नई दिल्लीः नवरात्रि को लेकर श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर है। लोग उपवास रखकर माता की पूजा करने में मगन हैं तो मंदिरों में भी मां के जयकारे लग रहे हैं। आस्था में सराबोर भक्तजन माता के दर्शन कर पुण्य अर्जित कर रहे हैं। नवरात्रि पर शक्तिपीठों के दर्शन करने का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार, 51 शक्तिपीठ माने गए हैं। ये शक्तिपीठ भारत के साथ-साथ पड़ोसी देशों में भी स्थित हैं। यहां नवरात्रि के पावन अवसर पर दूर-दूर से दर्शनार्थी आते हैं। देवी सती के अंग कई स्थानों पर गिरे, जहां उनकी पूजा होती है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि उनका ह्रदय किस स्थान पर गिरा था। आइए जानते हैं इस विशेष धाम के बारे में और इसकी महिमा।
गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनासकांड जिले में अम्बाजी माता मंदिर स्थित है। यहां अरसुरी पहाड़ी पर माता सती का ह्दय गिरा था। इस स्थान पर यह दिव्य मंदिर स्थित है। यहां से दो किलोमीटर की दूरी गब्बर हिल है। यहां भी देवी मां का एक मंदिर है। मंदिर में दर्शन करने के बाद श्रद्धालु इस पहाड़ी पर जरूर जाते हैं। इस स्थान के प्रति भक्तों में बड़ी आस्था है। यहां वर्षभर श्रद्धालु माता का आशीर्वाद पाने के लिए उमड़ते हैं। नवरात्रि पर यहां गरबा कार्यक्रम का भी आयोजन धूम-धाम से होता है, जिसमें श्रद्धालु बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
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मंदिर में नहीं है प्रतिमा –
सफेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है। इसकी शिखर की ऊंचाई सौ फीट से अधिक है, जिन पर 358 स्वर्ण कलश स्थापित हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मंदिर में माता की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि एक पवित्र श्रीयंत्र है, जिसकी विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस श्रीयंत्र को पुजारी इस प्रकार सजाते हैं कि यह देखने में माता रानी प्रतीत होती हैं।
ऐसे बने शक्तिपीठ –
पुराणों के अनुसार, राजा दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र समेत कई देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था, लेकिन अपने दामाद शिव शंकर को इस यज्ञ में उन्होंने नहीं बुलाया। इस पर उनकी पुत्री और भगवान शिव की पत्नी सती अपने पिता के घर गईं और शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। राजा दक्ष ने भगवान शिव को अपशब्द कहे और क्रोध करने लगे। माता सती अपने पति का यह अपमान सहन न कर सकीं और हवन कुंड में कूदकर अपनी आहूति दे दी। यह समाचार पाकर शिव जी अत्यंत क्रोधित हुए और वहां जाकर अपनी पत्नी के जलते हुए शरीर को हाथों से उठाकर तांडव करने लगे। यह दृश्य देख समस्त देवी-देवता डर गए और उन्हें शांत करवाने के लिए विष्णु से आग्रह किया। इस पर विष्णु ने अपने विशेष चक्र से देवी सती के शरीर को काट दिया। माता सती के शरीर के ये टुकड़े जहां-जहां गिरे, वे पावन स्थान शक्तिपीठ कहलाए।
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