ट्राइबल म्यूजियम में मिट्टी के आभूषण, वाद्ययंत्र से सजीव हो रही जनजातीय जीवनशैली

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बांसवाड़ा : मंगलवार नौ अगस्त को पूरे विश्व में जनजाति दिवस ‘इंटरनेशनल डे ऑफ़ वर्ल्ड इंडीजीनस पीपल्स’ मनाया जाएगा। यह दिवस जनजातियों के अधिकारों को बढ़ावा देने, नैसर्गिक सुरक्षा-विकास के अधिकाधिक अवसर उपलब्ध कराने और उन सभी जनजातीय मूल निवासियों के योगदान को स्वीकार करने का दिन है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पहली बार 1994 में ‘विश्व आदिवासी दिवस’ घोषित किया गया। इसी महत्ता को लेकर पूरे देश-विदेश में आयोजन होते रहते हैं।

बांसवाड़ा जिला मुख्यालय पर बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं प्रतापगढ़ जिलों के राजकीय एवं निजी महाविद्यालयों को गोविन्द गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय से सम्बद्ध किया है। जीजीटी विश्वविद्यालय ने गोविन्द गुरु के जीवंत स्वतंत्रता संघर्ष और समाज सुधार के लिए किए प्रयासों और जनजातीय जीवन शैली को सभी से रूबरू कराने के लिए यूनिवर्सिटी कैम्पस में ही ट्राइबल म्यूजियम की स्थापना की है। विश्व विद्यालय ने पायलट प्रोजेक्ट रूप में स्थानीय शिल्पकारों, कलाकारों और प्रतिभाओं को कैम्पस में स्थान उपलब्ध करवा कर जनजातीय जीवन शैली, कला, शिल्प, खान-पान, युद्ध कौशल, दैनिक जीवन में प्रयोग में आने वाले उपकरणों को इस तरीके से संजोया है कि इस म्यूजियम में पूरा जनजातीय जीवन साक्षात उपस्थित हो उठता है।

लाइव माॅडल से समझ सकेंगे जनजातीय जीवन –

जीजीटी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आईवी त्रिवेदी ने बताया कि विश्वविद्यालय की अवस्थिति राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के सम्यक त्रिकोण में है, जहां की कुल आबादी में करीब तिहत्तर प्रतिशत आबादी जनजातीय है। विश्वविद्यालय की भावी योजना है कि इस लघु ट्राइबल म्यूजियम को वृहद् स्वरूप में लाया जाए और इस संग्रहालय में पूरे देश की जनजातीय जीवन शैली, उपयोग में आने वाले उपकरणों को स्टेबल और लाइव मॉडल में इस प्रकार सेट किया जाए कि दर्शक सहज ही जनजातीय जीवन को महसूस कर सके। इसके साथ ही आज़ादी और समाज सेवा में अनाम उत्सर्ग अमर योद्धाओं, समाज सेवकों के कार्यों को भी साबरमती आश्रम की तर्ज पर संजोने की योजना है जिससे न केवल आज की पीढी उनके योगदान को जान सके अपितु प्रेरणा लेकर समाज और देश सेवा का संकल्प ले सके।

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भावी योजना में अंचल के जनजातीय युवाओं के कौशल विकास के लिए शॉर्ट टर्म स्किल कोर्सेस, प्लेसमेंट आदि की योजना पर भी कार्य चल रहा है। यह संग्रहालय न केवल अतीत के प्रति सम्मान, जीवन पद्धति को जानने का अवसर प्रदान करने का प्रयास है, अपितु ट्राइबल टूरिस्म को भी बढ़ावा मिलेगा। इस योजना से अंचल की जनजातीय प्रतिभाओं और को न सिर्फ संरक्षण मिलेगा बल्कि रोज़गार के अवसर भी सृजित किए जा सकेंगे।

विश्वविद्यालय के कुलसचिव गोविन्द सिंह देवड़ा ने बताया कि कैंपस ट्राइबल म्यूजियम में स्थानीय जनजातीय कलाकारों द्वारा उकेरी गई पेंटिंग, मिट्टी के खिलौने, वेषभूषा, आभूषण, मिट्टी के उपकरण वाद्य यंत्र, जनजातीय ग्रामीण घरेलू रसोई उपकरण, वाद्य यंत्र, अनाज और सामग्री संग्रहण के देसी मिट्टी के कोठार (कबले) बांस के बने बर्तन, जनजातीय वाद्य यंत्र, जनजातीय पुरुष मॉडल, महिला मॉडल, अंचल के स्वतंत्रता सेनानी, अमर योद्धा, मेले यहां तक की रहने की बांस, घास फूस की झोपड़ी का भी मॉडल बनाया गया है, जो यथार्थ जीवन का हुबहू रूप है। विशेष उल्लेखनीय यह है कि इस म्यूजियम का निर्माण विश्व विद्यालय द्वारा एक प्रोजेक्ट रूप में पूरा कराया गया है। यूनिवर्सिटी में प्रतिनियुक्त रहे अधिकारी डॉ लक्ष्मण लाल परमार के नेतृत्व में, क्षेत्र में संगीत और लोक कला मर्मज्ञ रूप में साधिका डॉ मालिनी काले के संयोजन में स्थानीय कलाकारों के सहयोग से इस प्रोजेक्ट को पूरा किया गया है।

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