Sunday, January 5, 2025
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150 साल पुरानी ऐतिहासिक ‘धूप घड़ी’ पर चोरों ने किया हाथ साफ, इस खास मकसद से हुआ था निर्माण

सासारामः बिहार के रोहतास जिले के डेहरी नगर थाना क्षेत्र से शातिर चोरों ने मंगलवार को 150 साल पुरानी एक ऐतिहासिक धूप घड़ी को क्षतिग्रस्त कर उसकी ब्लेड को चुरा ले गए। पुलिस अब मामले की जांच में जुटी है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, ब्रिटिश काल में 1871 में इसका निर्माण कराया गया था तब से ये संरक्षित था। दूर-दूर से लोग इस ऐतिहासिक धूप घड़ी को देखने आते थे। डेहरी के थाना प्रभारी राजीव रंजन ने बुधवार को बताया कि जल संसाधन विभाग के नियत्रणाधीन इस घड़ी को मंगलवार को अज्ञात चोरों ने क्षतिग्रस्त कर उसके धातु से बने एक ब्लेड को चुरा ले गए।

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घटना की सूचना मिलने के बाद पुलिस पूरे मामले की जांच में जुटी है। पुलिस चोरों की तलाश में छापेमारी कर रही है। बताया जाता है कि सोन नहर प्रणाली को विकसित करने के दौरान डेहरी में एक यांत्रिक कार्यशाला का संचालन किया था जिसमें काम करने वाले कामगारों के लिए धूप घड़ी बनाई गई थी। यह धूप घड़ी प्रत्येक आधा घंटा के अंतराल पर सही समय दिखाती थी। सूरज की पहली किरण से लेकर सूर्यास्त के अंतिम किरण तक इस घड़ी का उपयोग किया जाता था। बाद में उचित रखरखाव के अभाव में इसका परिसर टूट गया था।

आलाधिकारियों के इलाके से घड़ी ले उड़े चोर

सबसे बड़ी बात ये है कि जिस इलाके में इस वारदात को अंजाम दिया गया वहां ज्यादातर पुलिस अधिकारियों के आवास हैं। डीआईजी, एसपी, एएसपी सहित पुलिस के तमाम आलाधिकारियों के कार्यालय एवं आवास इसी क्षेत्र में हैं फिर भी चोरों की हिम्मत देखिए कि धूप घड़ी को ही क्षतिग्रस्त कर उसे चुरा लिया। ‘सन- वॉच’ का परिसर भी पहले से ही क्षतिग्रस्त है। स्थानीय प्रशासन ने इसका रखरखाव नहीं किया, जिसका नतीजा हुआ कि चोरों ने इस धूप घड़ी को चुराकर डिहरी की एक पहचान को खत्म कर दिया। वहीं चोरों की इस करतूत से स्थानीय लोग काफी मायूस है। फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर ही है।

19वीं सदी में कामगारों के लिए स्थापित की गयी थी धूप घड़ी

बता दें कि 19वीं सदी में ब्रिटिश सरकार ने सोन नहर प्रणाली को विकसित करने के उद्देश्य से डेहरी में एक यांत्रिक कार्यशाला का संचालन किया था जिसमें काम करने वाले कामगारों के लिए धूप घड़ी बनाई गई थी। यह धूप घड़ी प्रत्येक आधा घंटा के अंतराल पर सही समय दिखाती थी। सूरज की पहली किरण से लेकर सूर्यास्त के अंतिम किरण तक इस घड़ी का उपयोग किया जाता था। स्थानीय लोगों के मुताबिक, ब्रिटिश काल में 1871 में इसका निर्माण कराया गया था तब से ये संरक्षित था। दूर-दूर से लोग इस ऐतिहासिक धूप घड़ी को देखने आते थे।

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