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दिल्ली के 12 कॉलेजों में महीनों बाद शिक्षकों को मिला वेतन, एरियर- मेडिकल अभी भी बकाया

नई दिल्लीः दिल्ली विश्वविद्यालय के एक दर्जन कॉलेजों में शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है। वेतन को लेकर आंदोलन, कई बार धरने और प्रदर्शन के बाद शिक्षकों को अब वेतन तो हासिल हुआ है लेकिन अभी भी एरियर का भुगतान नहीं हुआ। शिक्षकों के मेडिकल बिल, एलटीसी बिल व सेवानिवृत्त शिक्षकों की पेंशन अभी भी नहीं मिली है। दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों का एक गुट इसके लिए सीधे-सीधे दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है।

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वहीं शिक्षकों के दूसरे गुट ने भी दिल्ली सरकार से तुरंत अधिक ग्रांट रिलीज करने को तो कहा है, पर शिक्षकों के इस गुट का कहना है कि दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित इन कॉलेजों में दबाव बनाकर एक खास विचारधारा के लोगों की नियुक्त का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल यह सभी कॉलेज 12 कॉलेज दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ यानी डूटा के अध्यक्ष प्रोफेसर अजय कुमार ने बताया कि दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज, लक्ष्मीबाई कॉलेज, श्यामलाल कॉलेज में दिल्ली सरकार के गवनिर्ंग बॉडी अध्यक्ष द्वारा शिक्षकों को अनावश्यक रूप से परेशान किया जा रहा है। साथ ही प्रिंसिपलों पर स्टूडेंट वेलफेयर फंड के पैसे से सैलरी देने का दबाव बनाया जाता रहा है।

प्रिंसिपल एसोसिएशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को दिल्ली सरकार के गैरजरूरी हस्तक्षेप के बारे में बार-बार लिखा है। शिक्षकों की सैलरी देने में विफल दिल्ली सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है। ऐसे में अब डूटा ने वाइस चांसलर से मांग है कि दिल्ली सरकार की गवनिर्ंग बॉडी को बर्खास्त किया जाए। वहीं आम आदमी पार्टी समर्थक टीचर्स एसोसिएशन (डीटीए), के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन का कहना है कि दिल्ली सरकार व दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर बार बार प्रदर्शन कर अनुचित दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया है कि दिल्ली सरकार के 20 से अधिक कॉलेजों में प्रिंसिपल के पदों पर नियुक्ति होनी है। जहां डूटा व केंद्र सरकार की विचारधारा से जुड़े लोग अपनी विचारधारा के शिक्षकों को नियुक्त करना चाहते हैं।

दिल्ली सरकार द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के 28 कॉलेज वित्त पोषित किए जाते हैं। इनमें 12 पूर्ण वित्त पोषित कॉलेज है जिन्हें दिल्ली सरकार की ओर से शत प्रतिशत अनुदान राशि दी जाती है। इसके अतिरिक्त 16 कॉलेज दिल्ली सरकार द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित हैं। इन सभी 28 कॉलेजों में दिल्ली सरकार की गवनिर्ंग बॉडी है उन्हीं के चेयरमैन हैं। प्रोफेसर सुमन के मुताबिक बावजूद इसके वे अपने कॉलेजों में प्रिंसिपल नियुक्त नहीं करा पाते क्योंकि प्रिंसिपल की सलेक्शन कमेटी में एक खास विचारधारा के लोगों का वर्चस्व है जिसकी वजह से दिल्ली सरकार के इन कॉलेजों में सरकार के प्रिंसिपल नहीं बन पा रहे है।

डीटीए ने भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से दिल्ली सरकार से सम्बद्ध पूर्ण वित्त पोषित 12 कॉलेजों की ग्रांट तुरंत रिलीज करने की मांग की है। डीटीए का कहना है कि ग्रांट रिलीज न होने के कारण कई कॉलेजों के शिक्षकों को पिछले दो महीने से प्रमोशन का एरियर नहीं मिला। साथ ही वेतन रुकने की वजह से इन कॉलेजों में स्थायी और तदर्थ शिक्षक व कर्मचारी भयावह आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। डीटीए का कहना है कि दिल्ली सरकार द्वारा अब ग्रांट रिलीज कर दी गई है जिससे शिक्षकों को वेतन का भुगतान किया गया है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अभी पूरी ग्रांट रिलीज नहीं की गई है।

डूटा सचिव डॉ सुरेन्द्र सिंह ने बताया कि 12 कॉलेजों में कार्यरत तदर्थ शिक्षक की पोस्ट अनुमोदन न होने के कारण इन शिक्षकों का करियर अधर में लटका हुआ है। दिल्ली सरकार ने कॉलेज ऑफ आर्ट्स का अस्तित्व ही खत्म कर दिया है। इस कॉलेज को अम्बेडकर विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स विभाग के रूप में बदल दिया है, जिससे समस्याएं और अधिक बढ़ गई हैं।

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