लखीमपुरः मेरी दोस्ती, मेरा प्यार.. ये पंक्तियां भले ही किसी फिल्मी गाने की हों, लेकिन किसान और बंदर की दोस्ती ने इसे एक बार फिर जीवंत कर दिया है। कहानी सीधी सी है कि दो साल पहले किसान अपनी फसल की रखवाली के लिए रात को खेतों में जाता था। वह रात का भोजन भी वहीं की झोपड़ी में करता था। तभी वहां एक बंदर रोजाना आकर बैठ जाता था। किसान उसे प्रतिदिन एक या दो रोटी खिलाता था।
यहीं से किसान चंदन और बंदर एक-दूसरे को समझने लगे और अच्छे दोस्त बन गये। बंदर भी अपने दोस्त चंदन के साथ रहने लगा। फिर एक दिन किसान की मृत्यु हो गई। पता नहीं बंदर को यह जानकारी कहां से मिल गई। भागते-भागते वह बंदर किसान के घर पहुंचा। शव के पास जाकर बैठ गया और अपने दोस्त को गहरी नींद में सोता हुआ देखता रहा। भीरा के गोंदिया गांव निवासी चंदनलाल वर्मा की तीन दिन पहले मौत हो गई थी।
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परिवार के सभी सदस्य एवं रिश्तेदार विलाप कर रहे थे। अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। उसी समय जंगल से एक बंदर उनके घर आया और चंदनलाल के शव के पास जाकर चुपचाप बैठ गया। कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहने के बाद बंदर ने धीरे से शव पर पड़ा कपड़ा हटाया और चंदन का चेहरा देखकर रोने लगा।
बंदर को देखकर पहले तो वहां मौजूद महिलाएं डर गईं, लेकिन जब बंदर ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया तो महिलाओं ने बंदर को समझाने की कोशिश की। इस पर बंदर स्त्रियों की गोद में सिर रखकर अपने मित्र के वियोग का शोक मनाने लगा। बंदर कभी जमीन पर लेट जाता तो कभी अपने दोस्त चंदन के शव के पास बैठकर उसे देखने लगता। जब परिजन चंदन के शव को अंतिम संस्कार के लिए घर से ले गए तो बंदर कुछ दूर तक साथ चला, लेकिन फिर वापस जंगल में चला गया।
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