पार्यवरण को बचाने के लिए महिलाओं का अनूठा प्रयोग, मुल्तानी मिट्टी, अनाजों और गोबर के बने…

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अनूपपुर: देशी गाय के गोबर से निर्मित राखियों के बाद स्व सहायता समूह ने गोबर से बने गणेश प्रतिमाओं को बनाया, जिसकी पूजा गणेश चतुर्थी में घरों और पंडालों में विराजित कर होगी। मूर्तिकारों द्वारा अभी तक मिट्टी से निर्मित प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है। जिले के जैतहरी विकासखंड के ग्राम अंजनी में संचालित गंगा अजीविका स्व सहायता समूह की 5 महिलाओं द्वारा गोबर और अनाजों का प्रयोग कर पर्यावरण के अनुकूल गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया गया है। जिसकी मांग भी बनी हुई है और मिले प्रोत्साहन से समूह की महिलाएं उत्साहित हैं यह पहला अनूठा प्रयास महिलाओं का रहा है।

जैतहरी क्षेत्र के ग्राम अंजनी में गंगा अजीविका स्व सहायता समूह की पांच महिलाओं में इंद्रवती राठौर, सालनी राठौर, रामकली गोंड़, मीराबाई एवं जीवनवती द्वारा गोबर से प्रतिमाओं को बनाने का एक नया प्रयोग करते हुए मिट्टी के विकल्प के रूप में गोबर को चुना जिससे मूर्ति बनाने में पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे इस उद्देश्य को लेकर समूह द्वारा यह पहली बार नवाचार किया गया। मूर्ति बनाने के लिए नागपुर के गायत्री परिवार से प्रशिक्षण लेकर मूर्ति बनाने का कार्य जून माह से शुरू किया। लगभग 60 से अधिक छोटी-बड़ी मूर्तियां तैयार की गई हैं जो आठ इंच से एक फीट की ऊंचाई की हैं।

अंजनी गोशाला केंद्र के भारत सिंह राठौर ने बताया कि समूह की महिलाओं के द्वारा लगातार कुछ नया करने का प्रयास किया जा रहा है इसके पूर्व गोबर की बनी राखियां बनाई गई हैं। अब गणेश पूजा के लिए पर्यावरण के अनुकूल गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया गया है। समूह की महिलाओं का यह पहला प्रयास है जिसे अब आगे और विस्तार दिया जाएगा।

भारत सिंह ने बताया गोबर से बनी मूर्तियों में मुख्य रूप से गौशाला केंद्र की गोबर के साथ ही मुल्तानी मिट्टी और अनाजों का इस्तेमाल किया गया है। जिसमें मेथी पाउडर और चावल का मांड मूर्ति को मजबूती देने के लिए किया गया। गंगा अजीविका स्व सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा डिजाइनर दिए और धूपबत्ती का निर्माण भी किया जा रहा है। गणेश प्रतिमाओं को बाजार में उपलब्ध करा दिया गया है जिनकी पूछ- परख हो रही है।

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समूह की महिलाओं द्वारा गोबर से बनी गणेश प्रतिमाओं की कलाकृति को लोगों द्वारा सराहा भी जा रहा है। गंगा सहायता समूह ग्राम अंजनी की सदस्यों ने बताया कि हमने मिलकर यह पहली कोशिश की है, अधिक लाभ मिले ऐसा नहीं सोचा है कुछ नया करने का विचार आया हमें इस बात की भी प्रसन्नता है कि हम जो कर रहे हैं उससे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचेगा।

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