लखनऊः सपनों के साकार के होने के बीच में पैसे की कमी का आना आम बात है। ऐसे एक नहीं हजारों लोग मिलेंगे, जो अपने सपनों को पैसों की कमी के चलते पूरा नहीं कर पाए। मगर इरादे पक्के और सच्चे हों तो कोई भी मुश्किल हो हल हो ही जाती है और कोई न कोई रास्ता निकल ही आता है, जो सफलता की मंजिल तक पहुंचाता है। ऐसा ही हुआ है बिहार के छोटे से कस्बे से निकल कर विदेश तक में अपना परचम फहराने वाले अमित दास के साथ, जिन्होंने खुद की सॉफ्टवेयर कंपनी ‘आइसॉफ्ट’ को खड़ा किया है। जानते हैं अमित की सफलता की पूरी कहानी।
लंदन जाने का ऑफर ठुकरा खोली खुद की कंपनी
अमित दास का जन्म बिहार के अररिया जिले के फारबिसगंज कस्बे के एक किसान के घर में हुआ था। किसान परिवारों में लड़के बड़े होकर खेती-बाड़ी ही किया करते थे। अमित इस परंपरा को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे। वह हमेशा से इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन उनके परिवार की आर्थिक हालत उन्हें इस बात की मंजूरी नहीं दे रही थी। उनकी आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च उठा सके। सरकारी स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद पटना के एएन कॉलेज से साइंस से इंटरमीडिएट किया। परिवार पर ज्यादा बोझ न डालते हुए अमित 250 रुपए लेकर दिल्ली आ गए। यहां आकर उन्हें अहसास हुआ कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च वो नहीं उठा पाएंगे। ऐसे में वह पार्टटाइम ट्यूशंस लेने लगे। साथ ही, दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए की पढ़ाई शुरू कर दी। पढ़ाई के दौरान उन्हें कंप्यूटर सीखने की सूझी। यहां उनके लिए अंग्रेजी एक समस्या बनी। जिससे निजात पाने के लिए अमित ने इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स किया। अपनी इंग्लिश को दुरुस्त करने के बाद अमित ने कम्प्यूटर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया।
6 महीने के कंप्यूटर कोर्स में उन्होंने टॉप किया। इंस्टीट्यूट ने उन्हें 3 साल के लिए प्रोग्रामर की नौकरी ऑफर की। इसके बाद एनआईआईटी लक्ष्मी नगर ने उन्हें फैकल्टी के तौर पर नियुक्त कर लिया। अमित को पहली सैलरी के रूप में 500 रूपए मिले। कुछ ही वक्त काम करने के बाद अमित को इंस्टीट्यूट से एक प्रोजेक्ट के लिए लन्दन जाने का ऑफर मिला, लेकिन अमित ने जाने से इनकार कर दिया। तब तक अमित अपनी कंपनी की नींव रखने का मन बना चुके थे। उस वक्त अमित की उम्र सिर्फ 21 वर्ष थी। अपनी खुद की कंपनी को बढ़ाने की इच्छा रखने वाले अमित ने जॉब छोड़ने का फैसला लिया। कुछ हजार रुपए की बचत से पूर्वी दिल्ली के गणेश नगर में किराए पर एक छोटी सी जगह में अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘आइसॉफ्ट’ की शुरुआत की। 2001 में इस शुरूआत से अमित काफी उत्साहित थे, लेकिन मुश्किलें खत्म नहीं हुई थीं।
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200 करोड़ से ज्यादा है सालाना टर्नओवर
कई दिनों तक उन्हें एक भी प्रोजेक्ट नहीं मिला। गुजारे के लिए अमित जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में रात 8 बजे तक पढ़ाते और फिर रात भर बैठ कर सॉफ्टवेयर बनाते। धीरे-धीरे समय बदला और अमित की कंपनी को प्रोजेक्ट मिलने लगे। अपने पहले प्रोजेक्ट के लिए उन्हें 5,000 रूपए मिले। अमित अपने संघर्ष के बारे में बताते हैं कि उस वक्त लैपटॉप खरीदने के भी पैसे नहीं थे, इसलिए क्लाइंट्स को अपने सॉफ्टवेयर दिखाने के लिए वे पब्लिक बसों में अपना सीपीयू साथ ले जाया करते थे। इसी दौरान उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट का प्रोफेशनल एग्जाम पास किया और इआरसिस नामक सॉफ्टवेयर डेवलप किया और उसे पेटेंट भी करवाया। अब अमित कुमार दास के सपनों को उड़ान मिल चुकी थी। 2006 में उन्हें सिडनी में एक सॉफ्टवेयर फेयर में जाने का मौका मिला। इस अवसर ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित करने का मौका दिया। इससे प्रेरित होकर उन्होंने अपनी कंपनी को सिडनी ले जाने का फैसला किया। आइसॉफ्ट सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी ने कदम दर कदम आगे बढ़ते हुए तरक्की की। आज उसने ऐेसे मुकाम को छू लिया, जहां वह हजारों कर्मचारियों और दुनिया भर में करीब सैकड़ों क्लाइंट्स के साथ कारोबार कर रही है। इतना ही नहीं 200 करोड़ रुपए से ज्यादा के सालाना टर्नओवर की इस कंपनी के ऑफिस सिडनी के अलावा, दुबई, दिल्ली और पटना में भी स्थित है।