लखनऊः कोरोना महामारी के चलते दो साल से बच्चों को घरों में ही कैद रहना पड़ा है। बीच-बीच में स्कूल खुले भी, तो तमाम पाबंदियों के साथ। ऐसे में न तो वह खेल-कूद सके और न ही मनपसंद चीजों को उन्हें सीखने का मौका मिलेगा। इस बार कोरोना का प्रकोप कम होने से बच्चे काफी उत्साहित हैं और गर्मी की छुट्टियों में वह खेल-कूद के साथ कुछ नया सीखने की तैयारी में लग गए हैं। इसको देखते हुए तमाम सांस्कृतिक और खेल संबंधी संस्थाएं बच्चों के लिए कार्यशालाएं चलाने जा रही हैं। यह कार्यशालाएं 15 मार्च से शुरू हो जाएंगी और बच्चों को इसमें तमाम चीजें सीखने का अवसर मिलेगा।
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तैयारी को मुकम्मल करने में जुटे शहर के नामचीन संस्थान
कोरोना का कहर थमते ही स्पोर्ट और कल्चरल कार्यशालाएं चलाने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। लखनऊ शहर में हर साल कई संस्थाएं बच्चों की कार्यशालाएं चलाती हैं। इनमें खेल के लिए क्रिकेट, हॉकी, बेसबाल, बैडमिंटन, बॉक्सिंग और जूडो-कराटे संबंधित कार्यशालाएं प्रमुख हैं। इसके अलावा कल्चरल कोर्स कराने के लिए भी संस्थाएं बच्चों को कथक, गिटार, सितार, तबला, ढोलक और गायन संबंधित कार्यशालाएं चलाती हैं। कई जगहों पर कलात्मक चित्रण का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। यह साल 2019 के बाद से ही लगातार प्रभावित रही हैं। इसका कारण था कि सर्दियों में कोरोना ने पैर पसारने तेज कर दिए थे और इसका असर यहां की कार्यशालाओं की तैयारियों पर भी पड़ने लगा था। गर्मी आते ही इन पर पूरी तरह से पाबंदी लग गई। हालांकि, कुछ कार्यशालाएं 2021 में दो गज की दूरी और मास्क जरूरी जैसे एहतियात पर चलीं, लेकिन इनका ज्यादा लाभ बच्चे नहीं उठा सके। अब कथक संस्थान और राष्ट्रीय कथक केंद्र, भारतेंदु नाट्य अकादमी के अलावा ललित कला केंद्र में भी कोशिश चल रही है कि इस बार पूरे जोर-शोर से बच्चों को कार्यशालाओं में प्रशिक्षण दिया जाए।
इस बार की खास कोशिश होगी कि दो साल जिन बच्चों को प्रशिक्षण नहीं मिल सका, उनकी बढ़ी उम्र का भी ध्यान दिया जाएगा यानी कि जो कार्यषाला 12 साल की उम्र तक होती थी, उसमें दो साल की छूट देकर 14 साल तक के बच्चों को प्रवेश दिया जाएगा। इसका मूल यही कारण है कि कोरोनाकाल में प्रभावित हुए बच्चों को हुनरमंद कर दिया जाए। इसके अलावा चौक स्थित स्टेडियम, रेलवे स्टेडियम चारबाग, केडी सिंह बाबू स्टेडियम और गढ़ी कनौरा के अलावा ताईक्वांडो बड़ा बरहा में भी कई निजी संस्थाएं प्रशिक्षण देती हैं। इनकी भी तैयारी जोरों पर चल रही है। वैसे तो उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग में सैकड़ों संस्थाएं दर्ज हैं, लेकिन कुछ ही सक्रिय रहती हैं और इनकी अपनी कार्यशालाएं चलती रहती हैं। इनमें से कुुछ गिटार, सितार, लोक नृत्य और गायन भी सिखाती हैं। नाट्य कला के कई दशक बिता चुके सुभाष चंद्र, हास्य कवि सर्वेश अस्थाना व राष्ट्रीय कथक संस्थान की सचिव सरिता श्रीवास्तव जैसी तमाम दिग्गज भी बच्चों के हुनर को निखारने की तैयारी कर चुके हैं।
रोजगार बनती हैं ऐसी कलाएं
बच्चों को ताईक्वांडो और बैडमिंटन सीखते समय हवा में हाथ लहराने का मौका मिलता है, जबकि हारमोनियम और तबला सीखते समय उंगलियां थिरकती हैं। इसके अलावा फुटबाल और कराटे खेलते समय पैरों की कला देखने को मिल जाती है। यह सभी विधाएं आज रोजगार भी बन रही हैं। इसके साथ ही खबर यह भी है कि इस बार सांस्कृतिक क्षेत्र के बहुरंगी रीति-रिवाज, परंपराओं, खान-पान, खेल-कूद, पहनावा आदि के संरक्षण एवं संवर्धन पर बल दिए जाने के लिए खेल विभाग और सांस्कृतिक मंत्रालय भी अपनी तैयारी कर रहा है।
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