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छठ पर्व में आज व्रती देंगे संध्या अर्घ्य, जानें इसकी पौराणिक मान्यता

जगदलपुर: छठ पर्व के आज तीसरे दिन, शाम को डूबते सूर्य को गंगामुण्डा, दलपत सागर और इंद्रावती नदी में व्रती अर्घ्य देंगे, इसे संध्या अर्घ्य भी कहते हैं। उगते सूर्य को अर्घ्य देने की रीति तो कई व्रतों और त्योहारों में है, लेकिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा केवल छठ में ही है। अर्घ्य देने से पहले बांस की टोकरी को फलों, ठेकुआ, चावल केलड्डू और पूजा के सामान से सजाया जाता है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा होती है फिर डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की जाती है।

क्‍यों दिया जाता है डूबते सूर्य को अर्घ्‍य?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है। कहा जाता है कि इससे व्रत रखने वाली महिलाओं को दोहरा लाभ मिलता है। जो लोग डूबते सूर्य की उपासना करते हैं, उन्हें उगते सूर्य की भी उपासना जरूर करनी चाहिए।

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ज्योतिषियों का कहना है कि ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा इससे सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के मुताबिक ढलते सूर्य को अर्घ्य देने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।