न्यूयॉर्कः यमन सरकार और हाउदी विद्रोहियों के बीच युद्ध विराम नहीं बढ़ सका है। इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने निराशा जताई है। इस बीच संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत एक बार फिर युद्ध विराम को विस्तार देने के लिए यमन की यात्रा पर हैं। यमन में ईरान समर्थित हाउदी विद्रोहियों ने वर्ष 2014 में राजधानी सना समेत देश के उत्तरी इलाकों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद भीषण गृह युद्ध की शुरुआत हुई थी और यमन की सरकार को निर्वासित घोषित कर दिया गया था। सऊदी अरब के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना ने यमन में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार की बहाली के लिए 2015 में प्रयास शुरू किया था।
सात वर्षों से अधिक समय तक चले संघर्ष ने दुनिया का सबसे भयावह मानवीय संकट खड़ा कर दिया। इसमें 15 हजार आम नागरिकों सहित डेढ़ लाख से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता में दोनों पक्षों ने दो अप्रैल को युद्ध विराम समझौते को स्वीकार किया था। यह समझौता दो-दो महीने के लिए तीन बार बढ़ कर दो अक्टूबर तक पहुंचा था। दो अक्टूबर के बाद से युद्ध विराम नहीं बढ़ाया जा सका है। इस बीच संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत टिम लेंडरकिंग ने शुक्रवार को यमनी प्रेसिडेंशियल लीडरशिप काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. रशद अल-अलीमी से इस मसले पर वार्ता की। कोई नतीजा न निकलने पर वह युद्ध विराम बढ़ाने के प्रयासों के लिए यमन की यात्रा पर रवाना हो गए हैं। इस बीच युद्ध विराम न बढ़ने पर भारत ने निराशा जताई है।
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी दूत रुचिरा कंबोज ने भारत की ओर से यमन की एकता और संघर्षग्रस्त देश के लोगों के प्रति एकजुटता प्रकट की। उन्होंने यमन में युद्धरत गुटों के बीच संघर्ष विराम की अवधि न बढ़ने को निराशाजनक करार दिया। उन्होंने कहा कि संघर्ष का एकमात्र टिकाऊ समाधान शांतिपूर्वक बातचीत और राजनीतिक हल है। इससे यमन के लोगों की आकांक्षा पूरी होगी और खुशहाली आएगी। यमन सरकार ने भरोसे के साथ संघर्ष विराम समझौतों को लागू किया था। यह समय युद्धरत पक्षों के लिए मानव-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने का है, न कि इसे केवल एक सैन्य या राजनीतिक खेल के रूप में देखने का। भारत ने विशेष दूत के जरिए जल्द ही संतोषजनक समझौते की उम्मीद जताई।
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