विदेशी फूलों के आगे फीकी पड़ रही देसी फूलों की सुगंध, लगातार घट रही गेंदा की डिमांड

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लखनऊः पुष्प प्रदर्शनी में देसी फूलों की महक के आगे विदेशी फूल फेल हो जाते हैं। यह कम कीमत में खरीदे जाते हैं, लेकिन उपयोगी अधिक होते हैं। यदि शहर में फूलों की वैरायटी देखने निकलें, तो कम से कम 300 किस्म के फूल मिल जाएंगे। इन दिनों सीजनल फूलों के पौधे लगाए जा रहे हैं, जिनमें सुगंधित गेंदा की तमाम वैरायटी हैं लेकिन इसकी मांग कम हो गई है।

शहर के किसानों के पास भी फूलों की तमाम तरह की किस्में हैं। हालैंड का लिलियम भी इनके पास है, इन्हीं के पास देसी गेंदा भी मिल रहा है। हर कोई इनको गमलों में लगाने के लिए तलाश रहा है। रिमझिम बारिश और सर्दी का मौसम देशी फूलों को काफी पसंद आता है। रंग-बिरंगे फूलों की महक से शादियों व अन्य समारोहों में चार चांद लग जाते हैं। किसी बड़े मंच को जब इन फूलों से सजा दिया जाता है तो मानो फूलों की बगिया मंच तक पहंुच जाती है। यह फूल एक-दो नहीं तमाम अलग-अलग किस्म के होते हैं। इनमें गेंदा, गुलाब, कनेर की मांग ज्यादा रहती है। ऐसे समारोहों की सुंदरता को मोबाइल में कैप्चर करने वालों के लिए भी यह बेहद खूबसूरत नजारा बन जाता है।

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इन फूलों के पौधे भी काफी सस्ते मिल जाते हैं। बारिश के दिनों में अच्छा गेंदा ट्रे के साथ सात रूपए जबकि गड्डी में तीन रूपए में ही मिलता है। इसी तरह कनेर का पौधा कई रंग में बीस से तीस रूपए तक नर्सरियों में मिलता है। देशी पौधे इतने सस्ते होते हैं फिर भी चलन अंग्रेजी पौधों का बढ़ा है। जीनिया, नरगिस, मोगरा, लैवेंडर और पोस्ता के फूल भी यहां खूब पसंद किए जा रहे हैं। इनके पौधों की खपत दिन पर दिन बढ़ रही है। शहर के लोग इन पौधों को खरीदने के लिए अच्छी कीमत भी खर्च करने में नहीं चूकते हैं। नर्सरी में एक पौधे की कीमत 30 रूपए से कम नहीं है। यह तब है, जबकि इन फूलों से मालाएं कम ही बन पाती हैं। किसी महफिल को सजाने के लिए इनके गमले ही रखे जा सकते हैं।

·  शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट

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