दूसरा जन्म

393
story-of-myself-my-loved-during-corona-period

रात से सुबह हो गयी थी परंतु खांसी थी कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी उसका सीना भी बलगम की वजह से जकड़ गया था और उसके गले में ख़राश भी बहुत हो रही थी जिससे सांस लेने में भी तकलीफ महसूस हो रही थी, जिसके कारण वह पूरी तरह से पसीने पसीने हो रहा था,उसे तो ऐसा लग रहा था जैसे उसकी सांसे थम सी रही हो। उसने काफी देर पहले अपने बेटे अभय और तनुज को आवाज दी थी लेकिन फिर भी अभी तक कोई भी अपने कमरों से बाहर नहीं आया था, शायद उसकी दोनों बहुऐं और बेटे सभी सो रहे थें या फिर वो लोग उसके पास आना ही नहीं चाहते,उसकी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी । उसके बेटें ने उसकी बढ़ती परेशानी को देखते हुए उसका कोविड टेस्ट करवा दिया था जिसके बाद जब उसकी रिपोर्ट आई तो उसमें वह पॉजिटिव आया था जिसके बाद से सब उसके पास आने से कतरा रहे थे ।
वह समझ नहीं पा रहा था कि पता नहीं कैसी बीमारी चली है कि इस बीमारी ने अपनों में ही दूरियां बना दी है । वह खुद न्यूज चैनलों पर लगातार देख रहा था कि जब से यह बीमारी चली थी तब से न जाने कितने लोग इस बीमारी की चपेट में आकर मौत के मुंह में जा चुके थे और ना जाने इस बीमारी ने कितने परिवारों को पुरी तरह से निस्तोनाबूत कर दिया था जिनके आगे पीछे रोने वाला भी कोई नहीं बचा था । सोचने वाली बात थी की विदेश से फैली इस बीमारी को दुनियां के किसी भी वैज्ञानिक और किसी डॉक्टर के द्वारा रोक पाना अंसभव हो गया और जल्द ही इस बीमारी ने महामारी का रूप लेकर पूरी दुनियां पर अपना कब्जा जमा लिया। जिससे जल्द ही पूरी दुनियां इस महामारी से त्राही त्राही करने लगी थी। वैज्ञानिकों ने और डब्ल्यूएचओ यानी की वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने इस महामारी का नामकरण कर महामारी का नाम कोरोना रख दिया जिससे की लोग इस बीमारी को पहचान लें और इस बीमारी से निज़ात दिलाने के लिये वैक्सीन भी तैयार की जाने लगी।

लेकिन उससे पहले देखते ही देखते भारत में भी इस महामारी का भंयकर प्रकोप दिखाई देना लगा और शहर के शहर वीरान होना शुरू हो गये । अस्पताल नर्सिंग होम सभी कोविड के मरीजों से फुल होते चले गये, मरीजों को अब अस्पतालों में बेड मिलना और जरूरत की स्वास्थ्य सेवाएं मिलना मुहाल होती नजर आने लगीं । जिसको देखते हुए सरकार के द्वारा अलग से कोविड अस्पतालों को बनाने की घोषड़ा की गयी जहां कोरोना से संक्रमित मरीजों को रखा जाये और उनका इलाज किया जा सके । लेकिन सरकार के सभी दावे हवा हवाई ही साबित हुए क्योंकि ये सारे कार्य केवल कागजी कार्यवाही तक ही सीमित रह गये ।

उधर सरकार ने एहितयात के तौर पर जल्द ही पूरे देश में लॉक डाउन घोषित कर दिया कि लोग अपनें घरों से न निकले जिससे की भीड़भाड़ न हो सके और साथ ही सोशल डिस्टेंस और चेहरे पर मास्क लगाना भी अनिवार्य कर दिया गया जिससे कि इस महामारी के फैल रहे सक्रमण से बचाव हो सके। लेकिन जहां इस वायरस के फैल रहें संक्रमण के चलते सोशल डिस्टेंस रखने की बात कहीं गयी थी लेकिन हालात कुछ ऐसे बनते चले गये कि अपने ही अपनों में दूरियां बनाने लगें । जिसमें सबसे ज्यादा हालात तो घरों में बुजुर्गों के हो गए जो घर में केवल अपने बच्चों के एहसानों पर ही जीवित थे और देखा जाये तो शायद उस जैसे लोग अपने बच्चों पर बोझ ही थे तभी उनको बिल्कुल अलग ही कर दिया गया था, जैसे कि उसे कोई रूपयों पैसों की कमी नहीं थी कि वह अपना इलाज न करवा सके लेकिन ईश्वर ने शायद उसके भाग्य में इस बीमारी को लिख दिया था कि उसे अब अपनी इस बीमारी से नरसंहार करना था ।

तभी एक बार फिर उसको खांसी का अटैक आया और वह खांसते-खांसते बूरी तरह से हांफने लगा और अब उसको सांस लेने में कुछ ज्यादा ही तकलीफ होने लगी थी उसको इस वक्त पानी की बहुत ही जरूरत थी उसने खाट से नीचे झांककर देखा तो नीचे रखा बरतन पानी से पूरी तरह से खाली हो चुका था,उसने एक बार फिर अपने बेटों को आवाज देनी चाही लेकिन तकलीफ के कारण वह बोल नहीं पाया,वह बामुश्किल उठा और फिर वह औधा मुंह होकर बैठ गया जिससे उसकी तकलीफ थोड़ी कम हो गयी ।

वह समझ नहीं पा रहा था कि वह अपनी परेशानी किस से कहें कोई भी तो उसकी परेशानी सुनने वाला ही नहीं था,दो बेटे और दो बहुऐं हैं और यही नहीं दो पोते और तीन पोतियां भी, मगर इस वक्त उसे सब के सब मतलबी ही लग रहे थे जो सबकुछ जानते हुए कि अकेले वह किस तरह से रह पाएगा और उसका ख्याल कौन रखेगा । लेकिन इसके बावजूद दो दिनों से कोई भी उसके पास नहीं आया था उसका हाल चाल जानने, हां उसके लड़को ने बाहर काम की तलाश में घूम रहे एक मजदूर को बुलाकर उसे कुछ रूपये देकर उसके पास भोजन पानी दवायें आदि भिजवा दी थी । वो इसलिये पास में नहीं आये थें कि कहीं उसकी वजह से उनको कहीं कुछ न हो जाये ।

उसे बहुत ही अफसोस हो रहा था कि उसकी बहुंए तो पराई हैं लेकिन उसके बेटे तो अपने हैं अपना खून ! लेकिन इसके बावजूद भी उसके दोनों बेटों को एक पल भी उसका ख्याल नहीं आ रहा कि वह जीवीत भी है या मर गया । इससे अच्छे तो गरीब होते हैं जो रिश्तो की मान मर्यादा और अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं चाहे फिर खुशी में हो या फिर गम में ।

उसे अच्छी तरह से याद है जब वह गांव में थे,उस वक्त गांव में अजीब सी बीमारी फैली थी जो छूने से बढ़ रही थी, बीमारी की चपेट में आकर काफी लोगों की मौते हुईं थीं, उसी बीमारी की चपेट में उसके दोनों बेटे भी आ गये थे, उस वक्त गांव में कई लोगों ने उनसे कहां की बच्चों को खुद से दूर रखे लेकिन वह और राधा बिल्कुल नहीं माने थे कि अपने बच्चों को यूं ही छोड़ दे । लेकिन तब तक इस महामरी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए गांव में डॉक्टरों की टीमें आ गयी थी और फिर जल्द ही इस महामारी पर काबू पा लिया गया था उसके दोनों बेटे भी इलाज से जल्द ही पूरी तरह से स्वस्थ हो गये थें ।लेकिन राधा उस बीमारी से बच नहीं पाई थी ।

“महेन्द्र जी !आपकी पत्नी बेटों के लगातार संपर्क में रहने के कारण ही बिमार हुई थी जिससे उनकी मौत हुई”, डॉक्टर दीक्षित ने उसे बताया था ।

राधा के जाने के बाद वह बिल्कुल अकेला रह गया था, दो दो बच्चों को पालने की जिम्मेदारी और कामकाज सबकुछ तो देखना था उसको । उसकी खेती बाड़ी और पैसा देखकर न जाने कितने लोगों ने कहा था कि वह दूसरी शादी कर लें लेकिन वह नहीं चाहता था कि वह अपने बच्चों के लिये कोई दूसरी औरत लाये न जाने कैसा व्यव्हार करे वह उसके बेटों के साथ ।

आखिर हार कर वह गांव की अपनी सारी जमीन जायदाद बेचकर लखनऊ आ गया और यहीं उसने एक दूकान कर ली, किस्मत साथ दे गयी और देखते ही देखते उसकी दुकान फैंसी शोरूम में तब्दील हो गयी और जल्द ही उसकी शहर के नामचीन अमीरों में गिनती होने लगी ।उधर उसके दोनों बेटे अभय और तनुज भी बड़े हो गये थे और उनकी पढ़ाई भी कंप्लीट हो गयी थी इसलिये उसने अच्छे परिवारों को देखकर दोनों बेटों की शादी कर दी,बेटों को कोई सरकारी नौकरी तो करवानी नहीं थी जो शादी में देर लगाते खुद का अब इतना बड़ा बिजनेश जो था,जल्द ही घर पोते पोतियों की किलकारियों से गुंजने लगा ।

लेकिन बेटों की शादी के कुछ सालों बाद ही वह इस कोरोना महामारी की चपेट में आ गया और इस महामारी का बड़े से बड़े अस्पतालों में इलाज करवाया जाना भी बेकार साबित हो रहा था ,उसकी उम्र भी काफी हो गई थी और बीमारी की वजह से उसकी सेहत दिन पर दिन गिरती ही जा रही थी,पहले तो बेटें और बहुएं उसकी खातिरदारी करते थकते नहीं थे लेकिन जब से वह कोरोना महामारी आई तो रही सही कसर उसने पूरी कर दी और वह लोग उससे दूर हो गए । तभी तेज सायरन की आवाज से उसकी तद्रां टूटी । उसने देखा घर के बाहर ही एक एम्बुलेंस खड़ी थी और उसका ही सायरन तेज आवाज में बज रहा था । एंबुलेंस को देखकर उस ने सहर्ष ही अनुमान लगा लिया कि उसके बेटों ने ही उसके लिए एंबुलेंस मंगवाई है तभी दरवाजा खुला और चार स्वास्थ्य कर्मचारी पीपीई किट पहने हुए स्ट्रेचर लेकर अंदर आ गए और उसको चारपाई से उठाकर स्ट्रेचर पर लिटा दिया ।

“आप लोग हमारे पापा जी को सही से लेकर जाइएगा, मैंने डॉ. राघव जी से पूरी बात कर ली है और पेमेंट भी जमा करवा दिया है”, तभी उसके बड़े बेटे तनुज ने उन कर्मचारियों से बहुत ही व्यंग्यात्मक ढंग से कहा ।

तनुज की बातों से उसे धक्का सा लगा,की जैसे तनुज उसको घर से निकाल कर बहुत ही सुकून महसूस कर रहा था ।वह इतना तो समझ गया था कि उसके बेटों ने उसको अस्पताल में भर्ती करवाकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया है। उसे बहुत ही अफसोस हो रहा था कि काश वह अभी मर खप जाए तो शायद उसके बेटों का कंधा ही उसे नसीब हो जाए, लेकिन किस्मत को ऐसा कहां मंजूर । उसको एंबुलेंस में लिटा कर उनमें से एक युवक ने उसके मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगा दिया ऑक्सीजन मास्क लगने से उसे बहुत ही राहत महसूस होने लगी थी। एंबुलेंस तेजी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ चली कुछ आधे घंटे के सफर में ही एंबुलेंस रुक गई और उसको बाहर निकाला जाने लगा उसने देखा वह शहर में बनाये गये कोविड हॉस्पिटल में लाया गया था ।

“अरे ! सुनो महेंद्र जी को इधर इस बेड पर ले आओ,उसने देखा एक डॉक्टर उन स्वास्थ्य कर्मचारियों से बोल रहा था ।
डॉक्टर को देखकर वह या तो समझ गया कि उसका बेटा जिस डॉक्टर की बात कर रहा था वह यही डॉक्टर हैं । उन्होंने उसको ले जाकर बेड पर लिटा दिया कुछ ही देर में उसके पास डॉक्टर राघव और वार्ड ब्वॉय आ गए और उसकी जांच शुरू हो गई, कुछ देर की फॉर्मेलिटी के बाद उन्होंने उसके मुंह पर ऑक्सीजन मास्क और एक ड्रिप लगा दिया और वहां से चले गए ।

उसने अपने चारों ओर देखा जहां चारों ओर मरीज ही मरीज थे और सभी जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे कुछ ही दूरी कुछ मरीजों को उस जमीनों पर लिटाया गया था और उनका ट्रीटमेंट चल रहा था ।

सुबह से शाम हो गई थी लेकिन अभी तक ना तो उसके बेटे बहुओं ने कोई सुध ली थी और ना ही किसी रिश्तेदार या फिर उसके दोस्तों ने, उसका ट्रीटमेंट लगातार जारी था वह तो समझ गया था कि उसके बेटों ने काफी मोटी रकम डॉक्टरों को दी है जिससे उसको किसी तरह की कोई कमी महसूस नहीं हो रही थी ।आज दो दिन हो गए थे लेकिन उसे ऐसा नहीं लग रहा था कि वह ठीक हो पाएगा इन दो दिनों में न जाने कितने लोग बेड और ऑक्सीजन ना होने के चलते तड़प तड़प कर मर गए थे और उनके परिजन भी बदहाल थे । उसे बड़ा ही आश्चर्य हो रहा था कि इस वक्त भी आक्सीजन सिलेंडरों की कमी हो रही है जबकि सरकार लगातार अपना दावा कर रही है कि ऑक्सीजन सिलेंडरों की लगातार पूर्ति की जा रही है वहीं दूसरी और कुछ खबरें आ रही थी कि ऑक्सीजन सिलेंडरों की कालाबाजारी बहुत तेजी से बढ़ गई है उसे अफसोस हो रहा था कि इस महामारी के दौरान भी लोग इंसानियत बुलाकर पैसा कमाने में जुटे हुए हैं । एक वह है जिसके पास सब कुछ होते हुए भी आज वह पूरी तरह से अकेला है आखिर क्यों ऐसे लोगों को इतनी बात समझ नहीं आती कि यह बीमारी अपनों को भी दूर कर देती है ,जबकि ऐसे मौके पर अपनों की ही जरूरत ज्यादा होती है जिससे बीमार व्यक्ति भी खुद को स्वस्थ समझने लगता है ।

” डॉ साहेब हमार बेटवा का बचाए लो,अभी तक हमारे बेटिवा का कोई भी इलाज नहीं कर रहा है “,तभी किसी की आवाज सुनकर उसने देखा सामने एक बूढ़ा व्यकित एक नवजवान को लेकर अस्पताल आया था जिसको सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही थी और वह तड़प रहा था जिसके कारण वह बूढ़ा व्यक्ति हाथ जोड़कर डॉक्टर से अनुनय विनय कर रहा था ।

” देखो हॉस्पिटल में जो दवाये और इंजेक्शन मौजूद हैं उनसे हम आपके बेटे का इलाज नहीं कर सकते,सबसे पहले उसको ऑक्सीजन सिंलेंडर की जरूरत है लेकिन वह हमारे हॉस्पिटल में मौजूद नहीं है,आप कहीं से भी ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम कर ले,” कहकर डॉक्टर वहां से चले गये ।

वह बूढ़ा व्यक्ति कभी बाहर भागता तो कभी अंदर और फिर अपने बेटे के पास आ जाता जो ऑक्सीजन की कमी के चलते तड़प रहा था, उसे यह सब देखा नहीं जा रहा था ,कुछ देर बाद ही डॉक्टर राघव उसके पास आये ।

” डॉक्टर साहब वह सामने जो युवा बेड पर लेटा हुआ है ना उसको मेरी ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाकर लगा दीजिए, जिससे कि उसका जीवन बच सके। वैसे भी मेरी जिंदगी पूरी हो चुकी है और अब जीने का कोई मकसद ही नहीं रहा, लेकिन उसको अभी जीना है अपने गरीब पिता के लिए”, वह डाॅ राघव से से हाथ जोड़कर बोला ।

” लेकिन महेंद्र जी हम आपको ऐसे कैसे छोड़ सकते हैं आपका भी ऑक्सीजन की बहुत ही जरूरत है आपका ऑक्सीजन लेवल भी काफी कम है”, डॉ राघव राघव उसे समझाते हुए बोले।

“डॉक्टर साहब जिसके खुद के बेटों ने उसके मरने से पहले ही उसको दूर कर दिया हो तो ऐसी जिंदगी से क्या लाभ ,” वह गहरी निहस्वास के साथ बोला ।
उसकी बात सुनकर डॉक्टर साहब चुप हो गए और दोबारा उन्होंने कुछ भी नहीं कहा,शायद वह उसकी तकलीफ पूरी तरह से समझ चुके थे ।

उन्होंने उसका ऑक्सीजन सिलेंडर निकालकर उस युवा को लगा दिया जिससे वह कुछ ही देर में सामान्य हो गया । लेकिन ऑक्सीजन मास्क उसके मुंह से हटते ही उसको अज़ीब सी बैचौनी होनी लगी । उसने देखा वह बूढ़ा व्यक्ति हाथ जोड़कर उसके लिए दुआ कर रहा था । लेकिन वह अस्पताल के गेट की ओर देख रहा था एक उम्मीद से कि शायद उसका कोई अपना आएगा और उसको गले से लगाकर उसका अकेलापन दूर कर देगा ।धीरे-धीरे उसकी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी और उसकी पलकें नींद से बोझिल हो रही थी,फिर कुछ ही देर के बाद उसकी आंखें बंद हो गई सदा के लिए शायद दूसरे जन्म के लिए जहां केवल अपनापन हो।

फारुख हुसैन