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देवी के श्राप से सफेद हो गया था खत्री पहाड़, नवरात्रि पर सजता है मां विंध्यवासिनी का भव्य दरबार

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बांदाः केन नदी किनारे बसे शेरपुर के खत्री पहाड़ में विराजमान मां विंध्यवासिनी देश के प्रमुख 108 शक्ति पीठों में से एक है। जिस पर्वत पर मां का स्थान है उसका पत्थर सफेद रंग का है। कहते हैं कि देवी कन्या के श्राप से ही इस पर्वत का पत्थर सफेद रंग का हो गया और तभी से पर्वत का नाम खत्री पहाड़ पड़ गया। साल में दो बार नवरात्र पर्व में मां के दरबार में मेला लगता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु शक्तिपीठ में शीश झुकाकर अपनी मन्नतें मांगते हैं। मां सभी की मुरादें पूरी करती हैं।

यहां नवरात्रि में लगता है विशाल मेला

नवरात्र पर्व में शक्ति पीठ विंध्यवासिनी में नौ दिनों तक मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि राजा कंस, कृष्ण के बदले देवी कन्या को एक चट्टान पर पटकने लगा तो कन्या कंस के हाथ से छूटकर यह भविष्यवाणी करते हुए आसमान में ओझल हो गयी कि रे दुष्ट कंस तेरा वध करने वाला सुरक्षित है। कहा जाता है कि यही देवी कन्या सर्वप्रथम मिर्जापुर के विंध्याचल पर्वत पहुंची लेकिन पर्वत द्वारा देवी कन्या का बोझ सहन करने में असमर्थता प्रकट करने पर विंध्य पर्वत श्रृंखला की इस (खत्री पहाड़) आयीं लेकिन यहां भी पर्वत का वही उत्तर मिलने पर देवी कन्या ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। तभी से यहां के पत्थर सफेद हो गये हैं और नाम खत्री पहाड़ हो गया। उसी समय देवी कन्या ने आकाशवाणी की थी कि वह प्रत्येक अष्टमी को भक्तों को यहां दर्शन देती रहेंगी तभी से यहां धार्मिक मेला लगता चला आ रहा है।

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1974 में पहाड़ के नीचे बनाया गया नया मंदिर

मंदिर के पुजारी सुशील कुमार अवस्थी का कहना है कि1974 में ग्राम गिरवां के ब्राह्माण परिवार बद्री प्रसाद दुबे की नातिन शांता को मां विंध्यवासिनी ने स्वप्न में दर्शन दिये और इच्छा प्रकट की कि पर्वत के नीचे भी उनके मंदिर की स्थापना करायी जाये। इसके बाद पहाड़ के नीचे एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। जहां नवरात्रि के मेले में बड़ी संख्या में बांदा के अलावा मध्य प्रदेश के पन्ना, छतरपुर, अजय गढ़ के दर्शनार्थी आते हैं। जो लोग पहाड़ के ऊपर स्थित मंदिर में नहीं जा पाते थे। वह लोग नीचे मंदिर में दर्शन करके अपने आपको धन्य पाते हैं।

अष्टमी और नवमी को होती है भारी भीड़

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि नवरात्र की अन्य तिथियों में भक्तों की भीड़ कम होती है, मगर अष्टमी और नवमी तिथि को भक्तों की भीड़ जुटती है। गिरवां निवासी वरिष्ठ पत्रकार डा. शीलवृत शुकुल कहते है कि कोई अभिलेखीय साक्ष्य तो मौजूद नहीं है, पर लोक मान्यता है कि भार सहन करने में असमर्थता जाहिर करने पर खत्री पहाड़ को मां विंध्यवासिनी ने कोढ़ी होने का शाप दिया था, तभी से इस पहाड़ का पत्थर सफेद है और देवी मां के भक्त नवमी तिथि को लाखों की तादाद में हाजिर होकर मां का आशीर्वाद लेते हैं। उन्होंने बताया कि अष्टमी की मध्यरात्रि के बाद देवी की मूर्ति में अनायास चमक आ जाती है जिससे भक्त देवी जी के आ जाने का कयास लगाते हैं।

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