
नई दिल्लीः भगवान शनि देव सूर्य देव के पुत्र हैं और इन्हें न्याय और कर्म फल का देवता भी कहा जाता है। भगवान शनिदेव की वक्र दृष्टि से अहित निश्चित ही होता है। पर भगवान शनि की आराधना करने से दुष्प्रभाव समाप्त भी हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शनिदेव की पत्नी ने एक बार नाराज होकर उन्हें यह श्राप दे दिया था कि वह जिस किसी की भी तरफ देखेंगे उसका नाश हो जाएगा। इसीलिए भगवान शनिदेव हमेशा अपनी नजर नीचे करके ही चलते हैं। वहीं जिन लोगों पर शनि की साढ़े साती चल रही हो उन्हें भगवान शनि की शनिवार के दिन आराधना अवश्य ही करनी चाहिए। शनिवार का दिन भगवान शनि को समर्पित है और इस दिन उनका पूजन करने से वह बेहद प्रसन्न होते हैं। भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन सरसों के तेल और काला कपड़ा दान देना बेहद शुभ माना जाता है। इसके साथ ही शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल में काले तिल डालकर दिया जलाना भी शुभ फलदायी होता है। इसके बाद शनिदेव की स्तुति अवश्य ही करनी चाहिए। ऐसा करने से शनिदोष से मुक्ति मिलती है।
शनिदेव की स्तुति –
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नमः।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नमः।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
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अधोदृष्टेः नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगाः।
त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः ॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः ॥10॥
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