सिरपुर महोत्सव में दिख रही बौद्ध विरासत व लोक संस्कृति की झलक, उमड़ रहे लोग

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रायपुर: सिरपुर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में महानदी के तट स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीपुर है यह एक विशाल नगर हुआ करता था तथा यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी। सोमवंशी नरेशों ने यहां पर राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। यह प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहां मौजूद है। पुरातत्व विभाग की खुदाई में यहां प्राचीन बौद्ध मठ भी मिले हैं।

अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर सिरपुर अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र है। यह पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। भारत के इतिहास में सिरपुर अपने धार्मिक मान्यताओं व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है। आज भी देश-विदेश से पर्यटक इन्हें देखने दूर-दूर से आते हैं।

सिरपुर महोत्सव –

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सिरपुर के प्रतिहासिक महत्व को छत्तीसगढ़ सरकार भी प्रमुखता देती है। यही वजह है कि प्रत्येक वर्ष यहां सिरपुर महोत्सव का आयोजन होता है। छत्तीसगढ़ का सिरपुर विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है। यहां माघ पूर्णिमा पर होने वाले तीन दिवसीय महोत्सव का हर कोई बेसब्री से इंतजार करता है। रविवार से यहां तीन दिवसीय सिरपुर महोत्सव शुरू हुआ है, जिसका उद्घाटन खाद्य एवं संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने किया। उन्होंने समस्त प्रदेश वासियों को माघी पूर्णिमा व सिरपुर महोत्सव की बधाई दी है।

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गंधेश्वर महादेव मंदिर –

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सिरपुर में प्राचीन गंधेश्वर महादेव का मंदिर भी है। यह मंदिर महानदी के तट पर स्थित है। इसके दो स्तम्भों पर लिखित अभिलेख से इसकी प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है। कहते हैं कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार चिमणाजी भोसले ने करवाया था। यहां बौद्धकालीन अनेक प्राचीन मूर्तियां भी मिली हैं। बता दें कि यह नगर 14वीं शताब्दी के प्रारंभ में वारंगल के ककातीय नरेशों के राज्य की सीमा पर स्थित था। अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने 310 ई. में वारंगल की तरफ जाते हुए सिरपुर पर भी आक्रमण किया था, जिसका उल्लेख अमीर खुसरो ने किया है।

बौद्ध विरासत व संस्कृति का केंद्र –

सिरपुर महोत्सव में आधुनिकता के साथ ही प्राचीन संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है। देश-विदेश से लोग यहां की प्राचीन संस्कृति को देखने हर साल आते हैं। युवा पीढ़ी को भी यहां की लोककला व बौद्ध विरासत से परिचित होने का मौका मिलता है।

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