Teachers Day 2022: क्यों मनाया जाता है टीचर्स डे, जाने इतिहास और शिक्षक दिवस का महत्व

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नई दिल्लीः एक कुम्हार जिस प्रकार मिट्टी का इस्तेमाल कर उसे बर्तन का आकार देता है। उसी प्रकार एक शिक्षक छात्र के भविष्य को मूल्यवान बनाता है। मनुष्य के जीवन मे शिक्षक की अहम भूमिका होती है। वह सही गलत परखने का तरीका सिखाता है। बच्चों के जीवन का पहला गुरु उसकी मां होती है वही शिक्षक को दूसरा स्थान दिया गया है। जो हमें जीवन का ज्ञान प्राप्त कराता है। सांसारिक बोध से अवगत कराता है। जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं से रुबरु कराता है। हर साल 5 सितंबर को हम शिक्षक के सम्मान में शिक्षक दिवस (Teachers Day) मनाते है। तो आइए इस लेख से हम जानते है कि शिक्षक दिवस का इतिहास क्या है और कब से भारत में इसे मनाया जाता है।

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वैसे तो विश्वभर में शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है, लेकिन भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। राधाकृष्णन एक महान शिक्षक होने के साथ भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। उनका शिक्षा के क्षेत्र में काफी ज्यादा लगाव था, 40 वर्षों तक उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर कार्य किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध शिक्षक के साथ बहु प्रसिद्ध लेखक और सफल राजनीतिज्ञ रहे। बता दें कि उन्हें करीब 27 नोबेल पुरस्कार मिले और भारत रत्न से नवाजा गया है।

कैसे हुई शिक्षक दिवस की शुरुआत

शिक्षक दिवस (Teachers Day) साल 1962 में डॉ राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने के बाद शुरु हुई। कहा जाता है कि उनका जन्म दिन मनाने की स्वीकृति मांगने उनके छात्र उनके पास गए तब उन्होने कहा कि मेरा जन्मदिन मानने के बजाए देश भर में इस दिन शिक्षको के सम्मान में शिक्षक दिवस आयोजित किया जाए। उन्होंने कहा कि इससे मुझे गर्व होगा। वह यह भी कहते थे कि पूरी दुनिया एक विद्यालय की तरह है जहां हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षक छात्रों का जीवन मूल्यवान बनाते हैं। शिक्षक उन्हें सही गलत परखना सीखाते है। जिसके बाद से ही देशभर में 5 सितंबर 1962 को पहली बार शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाने लगा।

1888 में हुआ था राधाकृष्णन का जन्म

बता दें कि डॉ राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडू के तिरुतनी के एक गांव में साल 1888 में हुआ था। राधाकृष्णन एक गरीब परिवार में जन्मे थे वह बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे। प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने फिलोसोफी में एम.ए किया, इसके बाद मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज मे फिलॉसफी के असिस्टेंट प्रोफेसर के रुप में साल 1916 में कार्य किया। राधाकृष्णन कई सालों तक प्रोफेसर के रुप में कार्य करते रहे हैं। इसके बाद भारत के यूनिवर्सिटीज के साथ उन्हें कोलंबो व लंदन यूनिवर्सिटीज ने मानक उपाधियों से सम्मानित किया। उन्होंने भारत की आजादी के बाद भी कई अहम पदों पर रह कर काम किया। इसके बाद रुस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत रहे। साल 1952 में वह भारत के उपराष्ट्रपति रहे। उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

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