Teachers Day 2023 : 5 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है टीचर्स डे, जानें इसके पीछे का इतिहास और महत्व

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Teachers Day 2023 : जिस प्रकार एक कुम्हार मिट्टी का इस्तेमाल कर उसे बर्तन का आकार देता है। उसी प्रकार एक शिक्षक छात्र के भविष्य को मूल्यवान बनाता है। छात्र के जीवन मे गुरु की अहम भूमिका होती है। हमारे जीवन में गुरु का बड़ा महत्व है। अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने वाले शिक्षक को भगवान का दर्जा दिया जाता है। गुरु ही हमे सही गलत को परखने का तरीका सिखाता है। बच्चों के जीवन का पहला गुरु उसकी मां होती है। इसके बाद शिक्षक हमें जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं से रुबरु कराता है। भारत में हर साल 5 सितंबर को हम शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस (Teachers Day) मनाया जाता है। तो आइए जानते है कि शिक्षक दिवस का इतिहास क्या है और भारत में इसकी कब शुरूआत हुई थी।

वैसे तो विश्वभर में शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है, लेकिन भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (dr sarvepalli radhakrishnan) की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। राधाकृष्णन एक महान शिक्षक होने के साथ भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। उनका शिक्षा के क्षेत्र में काफी ज्यादा लगाव था, 40 वर्षों तक उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर कार्य किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध शिक्षक के साथ बहु प्रसिद्ध लेखक और सफल राजनीतिज्ञ रहे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को करीब 27 नोबेल पुरस्कार मिले और भारत रत्न से नवाजा गया है।

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इस तरह हुई शिक्षक दिवस की शुरुआत

शिक्षक दिवस (Teachers Day 2023) साल 1962 में डॉ राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने के बाद शुरु हुई। कहा जाता है कि उनका जन्म दिन मनाने की स्वीकृति मांगने उनके छात्र उनके पास गए तब उन्होने कहा कि मेरा जन्मदिन मानने के बजाए देश भर में इस दिन शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस आयोजित किया जाए। उन्होंने कहा कि इससे मुझे गर्व होगा। वह यह भी कहते थे कि पूरी दुनिया एक विद्यालय की तरह है जहां हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षक छात्रों का जीवन मूल्यवान बनाते हैं। शिक्षक उन्हें सही गलत परखना सीखाते है। जिसके बाद से ही देशभर में 5 सितंबर 1962 को पहली बार शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाने लगा।

गरीब परिवार जन्मे राधाकृष्णन बने देश के पहले उपराष्ट्रपति

बता दें कि डॉ राधाकृष्णन (dr sarvepalli radhakrishnan) का जन्म तमिलनाडू के तिरुतनी के एक गांव में साल 1888 में हुआ था। राधाकृष्णन एक गरीब परिवार में जन्मे थे वह बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे। प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने फिलोसोफी में एम.ए किया, इसके बाद मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज मे फिलॉसफी के असिस्टेंट प्रोफेसर के रुप में साल 1916 में कार्य किया।

राधाकृष्णन कई सालों तक प्रोफेसर के रुप में कार्य करते रहे हैं। इसके बाद भारत के यूनिवर्सिटीज के साथ उन्हें कोलंबो व लंदन यूनिवर्सिटीज ने मानक उपाधियों से सम्मानित किया। उन्होंने भारत की आजादी के बाद भी कई अहम पदों पर रह कर काम किया। इसके बाद रुस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत रहे। साल 1952 में वह भारत के उपराष्ट्रपति रहे। उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

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