Saturday, November 2, 2024
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Homeदेशआतंकवाद का खात्मा हथियार से नहीं, किरदार से होगाः सैयद मोहम्मद अशरफ

आतंकवाद का खात्मा हथियार से नहीं, किरदार से होगाः सैयद मोहम्मद अशरफ

नई दिल्ली: ऑल इंडिया उलेमा व माशाइख बोर्ड के अध्यक्ष हजरत सैयद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने कहा कि आतंकवाद को किसी भी कीमत पर तलवार या हथियार से समाप्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह शांति को भी हथियार से स्थापित नहीं किया जा सकता। इसके लिए किरदार यानी आचरण की जरूरत है। किरदार कैसा हो, अगर देखना है तो हमें नबी का किरदार देखना है लेकिन नबी को समझने के लिए अली को समझना जरूरी है।

उन्होंने उक्त विचार इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में ऑल इंडिया उलेमा व माशाइख बोर्ड और डॉक्टर पीरजादा फाउंडेशन बंगलौर के तत्वावधान में “खसाइस-ए-अली“ नामक किताब के विमोचन समारोह में व्यक्त किया है। इस किताब को आज से 600 साल पहले इमाम नसाई ने लिखा था। समारोह में तुर्की और ईरान के राजदूतों सहित इंडोनेशिया और इराक गणराज्य के कॉन्सिल जनरल शामिल हुए। साथ ही देश के जाने माने शिक्षाविद, प्रोफेसर्स, स्कॉलर्स, उलेमा और माशाइख ने भी शिरकत की है।

सय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछवी ने कहा कि शुरू दौर से हजरत अली को और उनके व्यक्तित्व को छुपाने का प्रयास नफरत के एजेंटो का रहा है ताकि लोग अली को न समझ सकें। जब अली को नहीं समझेंगे तो नबी से दूर हो जाएंगे। लिहाजा हम सब की जिम्मेदारी है कि मौला अली को लोगों तक पहुंचाए। उसका तरीका यही है कि उनके बारे में अधिक से अधिक मालूमात और उनकी शिक्षा लोगों तक पहुंचाई जाए। यह किताब खसाइस-ए-अली जिसका आज विमोचन हो रहा है। मैं खुद अपने सभी मदरसों और स्कूलों के कोर्स में शामिल इसे करुंगा और उम्मीद करता हूं कि आप सभी लोगों तक इस किताब को लोगों तक पहुंचाएंगे।

कार्यक्रम की शुरुआत तिलावते कुरान से हुई। उसके बाद हजरत तनवीर हाशमी ने लोगों का स्वागत किया। तुर्की के राजदूत फिरत सुलेन ने कहा कि ज़ात-ए-अली को पहचाने बिना हम सही और गलत का फैसला नहीं कर सकते क्योंकि अल्लाह के रसूल ने फरमाया है कि जहां अली है, वहां हक को पहचानने के लिए हमें अली को देखना होगा।

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ईरान के राजदूत जाफरी ने कहा कि अली अलैहिस्सलाम बाबुल इल्म यानी इल्म का दरवाजा हैं और बिना दरवाजे से गुजरे हम इल्म के शहर में दाखिल नहीं हो सकते। इराक और इंडोनेशिया के काउंसिल जनरल ने भी लोगों को इस किताब के उर्दू अनुवाद के लिए मुबारकबाद पेश की। इस मौके पर प्रोफेसर अख्तरुल वासे, प्रोफेसर ख्वाजा इकराम, अजमेर शरीफ के गद्दीनशीन और बोर्ड के संयुक्त सचिव हाजी सैयद सलमान चिश्ती, महबूब-ए-इलाही हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह के नायब सज्जादानशीन सय्यद फरीद अहमद निजामी, तेलंगाना से आए सैयद आले मुस्तफा पाशा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए हैं।

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