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Bajrang Baan: बजरंग बाण में है अपार शक्ति, नियमित पाठ से दूर हो जाती हैं भव-बाधाएं

bajrang-baan Bajrang Baan: नई दिल्लीः हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार रामभक्त हनुमान जी सभी देवी-देवताओं में ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्तों को कष्टों, परेशानियों, भय और रोगों से मुक्ति दिलाते हैं। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार भगवान हनुमान चिरंजीवी हैं। वह आज भी धरती पर विचरण कर रहे हैं और अपने भक्त पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भक्त भगवान बजरंगबली को प्रसन्न करने और सभी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं। सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और भय से मुक्ति के लिए हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisha) का पाठ करते हैं। इसके अलावा जब किसी काम में रुकावट आ रही हो या कोई बड़ी मुसीबत आने वाली हो तो उससे बचने के लिए Bajrang Baan का पाठ करने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही बजरंग बाण का नियमित पाठ करने से कुंडली के ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं। साथ ही विवाह में आ रही रुकावटें भी दूर हो जाती हैं। बजरंग बाण (Bajrang Baan) के पाठ से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलताएं मिलने लगती हैं। समाज में मान-सम्मान बढ़ता है और वास्तुदोष समाप्त होता है। आइए करते हैं बजरंग बाण (Bajrang Baan) का पाठ..

बजरंग बाण

“ दोहा “ “निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।“ “तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥“

“चौपाई“ जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।। जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।। आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।। बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।

अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।। लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई।।

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।। जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।

जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।। ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।

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गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।। ॐ कार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।। सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।। पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।

वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।। पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।। बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।

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भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।। इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।

जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।। जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।

चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।। उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।। ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।। यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।। यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब काँपै।। धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।। “दोहा“ “ प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान। “ “ तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।। “

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