यहां सिर्फ ‘मुंडारी’ ही समझते हैं छात्र, रसोइया करती है पाठों का हिंदी में अनुवाद

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खूंटी : वैसे तो हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और झारखंड सहित अन्य राज्यों के स्कूलों में हिंदी माध्यम से पढ़ाई-लिखाई होती है। लेकिन झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकों में कई ऐसे स्कूल हैं, जहां के बच्चे अपनी मातृभाषा (बोलचाल की भाषा) मुंडारी के अलावा न हिंदी बोलना जानते हैं और न समझते हैं। वैसे विद्यालयों में जब मुंडारी नहीं जानने वाले शिक्षकों की पदस्थापना हो जाती है, तब सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि शिक्षक क्या पढ़ाते होंगे और बच्चे कितना समझते होंगे।

जनजातीय बहुल क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में भाषा की समस्या के कारण बच्चे उचित शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण है स्कूल में मुंडारी शिक्षकों की कमी। छात्र न तो शिक्षक की बात समझ पाते हैं और न ही बच्चों की बातों को मास्टर साहब समझ पाते हैं। इसके कारण ऐसे स्कूलों में पठन्-पाठन में भारी परेशानी होती है। ऐसा ही एक स्कूल है तोरपा प्रखंड की फटका पंचायत के घोर नक्सल प्रभावित गांव तरगिया का। इस राजकीकृत मध्य विद्यालय में 40 बच्चे नामांकित हैं और ये सभी मुंडारी भाषी हैं। छात्रों की क्या गांव वाले भी मुंडारी के अलावा दूसरी भाषा समझ नहीं पाते। विद्यालय में ऐसे शिक्षकों की पदस्थापना कर दी गयी है, जिन्हें मुंडारी आती ही नहीं है। सभी मास्टर साहब हिंदी बोलने वाले हैं। इसके कारण न तो विद्यार्थी शिक्षक की पूरी बात समझ पाते हैं और न ही बच्चों की बातों को शिक्षक। स्थिति यह है कि कोई महत्वपूर्ण पाठ अगर पढ़ाना होता है, तो स्कूल में कार्यरत रसोइया उसका अनुवाद करती है, तब बच्चों को समझ में आता है।

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हिंदी समझाने में हो रही शिक्षकों को मुश्किलें –

स्कूल में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों की पढ़ाई होती है। सभी बच्चे अनुसूचित जनजाति के हैं, जो केवल मुंडारी भाषा ही बोलते हैं। हल्की-फुल्की हिंदी समझ पाते हैं, लेकिन बोल नहीं पाते। स्कूल के ज्यादातर बच्चे अपने घर-परिवार में बोली जाने वाली भाषा मुंडारी बोलते हैं। ऐसे में स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों के समक्ष काफी समस्या उत्पन्न हो रही है। इसके लिए स्कूल के प्रभारी शिक्षक रजनीकांत मंडल शिक्षा विभाग से स्कूल में एक मुंडारी भाषा पढ़ाने वाले शिक्षक की पदस्थापना की मांग कर चुके हैं, पर विभाग अभी तक मौन है। रजनीकांत मंडल कहते हैं, हम लोग जैसे-तैसे बच्चों को पढ़ा रहे हैं। शिक्षक काफी प्रयास करते हैं कि बच्चे हिंदी में बोले बात करें, लेकिन बच्चे थोड़ी-बहुत हिंदी समझ लेते हैं, पर बोल नहीं पाते। ऐसे स्कूलों में मुंडारी के जानकार शिक्षकों की पदस्थापना की मांग बराबर उठती भी है, लेकिन कोर्रवाई नहीं होती है।

राजकीयकृत मध्य विद्यालय तरगिया के प्रभारी शिक्षक रजनीकांत मंडल इस स्कूल में वर्ष 2004 से पदस्थापित हैं। वह 2023 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। 2006 तक स्कूल में मुंडारी भाषा के जानकार सामुएल पूर्ति और अर्चना कंडुलना पदस्थापित थे, जो मुंडारी में अनुवाद कर बच्चों को पढ़ाते थे, लेकिन 2006 के बाद मुंडारी भाषा के जानकार शिक्षक कर पदस्थापना नहीं की गयी। वहा कार्यरत सभी शिक्षक सामान्य गैर जनजाति समुदाय के हैं, जिन्हें मुंडारी नहीं आती है। अभी वहां रजनीकांत मंडल के अलावा और एक अन्य शिक्षक पदस्थापित माड़वारी साहू, उन्हें भी मुंडारी भाषा नहीं आती।

रसोइया करतीं है अनुवाद

स्कूल के प्रभारी शिक्षक रजनीकांत मंडल ने बताया कि जो बहुत ही जरूरी पाठ होता है, उसे बच्चों को समझाने के लिए स्कूल की रसोइया नन्दी बोदरा द्वारा अनुवाद करा बच्चों को समझाया जाता है। ऐसे में बच्चों में आत्मविश्वास की कमी साफ झलकती है।

विभाग को सूचना दे दी गयी है: शिक्षा प्रसार पदाधिकारी

इस संबंध में तोरपा के प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी डोमन मोची कहते हैं कि स्कूल से आवेदन मिला है। इस बारे में विभाग को सूचित कर दिया गया है, पर अभी तक मुंडारी भाषा के जानकार शिक्षक की बहाली नहीं हो पायी है। उन्होंने कहा कि बच्चों का अधिकार है कि वे अपने मातृ भाषा में शिक्षा ग्रहण करें, लेकिन राष्ट्रीय भाषा की जानकारी भी जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 350 ए में विशिष्ट भाषाई अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान कर कौशल का विकास करने की बात कही गयी है। यदि उनकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है, तो यह उनके लिए अधिक ग्रहणशील होगी। इसके लिए विभाग से बात कर आगे की व्यवस्था की जाएगी।

क्षेत्रीय भाषा के जानकार शिक्षकों की बहाली हो: प्रखंड प्रमुख

तोरपा के प्रखंड प्रमुख रोहित सुरीन ने कहा कि तरगिया स्कूल के अलावा इस प्रकार के सभी स्कूलों में क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद करने वाला शिक्षकों की होनी चाहिए, ताकि बच्चे पूर्णरूप से और सहज भाव से शिक्षा ग्रहण कर सकें। इससे उनकी शैक्षणिक स्थिति मजबूत होगी।

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