमान विधायक गोरख पासवान चुनाव मैदान में थे।
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गोरख के मुकाबले बसपा ने पुराने दिग्गज घूरा राम और भाजपा ने युवा चेहरे धनंजय कन्नौजिया को मैदान में उतारा था। धनंजय कन्नौजिया ने इस सीट पर 21 साल का सूखा खत्म करते हुए एक बार फिर से कमल खिला दिया। धनंजय ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी गोरख पासवान को 18319 वोट से हराया था। बसपा के घूरा राम तीसरे स्थान पर रहे थे। इस बार भाजपा ने यहां से अपना प्रत्याशी बदल दिया है। जबकि सपा और बसपा से अभी किसी नाम की घोषणा नहीं हुई है। अलबत्ता कांग्रेस ने जरूर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। कभी लाल मिर्च की खेती के लिए प्रसिद्ध रहा बेल्थरारोड विधानसभा क्षेत्र फिलहाल उद्योग शून्य है। किसी जमाने में पीतल, कांसा और तांबा उद्योग के लिए प्रसिद्ध रहा खैराडीह भी इसी विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। यह क्षेत्र मां मातेश्वरी शक्तिपीठ, मां भागेश्वरी और परमेश्वरी के प्राचीन मंदिर है। तीन लाख से अधिक वोटरों वाले इस विधानसभा क्षेत्र में दलितों की संख्या अधिक है। पिछड़े और अल्पसंख्यक भी निर्णायक भूमिका में हैं।
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