G20 के जरिए मजबूत होती रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी

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G20 की मेजबानी में भारत ने नया आयाम स्थापित किया है। नई दिल्ली में 09 और 10 सितंबर को आयोजित हुआ शिखर सम्मेलन जितना भव्यता लिए था और जिस कूटनीतिक दक्षता का परिचय देते हुए भारत सर्वसम्मति से घोषणा पत्र पर सहमति बनाने में सफल रहा, यह देख कर पूरा विश्व आश्चर्यचकित था। सभी को इस उभरते हुए नए भारत का एहसास पूरी शिद्दत से हुआ। भारत की मेजबानी में G20 निश्चित ही समावेशी, महत्वाकांक्षी और परिणाम देने वाला साबित हुआ है।

जी20 में 20 राष्ट्राध्यक्षों के अतिरिक्त 09 मेहमान देश और 14 वैश्विक एजेंसियों के प्रमुख भी सम्मिलित हुए। जिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई वह भी काफी विस्तृत और महत्वपूर्ण रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के वित्तीयन, संपोषणीय विकास, लैंगिक समानता, क्रिप्टो कैरेंसी, बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार आदि कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। इसके बावजूद जी20 के मूलभूत मंत्र के अनुरूप भारत का जोर सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर रहा तथा जिसमें महत्वपूर्ण सहमति बनाने में भारत सफल रहा। घोषणा पत्र में विश्व के समर्थ, दीर्घकालिक, संतुलित और समावेशी विकास पर बल दिया गया है, आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निंदा की गई है और इसे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक माना गया है। भारत ने लैंगिक समानता जैसे विषयों को भी महत्व दिया। साथ ही डिजिटल क्रांति का लाभ विश्व के निर्धन और वंचित लोगों को मिले इस बात को भी एजेंडा में सम्मिलित किया। एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य का नारा बुलंद करते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र सहित तमाम वैश्विक निकायों में सुधारों पर अब नए सिरे से जोर दिया है। इस आयोजन के बाद भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य के रूप में दावेदारी और मजबूती से उभरी है।

भारत ने जी20 के आयोजन को एक राष्ट्रीय आयोजन का रूप दे डाला, जिसमें आम लोगों की भी रुचि और सहभागिता देखी गई। भारत के 60 शहरों में 220 बैठकें हुई, जिसमें लगभग डेढ़ करोड़ लोग किसी ना किसी रूप में शामिल हुए। जी20 की प्रासंगिकता और उसके प्रति विश्वास को बहाल करने में यह आयोजन पूरी तरह से सफल रहा है। अमेरिका के नेतृत्व वाले जी7 समूह का यूक्रेन मसले पर नरम रुख भारत की एक बड़ी कामयाबी है तथा यह इस बात की ओर भी संकेत करता है कि अमेरिका और उसके सहयोगी आने वाले वर्षों में भारत को एक बड़े निवेश स्थल के रूप में देख रहे हैं। जी20 सम्मेलन अनेक उपलब्धियां के लिए तो जाना ही जाएगा, भारत के लिए भी यह पूरा आयोजन यादगार रहा है। इसका लाभ भविष्य में भारत को आर्थिक रूप से भी मिलेगा। वैश्विक स्तर पर दो उपलब्धियां बेहद महत्वपूर्ण हैं। पहली जी 20 घोषणा पत्र पर सभी सदस्य देशों की आपस में सहमति बन पाना और दूसरा भारत का अफ्रीका यूनियन को जी20 में सम्मिलित करने में सफल रहना।

ग्लोबल साउथ की आवाज बना भारत

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अफ्रीकी संघ के जुड़ने से जी 20 अब जी 21 बन गया है। महत्वपूर्ण यह है कि अफ्रीकी यूनियन एक ऐसा संगठन है जिसके 55 देश सदस्य हैं। भारत की पहल पर जी20 के गठन के बाद यह इसका पहला विस्तार है। यह सम्मेलन ग्लोबल साउथ अर्थात एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के लिए एक बृहत्तर संदेश है कि भारत वैश्विक स्तर पर उनकी आवाज बनकर उभरा है। अफ्रीकी यूनियन को जी20 में सम्मिलित करने से भारत के अफ्रीकी देशों से आर्थिक संबंधों में भी और प्रगाड़ता आएगी। अफ्रीकी यूनियन एक बहुत बड़ा मुक्त बाजार क्षेत्र है, जहां भारतीय उत्पादों को एक बहुत बड़ा बाजार मिलने की पूरी संभावना है। अफ्रीकी संघ में दुनिया के सबसे गरीब देश शामिल हैं और 55 देशों की संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 03 ट्रिलियन डॉलर मात्र है, जबकि जनसंख्या 1.4 अरब है। जहां तक संसाधनों की बात है, अफ्रीकी उपमहाद्वीप काफी समृद्ध है। विश्व के अक्षय ऊर्जा संसाधनों का लगभग 60 प्रतिशत यहाँ है। खनिज से संपन्न अफ्रीका के देश भारत की जरूरत के लिए बेहद अहम साबित हो सकते हैं, विशेषकर स्वच्छ ऊर्जा की जरूरत के लिए। अभी अफ्रीकी संघ का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी चीन है। भारत के लिए अफ्रीका का बड़ा सहयोगी बनने की संभावनाएं बढ़ी हैं। अभी ज्यादातर अफ्रीकी देश रूस से हथियार खरीदते हैं, अब हथियारों और रक्षा उत्पादन के लिहाज से भी अफ्रीका भारत के लिए एक बड़ा बाजार साबित हो सकता है। भारत अफ्रीका में बड़े पैमाने पर निवेश करता रहा है। अफ्रीका में टाटा, महिंद्रा, भारती एयरटेल, बजाज ऑटो, जैसी प्रमुख कंपनियां व्यवसाय कर रही हैं।

एयरटेल ने अफ्रीका के 17 देश में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर रखा है। अनेक भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में कोयला, लोहा और अन्य खदानों के अधिग्रहण में भी निवेश किया है तथा आगे की योजना बना रही हैं। यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिहाज से भी अफ्रीका भारत के लिए महत्वपूर्ण है। अफ्रीका की कंपनियां भी कृषि, प्रसंस्करण, शीत गृह श्रृंखला, पर्यटन व होटल तथा रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं। पूर्वी अफ्रीका के रेल नेटवर्क को तैयार करने में भारत के पंजाब के लोगों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। पूरे पूर्वी अफ्रीका में ज्यादातर छोटे-बड़े शहरों में भारतवंसी काफी बड़ी संख्या में है। इस समझौते के बाद अफ्रीका के बाजार में भारत की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है। ब्राजील के राष्ट्रपति लुईस ईनास्यू लूला डा सिल्वा ने इस मौके पर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के हितों से जुड़े मुद्दों को आवाज़ देने के लिए भारत की तारीफ की है। भारत मध्य पूर्व यूरोपीय आर्थिक गलियारा (आईएमईईसी)

मध्य पूर्व से होते हुए यूरोप तथा अमेरिका तक के जिस कॉरिडोर के प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया गया है, वह भी इस सम्मेलन की बड़ी सफलता है। इससे भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने में कामयाब होगा। इजरायल के प्रधानमंत्री ने यहां तक कहा कि यह हमारे इतिहास की सबसे बड़ी सहयोग परियोजना है, जो की दुनिया का चेहरा बदल देगी। इस पहल का उद्देश्य भारत पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच व्यापार, आर्थिक संबंधों और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाना है। यह चीन के महत्वाकांक्षी परियोजना का जवाब है।

इस गलियारे के माध्यम से रेलवे लाइन, हाइड्रोजन पाइपलाइन और ऑप्टिकल फाइबर केबल का बहुआयामी नेटवर्क विकसित किया जाएगा। इस इंडिया मिडल ईस्ट यूरोप इकोनामिक कॉरिडोर के प्रमुख रूप से तीन भाग है। पहला, समुद्र का रास्ता जिसके जरिए भारत अरब प्रायद्वीप से जुड़ेगा। दूसरा, रेल मार्ग का निर्माण जिसमें अरब प्रायद्वीप में संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजरायल रेल मार्ग से जुड़ेंगे तथा तीसरा, इजरायल के पूर्वी भूमध्य सागर के तट को ग्रीस और इटली के समुद्र मार्ग से व बाकी यूरोपीय महाद्वीप को रेल मार्ग से जोड़ा जाएगा। इस परियोजना में नए निर्माण के साथ पुराने रेल मार्गों और बंदरगाहों का भी इस्तेमाल होगा। इसके लिए भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी इटली और यूरोपीय संघ आयोग ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि इस गलियारे के प्रमुख हिस्से के रूप में अमेरिका जहाज और रेलगाड़ियों में निवेश करेगा। इस प्रोजेक्ट से सब-सहारन अफ्रीका में ट्रांस अफ्रीका कॉरिडोर का निर्माण होगा, जिससे अफ्रीका भी भारत के बाजार से जुड़ेगा। यह प्रोजेक्ट भारत को पश्चिम एशिया और यूरोप के बाजार से तो जोड़ेगा ही, रेल लाइन के जरिए यह अंगोला के पश्चिमी तट को कांगो और जांबिया से आगे हिंद महासागर से जोडेगा, जो मध्य अफ्रीका के एशिया और लैटिन अमेरिका के व्यापार को सुगम बनाएगा। भारत के नजरिए से देखा जाए तो इस प्रोजेक्ट के सामरिक और आर्थिक महत्व बहुत व्यापक हैं। ऐसे में यदि यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी बनकर उभरेगा। इसके जरिए भारत को हॉरमुज स्ट्रेट, स्वेज नहर और बाब अल मंधब स्ट्रेट पर आने-जाने की छूट मिल सकेगी। उल्लेखनीय है कि, दुनिया का एक तिहाई तेल और गैस हॉरमुज स्ट्रेट से होता है, जबकि स्वेज नहर के रास्ते से दुनिया का 12 फीसदी वैश्विक व्यापार होता है। एक और महत्वपूर्ण बात मुंबई से संयुक्त अरब अमीरात, इजरायल के हाइपर बंदरगाह के रास्ते यूरोप के बाजार पहुंचने में भारत को 10 दिन लगेंगे, जो कि मौजूदा समुद्री मार्ग से लगने वाले समय से 40 फीसदी कम है। इस आर्थिक गलियारे से वैश्विक बुनियादी ढांचे, निवेश के लिए साझेदारी, आवाजाही और सतत विकास को नई दिशा मिलेगी। वैश्विक ढांचे पर निवेश के लिए साझेदारी के जरिए ग्लोबल साउथ देशों में बुनियादी ढांचे की खाई को पाटने में बड़ी मदद मिल सकती है।

जलवायु और अक्षय ऊर्जा

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भारत के जलवायु और व्यापार वार्ताकारों ने हमेशा साथ मिलकर अच्छा काम किया है और जी20 में यह बात विकासशील देशों के हित में साबित हुई। जलवायु वित्त संबंधी पैराग्राफ में इस बात को रेखांकित किया गया कि जलवायु वित्त की चुनौती से निपटने के लिए अनुकूलन करना होगा। इसके लिए पूरी पारिस्थितिकी के रखरखाव पर जोर दिया गया। पिछले एक वर्ष में आर्थिक कूटनीति में एक अहम बदलाव दर्ज किया है, भारत ने जलवायु, पर्यावरणीय स्थिरता, ऋण और बहुपक्षीय सुधार पर अमेरिका और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच बेहतरीन रिश्तों को बहुत तत्परता के साथ भुनाया है। वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की शुरुआत भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसका लाभ भारत जैसे विकासशील देशों को होगा। इसका उद्देश्य जलवायु खतरों से निपटने के लिए हरित ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है। इसमें ऊर्जा की क्षमता को तीन गुना तक बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा और यदि यह सफल रहा तो इससे कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी तथा जीवाश्म ईंधन पर होने वाले व्यय में भी गिरावट आएगी, जिसका लाभ विकासशील और गरीब देश को मिलेगा। घोषणा पत्र में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को नुकसान और प्रदूषण से निपटने के लिए मिलकर कदम उठाने और स्वस्थ इकोसिस्टम पर बल दिया गया है। जलवायु परिवर्तन संबंधी आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए मजबूत आधारिक सुविधा निर्मित करना अत्यधिक आवश्यक हो गया है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देशों ने जरूरी वित्तीय मदद देने की बात स्वीकार की है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर विकासशील देशों को मदद करने के लिए कोष का आकार बढ़ाया जाएगा। रियायती दर पर अधिक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना एक अहम कामयाबी है। नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा किफायत आपस में संबद्ध हैं तथा दोनों में वृद्धि करने के लिए लक्ष्य तय किए गए हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।

अन्य महत्वपूर्ण समझौते

जी20 के दिल्ली घोषणा पत्र में मजबूत, सतत, संतुलित और समावेशी विकास का वादा किया गया है। इसमें निजी कंपनीयों, खासकर छोटे व मध्यम उद्यमों और स्टार्टअप की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया गया है। छोटी कंपनी और स्टार्टअप नवाचार को बढ़ावा देने के साथ रोजगार का सृजन भी करते हैं। भारत में हो रहे सामाजिक व आर्थिक बदलाव में तकनीकी और डिजिटल भुगतान का महत्व काफी बड़ा है और इसका लाभ समाज के निचले वर्ग को भी हुआ है। घोषणा पत्र में भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर सहमति भी एक बड़ी उपलब्धि है। अपने यूपीआई और फिनटेक क्षमताओं को लेकर भारत के नजरिए ने उसे महत्त्वाकांक्षी प्रस्ताव पेश करने के लिए प्रेरित किया। भारत की वैश्विक डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना कोष के निर्माण की योजना को स्वीकार कर लिया गया तथा स्टार्टअप 20 नामक एक अन्य समूह बना दिया गया, जो स्टार्टअप के सभी अंशधारकों में तालमेल कायम करेगा। इस सम्मेलन में अमेरिका सहित कई देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय समझौते हुए हैं। भारत की 15 देशों के साथ द्विपक्षीय बातचीत हुई। अमेरिका ने बातचीत के दौरान 31 ड्रोन खरीदने के लिए भारत की ओर से अनुरोध पत्र जारी करने का स्वागत किया। मोदी और बाइडन ने कहा कि दोनों सरकारें स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप पर काम करती रहेंगी और सेमी कंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला के लिए काम करेंगे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और पीएम मोदी के साथ बातचीत में मुक्त व्यापार समझौते के साथ ही दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार और निवेश में तेजी लाने की प्रतिबद्धता जताई गई। बांग्लादेश से सुरक्षा सहयोग, सीमा प्रबंधन, व्यापार, कनेक्टिविटी, जल संसाधन, बिजली और ऊर्जा सहयोग पर चर्चा हुई। भारत खाड़ी सहयोग परिषद से भी अपने व्यापारिक संबंधों का विस्तार कर रहा है। इन देशों के साथ आर्थिक समरी को ऊर्जा संबंधों के समझौता के जरिए द्विपक्षीय संबंधों को भी मजबूत कर रहा है। इन देशों के मध्य बुनियादी ढांचा विकास तकनीक साझेदारी और साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर समझौते हो रहे हैं तथा इन देशों के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा समझौते भी भारत ने किए हैं।

भारत की ओर हैं अधिकांश देशों की निगाहें

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जब भी किसी देश में कोई बड़ा आयोजन होता है तो यह एक अवसर होता है कि मेजबान देश दुनिया को अपनी क्षमताए संस्कृति आदि से परिचित कराए। इस आयोजन में भारत इस दृष्टि से सफल रहा है कि वह अपने सामाजिक, आर्थिक व वैज्ञानिक क्षमता के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक पहचान का भी प्रदर्शन करने और उससे प्रभावित करने में सफल रहा है। यह पहली बार है कि जी20 के सम्मेलन में पश्चिमी देशों का प्रभुत्व नहीं दिखा है और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को ज्यादा महत्व मिला है। भारत ने अनेक विकासशील देशों को यह संदेश देने में भी सफलता प्राप्त की है कि वह विकासशील देशों का नेतृत्व करने और जरुरत पड़ने पर विकसित देशों से होड़ लेने में सक्षम है और यह भी कि मुश्किलों से आगे बढ़कर विकास के पथ पर बढ़ा जा सकता है। इसका फायदा भारत को नए बाजारों के रूप में मिलेगा। साथ ही विकसित देशों का भी भारत में निवेश बढ़ेगा। जी20 की सफल मेजबानी और शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन से पूरे विश्व में भारत का कद काफी बढ़ा है। बदले हुए वैश्विक परिदृश्य में ज्यादातर विकसित देश भारत को अपने पसंदीदा निवेश स्थल के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि यह विश्व का सबसे मजबूत लोकतांत्रिक देश और सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। भारत यह बताने में भी सफल रहा है कि वह आने वाले समय में विनिर्माण के क्षेत्र में विश्व की बड़ी ताकत बनकर उभर सकता है।

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अफ्रीका यूनियन को जी20 में सम्मिलित करके भारत जहां विकासशील और गरीब देश व ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभरा है, उसके नेतृत्व में अपने को सक्षम सिद्ध करने में सफल रहा है। वहीं, दूसरी ओर अपनी कूटनीति से दो ध्रुवीय विश्व की शक्तियों में संतुलन स्थापित करने में भी इसे सफलता मिली है। विश्व के अधिकांश देशों की निगाहें इस समय भारत की ओर है, सिर्फ कूटनीतिक नजरिए से ही नहीं बल्कि आर्थिक सहयोग की दृष्टि से भी। भारत में इस समय आधारिक संरचना में महत्वपूर्ण रूप से सुधार हो रहा है, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे तेजी से आर्थिक प्रगति करने वाला देश है। भारत आत्मनिर्भरता और नई प्रौद्योगिकी के विकास पर बल दे रहा है। चीन को लेकर विभिन्न देशों में जो नकारात्मकता बनी हुई है और वहां जो मंदी की स्थिति बनी है उससे भी भारत को लाभ मिला है, इस लाभ को बढ़ाने में जी20 का भारत ने खूब बेहतर इस्तेमाल किया है तथा उसमें सफल भी रहा है। इस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी भी अनिश्चितता की स्थिति है और आर्थिक उथल-पुथल मची हुई है। यूरोप में अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में ज्यादातर देशों में मंदी जैसे हालात हैं। यूक्रेन युद्ध की वजह से ग्लोबल साउथ में भी अनेक महत्वपूर्ण वस्तुओं की दिक्कत है। ऐसी स्थिति में भारत जी20 की प्रासंगिकता को सिद्ध करने में सफल रहा है, यह भारत की बड़ी सफलता है।

डॉ. उमेश प्रताप सिंह

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