यह भारत की सनातन परंपरा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व की ही दक्षता है कि उन्होंने कोरोना वैक्सीन को विश्वव्यापी कूटनीति का पर्याय बना दिया। यही वजह है कि इस नीति पर जहां अमेरिका के नए राष्ट्रपति बाइडेन प्रशंसक हुए, वहीं ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सनारो ने टीका भेजने के लिए भारत के प्रति कृतज्ञ भाव जताते हुए भगवान हनुमान की ऐसी तस्वीर ट्वीट की जिसमें हनुमान भारत से ब्राजील की ओर टीका लेकर उड़ते दिखाई दे रहे हैं। इसे लेकर तंगदिल लोगों ने सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि दवा का धर्म सिर्फ रोगी का उपचार होता है। भारत में बने टीकों का दुष्प्रभाव नगण्य है, इसलिए 92 देशों ने टीकों के लिए अर्जी लगाई है और दुनिया की आधी आबादी मेड इन इंडिया वैक्सीन के लिए पुकार लगा रही है। यह स्थिति कालांतर में वैक्सीन डिप्लोमेसी का बड़ा आधार बनेगी। इस कूटनीति को इसलिए भी बल मिलेगा, क्योंकि चीन द्वारा निर्मित सिनोफॉर्म वैक्सीन पर ज्यादातर देश भरोसा नहीं जता रहे हैं। इधर भारत ने कई एशियाई पड़ोसी देशों को वैक्सीन दान में देकर अपनी सनातन परंपरा की उदारता का परिचय दिया है।
भारत में कोरोना महामारी का टीका लगाने की शुरुआत के साथ मानवता को निरोगी बनाए रखने के संकल्प ने गति पकड़ ली है। यह टीकाकरण एक बड़ी चुनौती इसलिए है क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा अभियान है। जबकि अमेरिकी टीका निर्माता फाइजर बायोएनटेक के बने टीके की समय पर आपूर्ति नहीं होने से टीकारण करा रहे दुनिया के 80 प्रतिशत देशों में संकट खड़ा हो गया है। रूस व चीन के इतर दुनिया में सबसे पहला कोरोना टीका फाइजर ने तैयार किया था, इसकी खुराकों को बड़ी संख्या में ज्यादातर अमीर देशों ने अनुबंध कर लिया था। लेकिन समय पर टीके की आपूर्ति नहीं होने के कारण टीकाकरण लंबित हो रहा है। इटली और पौलेंड ने खुराकों की आपूर्ति नहीं मिलने के कारण फाइजर पर कानूनी कार्यवाही करने का अधिकारिक ऐलान किया है। अमेरिका की फार्मास्यूटिकल फर्म ने यूरोपीय देशों में टीका आपूर्ति में अस्थाई तौर से कटौती कर दी है। फाइजर का कहना है कि वह अगले कुछ सप्ताह के लिए टीका आपूर्ति को धीमा करेगा। क्योंकि टीका निर्माण की क्षमता बढ़ाने के लिए बेल्जियम स्थित संयंत्र में काम चल रहा है। इस स्थिति के कारण जर्मनी के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तरी राइन-वेस्ट फेलिया में टीकाकरण टालना पड़ा। स्पेन और मेड्रिड में भी स्वास्थ्यकर्मियों का टीकाकरण रोक दिया है। रोमानिया को अनुबंध के मुताबिक टीके की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। चेक रिपब्लिक का भी यही हश्र हुआ है। कनाडा को भी जब समय पर टीका नहीं मिला तो वहां के प्रधानमंत्री ने खुद फाइजर कंपनी से बात की।
इस सब के बावजूद भारत में टीकाकरण न केवल सुचारू रूप से चल रहा है, बल्कि कई देशों को टीका दान के रूप में दे दिए जाने के बावजूद दूसरे देशों को अनुबंध के मुताबिक टीके की खुराकों की आपूर्ति बराबर की जा रही है। टीका के क्षेत्र में सबसे पहले आत्मनिर्भर बनकर भारत ने वैक्सीन कोविशील्ड बांग्लादेश, म्यंमार, नेपाल, भूटान, मालदीव, मॉरिशस और सेशल्स को दान में दे दी है। इसके साथ ही सऊदी अरब, साउथ अफ्रीका, मोरक्को और ब्राजील जैसे देशों को व्यापारिक समझौतों के तहत टीकों की खेप पहुंचाने की शुरूआत हो गई है। ब्राजील के रियो डि जेनेरियो के गैलियाओ हवाई अड्डे पर जब विमान वैक्सीन लेकर पहुंचा तो उसे ‘वाटर सैल्यूट’ किया गया, जो यहां का राष्ट्रीय सम्मान है। अगले चरण में श्रीलंका और अफगानिस्तान को भी वैक्सीन भेजी जानी है। इस वैक्सीन कूटनीति की तारीफ अमेरिका की नई बाइडेन सरकार ने भी की है। अमेरिका ने कहा है कि ‘भारत सच्चा मित्र है, जिसने दवा के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को महामारी से मुक्ति के लिए कोरोना टीका भेजने की शुरूआत कर दी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सिलसिले में जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है।’
वैक्सीन के बहाने भारत ने कोविशील्ड और को-वैक्सीन का व्यापक पैमाने पर उत्पादन शुरू करके दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि अब भारत फार्मास्युटिकल क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है। इसीलिए अमेरिका के प्रसिद्ध अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि ‘पड़ोसी देशों को उपहार में टीका उपलब्ध कराकर भारत ने मानवता के प्रति अपनी भावना को दर्शाया है।’ विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस अदनोम घेबरेसर्स ने नरेंद्र मोदी के प्रति आभार जताते हुए कहा कि ‘कोरोना महामारी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहायता के लिए आरंभ से ही दृष्टिकोण सकारात्मक रहा है। उन्होंने कोरोना संक्रमण पर शोध, विचार-विमर्श, टीका निर्माण और वितरण पर अपनी बेमिसाल विलक्षण क्षमता का प्रदर्शन किया है।’ दुनिया भारत की इस दानशीलता एवं उदारता को हिंदू धर्म के स्वभाव के अनुरूप मान रही है, जो समस्त वसुधा को एक परिवार के रूप में देखता है। इसीलिए 92 देशों ने भारत में बनी वैक्सीन को खरीदने के लिए अर्जी लगाई है। तय है, कालांतर में भारत वैक्सीन-हब के रूप में स्थापित होने जा रहा है।
मानव जाति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि पूरी दुनिया महामारी की चपेट में एकसाथ आ गई। अदृश्य वायरस की सही पहचान नहीं हो पाने के कारण इससे बचने का उपाय शारीरिक दूरी ही मानी गई। नतीजतन लोग घरों में बंद हो गए और ज्यादातर देशों को लॉकडाउन करना पड़ा। अमीर देशों के पास भी कोरोना संक्रमण से बचने का कोई उपाय नहीं था। चिकित्सा के क्षेत्र में जो देश स्वयं को सक्षम व आत्मनिर्भर मानने के भ्रम में थे, वे सब कोविड अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बढ़ाने को मजबूर हो रहे थे। साफ है, मानव समुदाय का यह भ्रम टूट गया था कि हम प्रकृति का दोहन करने के बावजूद निरोगी व सुरक्षित बने रहेंगे। बावजूद इस महामारी ने चिकित्सा के क्षेत्र में शोध और अनुसंधान के नए द्वार खोले, जिनके सकारात्मक परिणाम निकले। भारत जैसे विकाशील देश इस कड़ी में अग्रणी देश साबित हुए। इसके कूटनीतिक परिणाम भविष्य में हिंद महासागर क्षेत्र में नए आकार में दिखाई देंगे और भारत के प्रति विश्वास का नया वतावरण बनेगा। दरअसल चीन की दोगली विस्तारवादी नीतियों के चलते यह क्षेत्र हमेशा भारत के लिए चिंता का कारण रहा है। नेपाल को भी दान के रूप में वैक्सीन देने के बाद वहां के राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं। चीन के प्रबल समर्थक रहे कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विद्रोही गुट ने ओली की प्राथमिकी सदस्यता रद्द कर दी है। इसे टीका कूटनीति का पर्याय माना जा रहा है।
इसी तरह चीन ने जब बांग्लादेश से वैक्सीन के परीक्षण का खर्च मांगा तो बांग्लादेश ने चीन से सौदा रद्द कर दिया। ढाका में मौजूद भारतीय राजदूत ने हाल ही में बताया है कि ढाका में चीन बांग्लादेश को सिनोफॉर्म वैक्सीन देने का सौदा कर रहा था, लेकिन उसने इस सौदे की शर्तों में क्लीनिकल ट्रायल में होने वाले खर्च की मांग भी कर डाली। इस शर्त को बांग्लादेश ने मानने से इंकार कर दिया। इधर भारत ने बांग्लादेश को मानवता के नाते एवं द्विपक्षीय संबंधों के चलते टीके की बीस लाख खुराकें उपहार में दे दीं। साथ ही अनुबंध के तहत टीके की तीन करोड़ खुराक भेजी जानी हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत की इस कृतज्ञता के लिए नरेंद्र मोदी को वीडियो वार्ता के जरिए धन्यवाद दिया। साफ है, भारत की कूटनीति इस टीके के जरिए वैश्विक स्तर पर मजबूत व फलदायी होने जा रही है।
नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशियाई देशों के प्रति प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मानवीय उदारता दिखाई है। इसी क्रम में भारत ने एक साझा उपग्रह उपहार में दिया था। जिसे पाकिस्तान को छोड़ सब दक्षेश देशों ने सराहा था। पाकिस्तान की हरकतों की वजह से भले ही दक्षेश लगभग निष्क्रिय हैं, लेकिन बिम्सटेक के मंच के माध्यम से भारत पड़ोसी देशों के साथ व्यापार, तकनीक, वित्त और अब दवा के क्षेत्र में बहुपक्षीय सहयोग बढ़ा रहा है। महामारी से मुक्ति के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और अब टीके व अन्य जरूरी उपकरणों को दान में अथवा सस्ती दरों में देकर भारत ने एक अनूठा व अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
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दुनिया जानती है कि कोविड-19 विषाणु से बचाव का स्थाई उपाय केवल टीका है। ऐसे में चीन व अन्य अमीर व शक्तिशाली देश टीके की ओट में उपचार की पूरी कीमत वसूलने में लगे हैं। चीन ने तो हृदयहीनता का परिचय देते हुए बांग्लादेश से ड्रग ट्रायल के खर्च की भी मांग कर डाली थी। भारत भी ऐसा कर सकता था। लेकिन उसने वैक्सीन के बहाने नाजायज प्रभाव जमाने की बजाय निस्वार्थ उदारता दिखाई। छोटे व बड़े देशों की समान रूप से मदद करने में लगा है। इसीलिए इसे टीका कूटनीति की बजाय टीका-मैत्री कहना कहीं ज्यादा उचित होगा।
प्रमोद भार्गव