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शहर दो साल से ठप है मिट्टी की जांच, किसान परेशान

soil-treatment लखनऊः तहसील से ब्लाॅक तक के किसान और अधिकारी मृदा परीक्षण के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। आज भी जिलों में किसान सहायक यह बताने से नहीं चूकते हैं कि खेतों की मिट्टी की जांच जरूरी है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि 2 सालों से यह ठप पड़ी हुई है। किसान जमीन की जरूरत के हिसाब से खाद का उपयोग करता है और स्वस्थ अन्न पाता है। खेतों में उपज भी बढ़ती है और खाद की खपत भी कम होती है। अभी तक जोत के आधार पर किसानों को खाद दिए जाने के निर्देश थे, लेकिन जांच के बाद अब हेल्थ कार्ड को प्रमुखता दी जा रही है। प्रदेश के किसानों के खेतों की जांच पिछले साल भी नहीं हो सकी थी। कोरोना संक्रमण की वजह से किसानों से अपील की गई थी कि वह स्वेच्छा शुल्क देकर केंद्र सरकार की व्यवस्था का लाभ ले सकते हैं, लेकिन इसे 2020 में ही रोक दिया गया था। विभागीय आंकड़े बता रहे हैं कि जिस तेजी से मिट्टी का परीक्षण कराने वालों की संख्या बढ़ी है, उसके अनुसार डीएपी की वार्षिक खपत भी घटी है। 2018-19 में ग्रिड आधारित यानी सिंचित क्षेत्र का 4 हेक्टेयर व असिंचित क्षेत्र की 10 हेक्टयेर भूमि का चयन करके परीक्षण किया गया था। इसमें 49 लाख ग्रिडों का नमूना लेकर किसानों को मृदा स्वास्थ्य परीक्षण कार्ड बांटे गए थे। कृषि विभाग ने 2019-20 में हर ब्लाक के एक गांव का चयन करके जोत आधारित परीक्षण कराया था।

बढ़ नहीं पाता है उत्पादन -

शहर में कृषि विभाग की जो प्रयोगशालाएं हैं, उनमें एनपीके की जांच तो हो जाती हैं लेकिन सूक्ष्म पोषक तत्वों का पता लगा पाना कठिन है। यही कारण कि किसान अपने खेतों में उर्वरक की गुणवत्ता का पता लगा पाने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे में पैसा खर्च तो खर्च किया जाता है, लेकिन उत्पादन नहीं बढ़ पाता है।

विभाग भी नहीं है गंभीर -

ज्यादातर मिट्टी की जांच गन्ना प्रयोगशालाओं के पास हैं। इनमें कृषि भूमि की मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस के साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्व कापर, मैंग्नीज, आयरन, जिंक, बोरान, मॉलीवेडनम, क्लोरीन आदि की भी अब जांच की जाती है, मगर इनके पास तक किसानों का पहुंच पाना सरल नहीं है। कारण है कि किसानों को पूरी जानकारी वेबसाइट के माध्यम से ही मिल पाती है, इसमें न तो किसान परिपक्व हैं और न ही विभाग गंभीर है।

जरूरी होती है मिट्टी की जांच -

मृदा वैज्ञानिक डॉ. यशवंत कुमार सिंह बताते हैं कि मिट्टी में मौजूद तत्वों की संतुलित मात्रा उपज के लिए वरदान होती है। जब कभी अज्ञानता के चलते इनकी मात्रा असंतुलित हो जाती है, तो फसलों को विभिन्न रोग एवं कीट बड़ा नुकसान करने लगते हैं इसलिए मिट्टी की जांच जरूरी है।

कठिन है नमूने की जांच -

किसान अपने खेत की मिट्टी को लेकर यदि मृदा परीक्षण केंद्र तक पहुंच भी जाता है, तो जरूरी नहीं है कि वह जो मिट्टी लेकर पहुंचा है, उसकी प्रक्रिया सही है। एक ही जगह की मिट्टी से बेहतर है कि खेत के चारों कोनों की मिट्टी को लेकर जाएं। इसके जरूरत के अनुसार उनके मिश्रण की जांच की जाती है।

लखनऊ में 2016 से हुई शुरूआत -

राजधानी लखनऊ में मृदा परीक्षण कार्ड बनाने की शुरुआत 2016 में हुई थी, जिसके बाद यहां के किसानों ने कार्ड भी बनवाने तेज कर दिए थे। वर्तमान में करीब 3 लाख 50 हजार किसानों ने कार्ड बनवा लिए हैं। यह कार्ड तीन साल में एक बार बनता है। कृषि निदेशालय से मिली जानकारी के अनुसार, लखनऊ शहर में गेहूं का उत्पादन 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था। अब यह 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के करीब है। ऐसी ही बढ़ोत्तरी धान के उत्पादन में भी हुई है। इसमें 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की जगह पर 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पहुंचाने में सफलता मिली है। ये भी पढ़ें..सपा विधायक समेत 10 लोगों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज, जानें पूरा मामला कम हो रही है यूरिया की मारामारी - मृदा परीक्षण के बाद किसानों को पता चल पाता है कि उनके खेत को किस पोषक तत्व की जरूरत होती है। उसी जानकारी के पालन में किसान खेतों में खाद डालता है। 2019 के आंकड़े के अनुसार, एक हजार मीट्रिक टन यूरिया की खपत पहले हुआ करती थी। अब यह 900 मीट्रिक टन के करीब है। डीएपी की खपत में भी बदलाव हुआ है और अब यह 900 मीट्रिक टन से घटकर 780 मीट्रिक टन के करीब है। जांच की गति होगी तेज - जिला कृषि रक्षा अधिकारी धनंजय सिंह मृदा परीक्षण जांच की गति को लेकर चिंतित हैं। वह कहते हैं कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार भी कृत संकल्प है। कुछ व्यवधानों के चलते इसमें तेजी नहीं लाई जा सकी है, लेकिन जल्द ही इस दिशा में प्रयास किए जाएंगे। - शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)